कबंध: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
शिल्पी गोयल (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 21: | Line 21: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{कथा}} | {{कथा}} | ||
[[Category:रामायण]] | |||
[[Category:कथा साहित्य]] | |||
[[Category:कथा साहित्य कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 11:57, 24 August 2011
- सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को वन में बहुत विचित्र सी आवाज़़ सुनाई दी। अचानक उन्होंने एक विचित्र दैत्य देखा, जिसके मस्तक और गला नहीं था तथा उसके पेट में मुख था। उसकी केवल एक ही आँख थी। शरीर पर पीले रोयें थे। उसकी एक योजन लम्बी बाहें थीं। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था।
- कबंध ने राम और लक्ष्मण को एक साथ पकड़ लिया। लक्ष्मण ने घबराकर धैर्यशाली राम से कहा, "मैं इसकी पकड़ में बहुत विवश हो गया हूँ। आप मुझे बलिस्वरूप देकर स्वयं निकल भागिए।" पर राम अविचलित ही रहे। दैत्य कबंध ने कहा कि वह भूखा है, अत: दोनों का ही भक्षण करेगा।
- राम और लक्ष्मण ने कबंध की दोनों भुजाएँ काट डालीं। कबंध ने भूमि पर गिरकर दोनों वीरों का परिचय प्राप्त किया, फिर प्रसन्न होकर कबंध बोला, "यह मेरा भाग्य है कि आपने मुझे बंधन मुक्त कर दिया। कबंध ने अपने बारे में परिचय दिया और कहा मैं बहुत पराक्रमी तथा सुंदर था। राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर मैं ऋषियों को डराया करता था। मैं दनु का पुत्र कबंध हूँ।
- एक बार स्थूलशिरा नामक मुनि के फल चुराकर मैंने उनको रुष्ट कर दिया था तथा उन्हीं के शाप से मुझे दैत्य योनी मिली है।
- कबंध ने उस मुनि से बहुत अनुनय-विनय किया तथा उसके बाद मुनि ने कहा कि 'जब श्रीराम वन में पहुँचकर हाथ काट कर तुम्हें जल देंगे, तब तुम अपना मूल रूप पुन: प्राप्त करोगे।' मुनि से शापित होकर मैंने तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न करके दीर्घायु होने का वर प्राप्त किया। तदनंतर मुझे बहुत घमंण्ड हो गया कि कोई मेरा हनन नहीं कर सकता। अत: मैंने सोचा कि इंद्र मेरा क्या बिगाड़ सकता है।
- कबंध ने इंद्र से युद्ध किया और इंद्र के 100 गांठों वाले वज्र से मेरा सिर और जांघें मेरे शरीर के अंदर घुस गईं, पर ब्रह्मा की बात सच्ची रखने के लिए उन्होंने मेरे प्राण नहीं लिए।
- कबंध ने राम और लक्ष्मण से यह पूछा कि 'मस्तक, जंघा, मुख टूटने के बाद मैं कैसे जीवित रहूँगा और खाऊँगा क्या?' इंद्र ने मेरे हाथ एक-एक योजन लम्बे कर दिये तथा पेट में तीखे दांतों वाला मुख बना दिया। मुझे पूर्व रूप प्रदान करने के लिए आप मेरा दाह-संस्कार कर दीजिए, फिर मैं अपनी दिव्य दृष्टि प्राप्त कर लूंगा और सीता को ढूँढने में सहायता प्रदान कर पाऊँगा।" राम और लक्ष्मण ने कबंध का दाह-संस्कार किया, तदुपरांत उसने राम और लक्ष्मण को पंपासर के निकट रहने वाले सुग्रीव से मैत्री करने का सुझाव दिया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय मिथक कोश') पृष्ठ संख्या-50