साबरमती आश्रम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 61: Line 61:
;उद्योग मंदिर
;उद्योग मंदिर
गांधी जी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी, जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायी इसी आश्रम में रहते थे और यहां उन्हें [[चरखा]] चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद के टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान की गई थी। इसके अलावा कस्तूरबा की रसोई इस आश्रम के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ उनकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/sakhi/?page=article&articleid=5483&edition=201001&category=6 |title=साबरमती आश्रम: गांधी की स्मृतियां रची-बसी हैं |accessmonthday=[[11 अगस्त]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण याहू |language=हिंदी }}</ref>
गांधी जी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी, जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायी इसी आश्रम में रहते थे और यहां उन्हें [[चरखा]] चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद के टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान की गई थी। इसके अलावा कस्तूरबा की रसोई इस आश्रम के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ उनकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/sakhi/?page=article&articleid=5483&edition=201001&category=6 |title=साबरमती आश्रम: गांधी की स्मृतियां रची-बसी हैं |accessmonthday=[[11 अगस्त]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण याहू |language=हिंदी }}</ref>
{{भारत में स्थित आश्रम}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==वीथिका==
==वीथिका==

Revision as of 02:33, 18 January 2013

साबरमती आश्रम
विवरण साबरमती आश्रम भारत के गुजरात राज्य प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है।
राज्य गुजरात
ज़िला अहमदाबाद
स्थापना 17 जून, 1917
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 23° 3' 36.00", पूर्व- 72° 34' 51.00"
मार्ग स्थिति साबरमती आश्रम, साबरमती रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि महात्मा गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्च आरम्भ किया था।
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
हवाई अड्डा अहमदाबाद हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन साबरमती रेलवे स्टेशन
बस अड्डा धर्म नगर बस अड्डा
यातायात मेट्रो, सिटी बस, टैक्सी, रिक्शा, ऑटो रिक्शा
क्या देखें हृदय कुंज, विनोबा-मीरा कुटीर, प्रार्थना भूमि, नंदिनी अतिथिगृह, उद्योग मंदिर
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 079
ए.टी.एम लगभग सभी
चित्र:Map-icon.gif गूगल मानचित्र
संबंधित लेख जामा मस्जिद, काँकरिया झील


अन्य जानकारी बापू जी ने आश्रम में 1915 से 1933 तक निवास किया। जब वे साबरमती में होते थे, तो एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी 'ह्रदय-कुञ्ज' कहा जाता है।
अद्यतन‎

साबरमती आश्रम भारत के गुजरात राज्य अहमदाबाद ज़िले के प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है। महात्मा गांधी जब अपने 25 साथियों के साथ दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटे तो 25 मई, 1915 को अहमदाबाद में कोचरब स्थान पर "सत्याग्रह आश्रम" की स्थापना की गई। दो वर्ष के पश्चात जुलाई 1917 में आश्रम साबरमती नदी के किनारे पर बनाया गया जो बाद में साबरमती आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आश्रम के वर्तमान स्थान के संबंध में इतिहासकारों का मत है कि पौराणिक दधीचि ऋषि का आश्रम भी यहीं पर था।

महत्त्वपूर्ण केंद्र

महात्मा गाँधी के प्रयोगों की शुरुआत यहीं से हुई थी। साबरमती नदी के किनारे बसा यह आश्रम आज़ादी की लड़ाई का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा है। महात्मा गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्च आरम्भ किया था। 241 मील की दूरी करके 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचे और अगले दिन नमक-क़ानून तोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ दिया। जनता में एक नया जोश उमड़ गया और भी कई आंदोलनों की रणनीति यहीं बनी।

निवास स्थान

बापू जी ने आश्रम में 1915 से 1933 तक निवास किया। जब वे साबरमती में होते थे, तो एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी "ह्रदय-कुञ्ज" कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य निधि है जहाँ उनका डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके पत्र आदि मौजूद हैं। "ह्रदय-कुञ्ज" के दाईं ओर "नन्दिनी" है। यह इस समय "अतिथि-कक्ष" है जहाँ देश और विदेश से आए हुर अतिथि ठहराए जाते थे। वहीं "विनोबा कुटीर" है जहाँ आचार्य विनोबा भावे ठहरे थे।

यहाँ विभिन्न गतिविधियों के लिए कई कुटीर बनाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:

हृदय कुंज

हृदय कुंज नामक कुटीर आश्रम के बीचो बीच स्थित है, इसका नामकरण काका साहब कालेकर ने किया था। 1919 से 1930 तक का समय गांधी जी ने यहीं बिताया था और उन्होंने यहीं से ऐतिहासिक दांडी यात्रा की शुरुआत की थी। [[चित्र:Spinning-Wheel.jpg|thumb|250px|left|चरखा, साबरमती आश्रम, अहमदाबाद]]

विनोबा-मीरा कुटीर

इसी आश्रम के एक हिस्से में विनोबा-मीरा कुटीर स्थित है। यह वही जगह है, जहाँ 1918 से 1921 के दौरान आचार्य विनोबा भावे ने अपने जीवन के कुछ महीने बिताए थे। इसके अलावा गांधी जी के आदर्शो से प्रभावित ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड भी 1925 से 1933 तक यहीं रहीं। गांधी जी ने अपनी इस प्रिय शिष्या का नाम मीरा रखा था। इन्हीं दोनों शख्सीयतों के नाम पर इस कुटीर का नामकरण हुआ।

प्रार्थना भूमि

आश्रम में रहने वाले सभी सदस्य प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना भूमि में एकत्र होकर प्रार्थना करते थे। यह प्रार्थना भूमि गांधी जी द्वारा लिए गए कई ऐतिहासिक निर्णयों की साक्षी रह चुकी है।

नंदिनी अतिथिगृह

आश्रम के एक मुख्यद्वार से थोडी दूरी पर स्थित है-गेस्ट हाउस नंदिनी। यहाँ देश के कई जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी जैसे- पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज और रवींद्रनाथ टैगोर आदि जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं ठहरते थे।

उद्योग मंदिर

गांधी जी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी, जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायी इसी आश्रम में रहते थे और यहां उन्हें चरखा चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद के टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान की गई थी। इसके अलावा कस्तूरबा की रसोई इस आश्रम के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ उनकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है।[1]

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साबरमती आश्रम: गांधी की स्मृतियां रची-बसी हैं (हिंदी) जागरण याहू। अभिगमन तिथि: 11 अगस्त, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख