सत्तू: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Adding category Category:पेय पदार्थ (को हटा दिया गया हैं।))
Line 34: Line 34:
[[Category: खान पान]] [[Category:संस्कृति कोश]]
[[Category: खान पान]] [[Category:संस्कृति कोश]]
[[Category:भूला-बिसरा भारत]]
[[Category:भूला-बिसरा भारत]]
[[Category:पेय पदार्थ]]


__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 11:04, 13 April 2013

thumb|सत्तू सत्तू एक प्रकार का व्यंजन है जो चना, मकई या जौ वगैरह को बालू में भूनने के बाद उसको आटा-चक्की में पीसकर बनाया जाता है। उत्तर भारत (मुख्यत: बिहार और उत्तर प्रदेश) में यह काफी लोकप्रिय है और कई रूपों में प्रयुक्त होता है। सामान्यतया यह चूर्ण के रूप में रहता है जिसे पानी में घोलकर या अन्य रूपों में खाया अथवा पीया जाता है। सत्तू के सूखे (चूर्ण) तथा घोल दोनों ही रूप को सत्तू कहते हैं। ग़्रीष्मकाल शुरू होते ही भारत में अधिकांश लोग सत्तू का प्रयोग करते हैं। खासकर दूर-दराज के छोटे क्षेत्रों व कस्बों में यह भोजन का काम करता है। चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मकई वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इन दोनों प्रकार के सत्तू का अकेले-अकेले या दोनों को किसी भी अनुपात में मिलाकर सेवन किया जा सकता है।

अन्य नाम

भारत की लगभग सभी आर्य भाषाओं में सत्तू शब्द का प्रयोग मिलता है, जैसे पाली प्राकृत में सत्तू, प्राकृत और भोजपुरी में सतुआ, कश्मीरी में सोतु, कुमाँऊनी में सातु-सत्तू, पंजाबी में सत्तू, सिन्धी में सांतू, गुजराती में सातु तथा हिन्दी में सत्तू एवं सतुआ। यह सत्तू नाम से बना बनाया बाज़ार में मिलता है। गुड़ का सत्तू व शक्कर का सत्तू दोनों अपने स्वाद के अनुसार लोगों में प्रसिद्ध हैं। सत्तू एक ऐसा आहार है जो बनाने, खाने में सरल है, सस्ता है, शरीर व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और निरापद भी है।[1]

सत्तू का अर्थ

सत्तू बना है संस्कृत के सक्तु या सक्तुकः से जिसका अर्थ है अनाज को भूनने के बाद उसे पीस कर बनाया गया आटा। प्राचीनकाल में भारत में जौ का प्रचलन अधिक था। गेहूं का इस्तेमाल बढ़ने के बाद सत्तू में इसकी अनिवार्यता भी बढ़ गई। गेहूं के स्थान पर मकई का प्रयोग भी होता है। संस्कृत के सक्तु या सक्तुक का जन्म हुआ है सञ्ज् या संज् धातु में क्तिन् प्रत्यय लगने से, जिसमें मिलने, जुड़ने, संयुक्त होने, संलग्न होने का भाव है। क्रम कुछ यूं रहा होगा-सक्तुकः >सत्तुकः > सत्तुअ > सत्तू / सतुआ। इसी तरह जकड़ना, चिपटना, चिपकना, सम्पर्क में आना आदि अर्थ भी इसमें निहित हैं। स्पष्ट है कि एक दूसरे में मिलाना, जोड़ना ही इसमें प्रमुख भाव हैं। सत्तू के अर्थ में किन्हीं अनाजों को आपस में मिलाने और पीस कर एकाकार करने में सञ्ज् धातु में निहित भाव स्पष्ट है। सञ्ज् या संज् धातु का 'ज' दरअसल संस्कृत की यु धातु का अगला रूप रहा होगा। संस्कृत की यु धातु भारोपीय भाषा परिवार की आदिधातुओं में है जिसका विस्तार भारतीय भाषाओं के अलावा कई विदेशी भाषाओं में हुआ है। कुल मिलाकर सत्तू भी एक किस्म का जुगाड़ ही है। य वर्ण ज में ही तब्दील होता है जैसे योग से जोग का रूपांतर। सञ्ज् में इसी यु की अर्थछाया नज़र आ रही है। बहरहाल। सक्तु की तरह सञ्ज् धातु में क्त प्रत्यय लगने से सक्त भी बना है जिसमें जुड़ना, चिपकीना, भक्त, संबंध होना, जैसे भाव हैं। सक्त का स्वतंत्र प्रयोग हिन्दी में नहीं होता मगर इसमें आ उपसर्ग लगने से बने आसक्त का प्रयोग प्रेम, अनुराग, अनुरक्त होने के संदर्भ में खूब होता है। आसक्ति का अर्थ है किसी से प्रेम संबंधी जुड़ाव। अनासक्त्ति में वैराग्य या उदासीनता का भाव है।[2]

सत्तू के प्रकार

thumb|सत्तू का घोल

जौ का सत्तू

जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हल्का, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ़ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ़, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।

जौ-चने का सत्तू

चने को भूनकर, छिलका हटाकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ चने का सत्तू है। इस सत्तू को पानी में घोलकर, घी-शक्कर मिलाकर पीना ग्रीष्मकाल में बहुत हितकारी, तृप्ति दायक, शीतलता देने वाला होता है।

चावल का सत्तू

चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।

जौ-गेहूँ चने का सत्तू

चने की दाल एक किलो, गेहूँ आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूँ, जौ, चने का सत्तू है।[1]

सत्तू बनाने की विधि

  • सर्वप्रथम चने को पानी में भीगने के लिये रख दिया जाता है।
  • उसके पश्चत इन्हें सुखने के बाद बालू में भूना जाता है।
  • इसके बाद इसे भूने हुए मसालों, यथा जीरा, काली मिर्च इत्यादि के साथ पीसा जाता है।
  • सत्तू सिर्फ चने का ही नहीं जौ से भी बानाये जाते हैं। जौ के सत्तू के लिये भी उपरोक्त प्रक्रिया ही अपनायी जाती है।

सेवन विधि

उपरोक्त दिये गये किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में शक्कर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें। नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरानमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें। इच्छा के अनुसार इसे पतला या गाढ़ा रख सकते हैं। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 सत्तू : स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 अप्रॅल, 2013।
  2. सत्तू-प्रेम या सत्तू-आसक्ति… (हिंदी) शब्दों का सफ़र। अभिगमन तिथि: 13 अप्रॅल, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख