काकतीय वंश: Difference between revisions
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*[[चालुक्य वंश]] के पतन के बाद 'चोल द्वितीय' एवं 'रुद्र प्रथम' ने 'काकतीय राजवंश' की स्थापना की। | |||
*रुद्र प्रथम ने वारंगल को काकतीय राज्य की राजधानी बनाया थी। | |||
*रुद्र प्रथम के बाद 'महादेव' वा 'गणपति' शासक बने। | |||
*गणपति ने विदेश व्यापार को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया प्रदान किया था। | |||
*उसने विभिन्न बाधक तटकरों को समाप्त कर दिया। 'मोरपल्ली' ([[आंध्र प्रदेश]]) उसके काल का प्रमुख बंदरगाह था। | |||
*गणपति के बाद उसकी पुत्री 'रूद्राम्बा' [[वारंगल]] की शासिका बनी। | |||
*रूद्राम्बा का उत्तराधिकारी उसका पुत्र 'प्रतापरुद्र देव' था। | |||
*इसी काल में [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]] एवं [[तुग़लक़ वंश|तुग़लक़]] शासकों ने वारंगल पर आक्रमण किया। | |||
*[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] के पुत्र 'उलगू ख़ाँ' ([[मुहम्मद बिन तुग़लक़]]) ने 1332 ई. में वारंगल पर आक्रमण कर प्रताप रुद्रदेव को बंदी बना लिया | |||
*इसके बाद काकातीय वंश को [[दिल्ली सल्तनत]] में मिला लिया गया। | |||
*जब बारहवीं सदी में चालुक्यों की शक्ति क्षीण हो गई, तो '''प्रोलराज''' नामक काकतीय राजा ने 1117 ई. के लगभग चालुक्य आधिपत्य का अन्त कर अपने को स्वतंत्र कर लिया। | *जब बारहवीं सदी में चालुक्यों की शक्ति क्षीण हो गई, तो '''प्रोलराज''' नामक काकतीय राजा ने 1117 ई. के लगभग चालुक्य आधिपत्य का अन्त कर अपने को स्वतंत्र कर लिया। | ||
*इस वंश ने ओरंगल के राज्य की स्थापना की। | *इस वंश ने ओरंगल के राज्य की स्थापना की। |
Revision as of 06:18, 7 July 2011
- आधुनिक समय में हैदराबाद क्षेत्र के पूर्वी भाग तेलंगाना में काकतीय वंश का शासन था, और उसकी राजधानी वारंगल थी।
- कल्याणी के चालुक्य वंश के उत्कर्ष काल में काकतीय वंश के राजा चालुक्यों के सामन्तों के रूप में अपने राज्य का शासन करते थे।
- चालुक्य वंश के पतन के बाद 'चोल द्वितीय' एवं 'रुद्र प्रथम' ने 'काकतीय राजवंश' की स्थापना की।
- रुद्र प्रथम ने वारंगल को काकतीय राज्य की राजधानी बनाया थी।
- रुद्र प्रथम के बाद 'महादेव' वा 'गणपति' शासक बने।
- गणपति ने विदेश व्यापार को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया प्रदान किया था।
- उसने विभिन्न बाधक तटकरों को समाप्त कर दिया। 'मोरपल्ली' (आंध्र प्रदेश) उसके काल का प्रमुख बंदरगाह था।
- गणपति के बाद उसकी पुत्री 'रूद्राम्बा' वारंगल की शासिका बनी।
- रूद्राम्बा का उत्तराधिकारी उसका पुत्र 'प्रतापरुद्र देव' था।
- इसी काल में ख़िलजी एवं तुग़लक़ शासकों ने वारंगल पर आक्रमण किया।
- ग़यासुद्दीन तुग़लक़ के पुत्र 'उलगू ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) ने 1332 ई. में वारंगल पर आक्रमण कर प्रताप रुद्रदेव को बंदी बना लिया
- इसके बाद काकातीय वंश को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।
- जब बारहवीं सदी में चालुक्यों की शक्ति क्षीण हो गई, तो प्रोलराज नामक काकतीय राजा ने 1117 ई. के लगभग चालुक्य आधिपत्य का अन्त कर अपने को स्वतंत्र कर लिया।
- इस वंश ने ओरंगल के राज्य की स्थापना की।
- प्रोलराज काकतीयों का प्रथम स्वतंत्र राजा था।
- उसके वंशजों में सबसे पराक्रमी गणपति था, जिसने 1199 से 1291 तक शासन किया। वह एक महान विजेता था, और चोल, देवगिरि, कलिंग और गुजरात आदि की विजय यात्राएँ कर उसने अपने पराक्रम का परिचय दिया था।
- चौदहवीं सदी के प्रारम्भ में जब अफ़ग़ान सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी का प्रसिद्ध सेनापति मलिक काफ़ूर दक्षिण विजय के लिए निकला तो देवगिरि के यादवों और द्वारसमुद्र के होयसालों के समान वारंगल के काकतीयों की भी उसने विजय की।
- इसके राजा प्रतापरुद्रदेव द्वितीय को 1310 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी की फ़ौजों ने हरा दिया। अलाउद्दीन ख़िलजी ने उससे हर्जाने के रूप में एक भारी रक़म ऐंठी और वार्षिक कर देने का वचन लिया।
- सुल्तान ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-25 ई.) के शासनकाल में इस राज्य को अन्तिम रूप से समाप्त कर दिया गया और उसे दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया गया।
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