गंग वंश: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m ("गंग वंश" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (बेमियादी) [move=sysop] (बेमियादी)))
mNo edit summary
Line 8: Line 8:
पूर्वी गंग वंशों में अंतर्विवाह की शुरुआत हुई और उन्होंने ऐसे समय में चोलों और चालुक्य वंशों को चुनौती देना आरंभ किया, जब पश्चिमी गंग यह सब छोड़ने पर विवश हो चुके थे।  
पूर्वी गंग वंशों में अंतर्विवाह की शुरुआत हुई और उन्होंने ऐसे समय में चोलों और चालुक्य वंशों को चुनौती देना आरंभ किया, जब पश्चिमी गंग यह सब छोड़ने पर विवश हो चुके थे।  
==आरंभिक वंश==
==आरंभिक वंश==
पूर्वी गंगों का आरंभिक वंश आठवीं शताब्दी से [[उड़ीसा]] में सत्तासीन था; लेकिन वज्रास्त III , जिन्होंने 1028 में त्रिकलिंगाधिपति (तीन कलिंगों का शासक) की उपाधि धारण की थी, शायद ये पहले शासक थे, जिन्होंने [[कलिंग]] के तीनों हिस्सों पर एक साथ शासन किया। उनके पुत्र राजराज प्रथम ने चालों और पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण किया  और चोल राजकुमारी राजसुंदरी से विवाह करके अपनी सत्ता मज़बूत की। उनके पुत्र अनंतवर्मन कोडगंगदेव का शासन उत्तर में [[गंगा नदी|गंगा]]  के उद्गम स्थल से लेकर दक्षिण में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के उद्गम स्थल तक फैला हुआ था; उन्होंने 11वीं शताब्दी के अंत में [[पुरी]] में  विशाल [[जगन्नाथ मंदिर]] का निर्माण आरंभ करवाया ।  
पूर्वी गंगों का आरंभिक वंश आठवीं शताब्दी से [[उड़ीसा]] में सत्तासीन था; लेकिन वज्रास्त III , जिन्होंने 1028 में त्रिकलिंगाधिपति (तीन कलिंगों का शासक) की उपाधि धारण की थी, शायद ये पहले शासक थे, जिन्होंने [[कलिंग]] के तीनों हिस्सों पर एक साथ शासन किया। उनके पुत्र राजराज प्रथम ने चालों और पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण किया  और चोल राजकुमारी राजसुंदरी से विवाह करके अपनी सत्ता मज़बूत की। उनके पुत्र अनंतवर्मन कोडगंगदेव का शासन उत्तर में [[गंगा नदी|गंगा]]  के उद्गम स्थल से लेकर दक्षिण में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] के उद्गम स्थल तक फैला हुआ था; उन्होंने 11वीं शताब्दी के अंत में [[पुरी]] में  विशाल [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मंदिर]] का निर्माण आरंभ करवाया ।  
==आक्रमण==
==आक्रमण==
====1206 में आक्रमण====
====1206 में आक्रमण====
राजराज III ने 1198 में गद्दी संभाली। उन्होंने 1206 में उड़ीसा पर आक्रमण करने वाले [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के मुसलमानों का विरोध नहीं किया, लेकिन उनके पुत्र अनंगभीम III ने मुसलमानों को पीछे हटाकर [[भुवनेश्वर]] में मेघेश्वर मंदिर की स्थापना की।  
राजराज III ने 1198 में गद्दी संभाली। उन्होंने 1206 में उड़ीसा पर आक्रमण करने वाले [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के मुसलमानों का विरोध नहीं किया, लेकिन उनके पुत्र अनंगभीम III ने मुसलमानों को पीछे हटाकर [[भुवनेश्वर]] में मेघेश्वर मंदिर की स्थापना की।  
====1243 में आक्रमण====
====1243 में आक्रमण====
अनंगभीम के पुत्र  नरसिंह I ने 1243 में दक्षिण बंगाल के मुसलमान शासक को हराकर उनकी राजधानी (गौडा) पर क़ब्जा कर लिया और विजय स्मारक के रूप में [[कोणार्क]] में [[सूर्य मंदिर]] बनवाया। 1264 में नरसिंह की मृत्यु के साथ ही पूर्वी गंग वंश का पतन शुरु हो गया।  
अनंगभीम के पुत्र  नरसिंह I ने 1243 में दक्षिण बंगाल के मुसलमान शासक को हराकर उनकी राजधानी (गौडा) पर क़ब्जा कर लिया और विजय स्मारक के रूप में [[कोणार्क]] में [[सूर्य मंदिर कोणार्क|सूर्य मंदिर]] बनवाया। 1264 में नरसिंह की मृत्यु के साथ ही पूर्वी गंग वंश का पतन शुरु हो गया।  
====1324 में आक्रमण====
====1324 में आक्रमण====
1324 में [[दिल्ली]] के सुल्तान ने उड़ीसा पर आक्रमण कर दिया और 1356 में विजयनगर ने उड़ीसा के राजाओं को पराजित कर दिया।  
1324 में [[दिल्ली]] के सुल्तान ने उड़ीसा पर आक्रमण कर दिया और 1356 में विजयनगर ने उड़ीसा के राजाओं को पराजित कर दिया।  

Revision as of 10:34, 25 January 2011

इतिहास

पश्चिमी गंग वंश का 250 से लगभग 1004 ई. तक मैसूर राज्य (गंगवाडी) पर शासन था। पूर्वी गंग वंश ने 1028 से 1434-35 ई. तक कलिंग पर शासन किया। इस नाम के भारत में दो अलग-अलग, लेकिन दूर के संबंधी राजवंश थे। पश्चिमी गंग वंश के प्रथम शासक, कोंगानिवर्मन, ने अपने विजय अभिमानों से राज्य की स्थापना की, लेकिन उनके उत्तराधिकारियों माधव और हरिवर्मन ने पल्लवों, चालुक्यों और कंदबों के साथ वैवाहिक और सैनिक समझौतों से अपने प्रभाव क्षेत्रों में वृद्धि की। आठवीं शताब्दी के अंत में एक पारिवारिक विवाद ने गंग वंश को कमज़ोर कर दिया, लेकिन बूतुंग द्वितीय (लगभग 937-960) ने तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच व्यापक क्षेत्र पर राज्य कायम किया। उनका राज्य तलकाड (राजधानी) से वातापी तक फैला हुआ था। चोलों के बार- बार आक्रमण ने गंगवाडी और उनकी राजधानी के बीच संबंध विच्छेद कर दिया और लगभग 1004 ई. में चोल राजा विष्णुवर्द्धन के क़ब्ज़े में चला गया।

धर्म और कला

पूर्वी गंग वंश धर्म और कला का महान संरक्षक था और उसके शासनकाल में निर्मित मंदिर हिन्दू वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पश्चिमी गंग वंश के अधिकांश लोग जैन धर्म के अनुयायी थे, लेकिन कुछ लोगों ने ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म को भी प्रश्रय दिया था। उन्होंने कन्नड़ भाषा में विद्वत्तापूर्ण शैक्षिक कार्यो को बढ़ाया दिया, कुछ उल्लेखनीय मंदिर बनवाए, जंगल साफ़ कर खेती योग्य ज़मीन तैयार करवाई और सिंचाई तथा अंतर्प्रायद्वीपीय व्यापार को बढ़ावा दिया।

अंतर्विवाह

पूर्वी गंग वंशों में अंतर्विवाह की शुरुआत हुई और उन्होंने ऐसे समय में चोलों और चालुक्य वंशों को चुनौती देना आरंभ किया, जब पश्चिमी गंग यह सब छोड़ने पर विवश हो चुके थे।

आरंभिक वंश

पूर्वी गंगों का आरंभिक वंश आठवीं शताब्दी से उड़ीसा में सत्तासीन था; लेकिन वज्रास्त III , जिन्होंने 1028 में त्रिकलिंगाधिपति (तीन कलिंगों का शासक) की उपाधि धारण की थी, शायद ये पहले शासक थे, जिन्होंने कलिंग के तीनों हिस्सों पर एक साथ शासन किया। उनके पुत्र राजराज प्रथम ने चालों और पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण किया और चोल राजकुमारी राजसुंदरी से विवाह करके अपनी सत्ता मज़बूत की। उनके पुत्र अनंतवर्मन कोडगंगदेव का शासन उत्तर में गंगा के उद्गम स्थल से लेकर दक्षिण में गोदावरी के उद्गम स्थल तक फैला हुआ था; उन्होंने 11वीं शताब्दी के अंत में पुरी में विशाल जगन्नाथ मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया ।

आक्रमण

1206 में आक्रमण

राजराज III ने 1198 में गद्दी संभाली। उन्होंने 1206 में उड़ीसा पर आक्रमण करने वाले बंगाल के मुसलमानों का विरोध नहीं किया, लेकिन उनके पुत्र अनंगभीम III ने मुसलमानों को पीछे हटाकर भुवनेश्वर में मेघेश्वर मंदिर की स्थापना की।

1243 में आक्रमण

अनंगभीम के पुत्र नरसिंह I ने 1243 में दक्षिण बंगाल के मुसलमान शासक को हराकर उनकी राजधानी (गौडा) पर क़ब्जा कर लिया और विजय स्मारक के रूप में कोणार्क में सूर्य मंदिर बनवाया। 1264 में नरसिंह की मृत्यु के साथ ही पूर्वी गंग वंश का पतन शुरु हो गया।

1324 में आक्रमण

1324 में दिल्ली के सुल्तान ने उड़ीसा पर आक्रमण कर दिया और 1356 में विजयनगर ने उड़ीसा के राजाओं को पराजित कर दिया।

अंतिम शासक

गंग वंश के अंतिम प्रसिद्ध शासक IV ने 1425 तक शासन किया। उनके उत्तराधिकारी ‘पागल राजा’ भानुदेव IV के बारे में कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं है। उनके मंत्री कपिलेंद्र ने उन्हें सत्ताच्युत करके 1434-35 में सूर्य वंश की नींव रखी।


संबंधित लेख