सोमेश्वर चतुर्थ: Difference between revisions

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*विज्जल स्वयं [[जैन धर्म|जैन]] था, अतः राजा और मंत्री में विरोध उत्पन्न हो गया। इसके परिणामस्वरूप वासव ने विज्जल की हत्या कर दी।  
*विज्जल स्वयं [[जैन धर्म|जैन]] था, अतः राजा और मंत्री में विरोध उत्पन्न हो गया। इसके परिणामस्वरूप वासव ने विज्जल की हत्या कर दी।  
*विज्जल के बाद उसके पुत्र सोविदेव ने राज्य प्राप्त किया, और वासव की शक्ति को अपने क़ाबू में लाने में सफलता प्राप्त की।  
*विज्जल के बाद उसके पुत्र सोविदेव ने राज्य प्राप्त किया, और वासव की शक्ति को अपने क़ाबू में लाने में सफलता प्राप्त की।  
*धार्मिक विरोध के कारण विज्जल और सोविदेव के समय में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, [[चालुक्य साम्राज्य|चालुक्य]] राजा तैल के पुत्र '[[सोमेश्वर चतुर्थ]]' ने उससे लाभ उठाया और 1183 ई. में सोविदेव को परास्त कर चालुक्य कुल के गौरव को फिर से स्थापित किया।  
*धार्मिक विरोध के कारण विज्जल और सोविदेव के समय में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, [[चालुक्य साम्राज्य|चालुक्य]] राजा तैल के पुत्र 'सोमेश्वर चतुर्थ' ने उससे लाभ उठाया और 1183 ई. में सोविदेव को परास्त कर चालुक्य कुल के गौरव को फिर से स्थापित किया।  
*पर चालुक्यों की यह शक्ति देर तक स्थिर नहीं रह सकी।  
*पर चालुक्यों की यह शक्ति देर तक स्थिर नहीं रह सकी।  
*विज्जल और सोविदेव के समय में [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] के राज्य में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उसके कारण बहुत से सामन्त व अधीनस्थ राजा स्वतंत्र हो गए, और अन्य अनेक राजवंशों के प्रतापी व महत्वकांक्षी राजाओं ने विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष शुरू कर दिया।  
*विज्जल और सोविदेव के समय में [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] के राज्य में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उसके कारण बहुत से सामन्त व अधीनस्थ राजा स्वतंत्र हो गए, और अन्य अनेक राजवंशों के प्रतापी व महत्वकांक्षी राजाओं ने विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष शुरू कर दिया।  

Revision as of 06:47, 18 February 2011

  • भारत के धार्मिक इतिहास में वासव का बहुत अधिक महत्व है। वह लिंगायत सम्प्रदाय का प्रवर्तक था। जिसका दक्षिणी भारत में बहुत प्रचार हुआ।
  • विज्जल स्वयं जैन था, अतः राजा और मंत्री में विरोध उत्पन्न हो गया। इसके परिणामस्वरूप वासव ने विज्जल की हत्या कर दी।
  • विज्जल के बाद उसके पुत्र सोविदेव ने राज्य प्राप्त किया, और वासव की शक्ति को अपने क़ाबू में लाने में सफलता प्राप्त की।
  • धार्मिक विरोध के कारण विज्जल और सोविदेव के समय में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, चालुक्य राजा तैल के पुत्र 'सोमेश्वर चतुर्थ' ने उससे लाभ उठाया और 1183 ई. में सोविदेव को परास्त कर चालुक्य कुल के गौरव को फिर से स्थापित किया।
  • पर चालुक्यों की यह शक्ति देर तक स्थिर नहीं रह सकी।
  • विज्जल और सोविदेव के समय में कल्याणी के राज्य में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उसके कारण बहुत से सामन्त व अधीनस्थ राजा स्वतंत्र हो गए, और अन्य अनेक राजवंशों के प्रतापी व महत्वकांक्षी राजाओं ने विजय यात्राएँ कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष शुरू कर दिया।
  • 1187 ई. में भिल्लम ने चालुक्य राजा सोमेश्वर चतुर्थ को परास्त कर कल्याणी पर अधिकार कर लिया, और इस प्रकार प्रतापी चालुक्य वंश का अन्त हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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