कृष्णदेव राय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:भारत के राजवंश (को हटा दिया गया हैं।))
Line 26: Line 26:
[[Category:तुलुव वंश]]
[[Category:तुलुव वंश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:भारत के राजवंश]]
[[Category:विजयनगर साम्राज्य]]
[[Category:विजयनगर साम्राज्य]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 07:17, 8 May 2011

तुलुव वंश के वीर नरसिंह का अनुज कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.), 8 अगस्त, 1509 ई. को विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन काल में विजयनगर एश्वर्य एवं शक्ति के दृष्टिकोण से अपने चरमोत्कर्ष पर था। कृष्णदेव राय ने अपने सफल सैनिक अभियान के अन्तर्गत 1509-1510 ई. में बीदर के सुल्तान महमूदशाह को 'अदोनी' के समीप हराया। 1510 ई. में उसने उम्मूतूर के विद्रोही सामन्त को पराजित किया। 1512 ई. में कृष्णदेव राय ने बीजापुर के शासक यूसुफ़ आदिल ख़ाँ को परास्त कर रायचूर पर अधिकार किया। तत्पश्चात् गुलबर्गा के क़िले पर अधिकार कर लिया। कृष्णदेव राय ने बीदर पर पुनः आक्रमण कर वहाँ के बहमनी सुल्तान महमूदशाह को बरीद के क़ब्ज़े से छुड़ा कर पुनः सिंहासन पर बैठाया और साथ ही ‘यवन राज स्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की।

विजय एवं नीति

1513-1518 ई. के बीच कृष्णदेव राय ने उड़ीसा के गजपति शासक प्रतापरूद्र देव से कम से कम 4 बार युद्ध किया तथा उसे चारों बार पराजित किया। चार बार की पराजय से निराश प्रतापरूद्र देव ने कृष्णदेव राय से संधि की प्रार्थना कर उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। गोलकुण्डा के सुल्तान कुली कुतुबशाह को कृष्णदेव राय ने सालुव तिम्म के द्वारा परास्त करवाया। कृष्णदेव राय का अन्तिम सैनिक अभियान बीजापुर सुल्तान इस्माइल आदिल के विरुद्ध था। उसने आदिल को परास्त कर गुलबर्गा के प्रसिद्ध क़िले को ध्वस्त कर दिया। 1520 ई. तक कृष्णदेव राय ने अपने समस्त शत्रुओ को परास्त कर अपने पराक्रम का परिचय दिया। अरब एवं फ़ारस से होने वाले घोड़ों के व्यापार, जिस पर पुर्तग़ालियों का पूर्ण अधिकार था, को बिना रुकावट के चलाने के लिए कृष्णदेव राय को पुर्तग़ाली शासक अल्बुकर्क से मित्रता करनी पड़ी। पुर्तग़ालियों की विजयनगर के साथ सन्धि के अनुसार वे केवल विजयनगर को ही घोड़े बेचेंगे। उसने उसे भटकल में क़िला बनाने के लिए अनुमति इस शर्त पर प्रदान की कि, वे मुसलमानों से गोवा छीन लेंगे।

यात्री विवरण

कृष्णदेव राय के समय में पुर्तग़ाली यात्री डोमिंगो पायस विजयनगर की यात्रा पर आया। उसने कृष्णदेव राय की खूब प्रशंसा की। एक अन्य पुर्तग़ाली यात्री बारबोसा ने भी समकालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। कृष्णदेव ने बंजर एवं जंगली भूमि को कृषि योग्य बनाने का प्रयत्न किया तथा विवाह कर जैसे अलोकप्रिय कर को समाप्त किया।

विद्वान व संरक्षक

कृष्णदेव राय तेलुगु साहित्य का महान विद्वान था। उसने तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अमुक्त माल्यद’ या 'विस्वुवितीय' की रचना की। उसकी यह रचना तेलुगु के पाँच महाकाव्यों में से एक है। इसमें आलवार विष्णुचित्त के जीवन, वैष्णव दर्शन पर उसकी व्याख्या और उनकी गोद ली हुई बेटी 'गोदा' और 'भगवान रंगनाथ' के बीच प्रेम का वर्णन है। कृष्णदेव राय ने इस ग्रन्थ में राजस्व के विनियोजन एवं अर्थव्यवस्था के विकास पर विशेष बल देते हुए लिखा है कि, ‘‘राजा को तलाबों व सिंचाई के अन्य साधनों तथा अन्य कल्याणकारी कार्यों के द्वारा प्रजा को संतुष्ट रखना चाहिए।’’ कृष्णदेव राय महान प्रशासक होने के साथ-साथ एक महान विद्वान, विद्या प्रेमी और विद्वानों का उदार संरक्षक भी था। जिसके कारण वह 'अभिनव भोज' या 'आंध्र भोज' के रूप में प्रसिद्ध था।

अष्टदिग्गज कवि

कुमार व्यास का ‘‘कन्नड़-भारत’’ कृष्णदेव राय को समर्पित है। उसके दरबार में तेलुगु साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे।, जिन्हें 'अष्टदिग्गज' कहा जाता था। अष्टदिग्गज में सर्वाधिक महत्वपुर्ण 'अल्लसानि पेद्दन' को तेलुगु कविता के पितामह की उपाधि प्रदान की गई थी। उसकी मुख्य कृति है- ‘स्वारोचिष-सम्भव’ या 'मनुचरित' तथा ‘हरिकथा सार’। दूसरे महान कवि 'नन्दी तिम्मन' ने ‘पारिजातहरण’ की रचना की। तीसरे कवि 'भट्टूमुर्ति' ने अलंकार शास्त्र से सम्बन्धित पुस्तक ‘नरसभूपालियम’ की रचना की। चौथे कवि 'धूर्जटि' ने ‘कालहस्ति-महात्म्य’ की रचना एवं पाँचवे कवि 'मादय्यगरि मल्लन' ने 'राजशेखरचरित' की रचना की। छठें कवि 'अच्चलराजु रामचन्द्र' ने ‘सफलकथा सारसंग्रह’ एवं ‘रामाभ्युदयम्’ की रचना की। सातवें कवि 'पिंगलीसूरन्न' ने ‘राघव-पाण्डवीय’ की रचना की। 'पांडुरंग महात्म्य' की गणना 5 महाकाव्यों में की जाती है।

उपाधि एवं मृत्यु

कृष्णदेव राय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक ‘जाम्बवती कल्याण’ की रचना की। साहित्य के क्षेत्र में कृष्णदेव राय के काल को तेलुगु साहित्य का ‘क्लासिकी युग’ कहा गया है। कृष्णदेव राय ने ‘आंध्र भोज’, ‘अभिनव भोज’, ‘आन्ध्र पितामह’ आदि उपाधियाँ धारण कीं। स्थापत्य कला के क्षेत्र में कृष्णदेव राय ने ‘नागलपुर’ नामक नये नगर की स्थापना की। उसने हजारा एवं विट्ठलस्वामी नामक मंदिर का निर्माण करवाया। कृष्णदेव राय की 1529 ई. में मृत्यु हो गई। बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुके बाबरी’ में कृष्णदेव राय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख