रामकृष्ण मिशन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 45: Line 45:
{{धर्म}}
{{धर्म}}
[[Category:हिन्दू धर्म]]
[[Category:हिन्दू धर्म]]
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]  
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]  
[[Category:कोलकाता]]
[[Category:कोलकाता]]
[[Category:समाज सुधार]]
[[Category:समाज सुधार]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 12:16, 21 March 2014

रामकृष्ण मिशन
उद्देश्य साधुओं और संन्यासियों को संगठित करना, जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखते हों।
स्थापना 1 मई, 1897
संस्थापक स्वामी विवेकानन्द
मुख्यालय बेलूर मठ कोलकाता
संबंधित लेख रामकृष्ण परमहंस
अन्य जानकारी इस संस्था ने भारत के वेदान्तशास्त्र का संदेश पाश्चात्य देशों तक प्रसारित करने के साथ ही भारतीयों की दशा सुधारने की दिशा में भी प्रशंसनीय कार्य किया है।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट

रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने 1 मई, 1897 ई. में की थी। उनका उद्देश्य ऐसे साधुओं और संन्यासियों को संगठित करना था, जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखें, उनके उपदेशों को जनसाधारण तक पहुँचा सकें और संतप्त, दु:खी एवं पीड़ित मानव जाति की नि:स्वार्थ सेवा कर सकें।

स्थापना स्थान

सर्वप्रथम मठ की स्थापना कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के समीप बारानगर में की गई। तत्पश्चात् वेलूर (कलकत्ता) में मिशन की स्थापना की गई। मिशन का दूसरा मठ अल्मोड़ा में मायावती में स्थापित किया गया। [[चित्र:Swami Vivekanand.jpg|स्वामी विवेकानन्द|left|thumb]]

उद्देश्य

मानव हित के लिए रामकृष्ण देव ने जिन सब तत्वों की व्याख्या की है तथा कार्य रूप में उनके जीवन में जो तत्व प्रतिपादित हुए हैं, उनका प्रचार तथा मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं पारमार्थिक उन्नति के लिए जिस प्रकार सब तत्वों का प्रयोग हो सके, उन विषयों में सहायता करना, इस संघ का उद्देश्य था। इस प्रकार के संगठन द्वारा वे वेदान्त दर्शन के 'तत्वमसि सिद्धान्त'[1]को व्यावहारिक रूप देना चाहते थे। रामकृष्ण मिशन विकासोन्मुख संस्था है और इसके सिद्धान्तों में वैज्ञानिक प्रगति तथा चिन्तन के साथ प्राचीन भारतीय अध्यात्मवाद का समन्वय इस दृष्टि से किया गया है कि यह संस्था भी पाश्चात्य देशों की भाँति जनकल्याण करने में समर्थ हो। इसके द्वारा स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाये जाते हैं और कृषि, कला एवं शिल्प के प्रशिक्षण के साथ-साथ पुस्तकें एवं पत्रिकाएँ भी प्रकाशित होती हैं। इसकी शाखाएँ समस्त भारत तथा विदेशों में हैं। इस संस्था ने भारत के वेदान्तशास्त्र का संदेश पाश्चात्य देशों तक प्रसारित करने के साथ ही भारतीयों की दशा सुधारने की दिशा में भी प्रशंसनीय कार्य किया है।

रामकृष्ण जी की शिक्षाएँ

नरेन्द्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानन्द, 1836-1902 ई.) के मुख्य प्रेरक स्वामी रामकृष्ण परमहंस (1836-1886 ई.) थे। रामकृष्ण जी कलकत्ता के एक मन्दिर में पुजारी थे। उन्होंने भारतीय विचार एवं संस्कृति में अपनी पूर्ण निष्ठा जताई। वे धर्मों में सत्यता के अंश को मानते थे। रामकृष्ण जी ने मूर्तिपूजा को ईश्वर प्राप्ति का साधन अवश्य माना, किन्तु उन्होंने चिह्न एवं कर्मकाण्ड की तुलना में आत्मशुद्धि पर अधिक बल दिया। रामकृष्ण की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का श्रेय उनके योग्य शिष्य विवेकानन्द जी को मिला।

धर्म संसद

1893 ई. में स्वामी विवेकानन्द ने शिकांगो में हुई धर्म संसद में भाग लेकर पाश्चात्य जगत को भारतीय संस्कृति एवं दर्शन से अवगत कराया। धर्म संसद में स्वामी जी ने अपने भाषण में भौतिकवाद एवं आध्यात्मवाद के मध्य संतुलन बनाने की बात कही। विवेकानन्द ने पूरे संसार के लिए एक ऐसी संस्कृति की कल्पना की जो पश्चिमी देशों के भौतिकवाद एवं पूर्वी देशों के अध्यात्मवाद के मध्य संतुलन बनाने की बात कर सके तथा सम्पूर्ण विश्व को खुशियाँ प्रदान कर सके। सं.रा. अमेरिका जाने के पूर्व महाराज खेतड़ी के सुझाव पर नरेन्द्रनाथ ने अपना नाम स्वामी विवेकानन्द रख लिया। स्वामी जी ने ऐसे धर्म में अपनी आस्था को नकारा जो किसी विधवा के आँसू नहीं पोछ सकता व किसी अनाथ को रोटी नहीं दे सकता।

ईश्वर की प्राप्ति

स्वाजी जी ने एक समाज सुधारक के रूप में यह माना कि ईश्वर प्राप्ति तथा मुक्ति के अनेक रास्ते हैं और मानव की सेवा ईश्वर की सेवा है, क्योंकि मानव ईश्वर का ही रूप है। स्वामी जी ने कहा कि हम मानवता को वहाँ ले जाना चाहते हैं, जहाँ न वेद है, न बाइबिल है और न क़ुरान, लेकिन यह काम वेद, बाइबिल और क़ुरान के समन्वय द्वारा किया जाता है। मानवता को सीख देनी है कि सभी धर्म उस अद्वितीय धर्म की ही विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं, जो एकत्व है। सभी को छूट है कि उन्हें जो मार्ग अनुकूल लगे, उसको चुन लें। भारतीय धर्म के पतन के बारे में स्वामी जी ने कहा कि हमारे धर्म रसोई घर में हैं। हमारे भगवान खाना बनाने के बर्तनों में हैं। स्वामी विवेकानन्द के बारे में सुभाषचन्द्र बोस का कहना था कि, जहाँ तक बंगाल का सम्बन्ध है, हम विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का आध्यात्मिक पिता कह सकते हैं।

वेदान्त सोसाइटी

स्वामी विवेकानन्द ने 1896 ई. में न्यायार्क में वेदान्त सोसाइटी का गठन किया। अपनी दो पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अपने विचारों को प्रचारित किया।

  1. प्रबुद्ध भारत (अंग्रेज़ी में)
  2. उदबोधन (बंगाली में)


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेद की चार घोषणाएं हैं- ‘प्रज्ञानाम ब्रह्मा’ अर्थात् ब्रह्मन परम चेतना है, यह ऋग्वेद का कथन है। यजुर्वेद का सार है ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ अर्थात् मैं ब्रह्म हूं। सामवेद का कथन है ‘तत्वमसि’ अर्थात् वह तुम हो। अथर्ववेद का सारतत्व कहता है ‘अयम आत्म ब्रह्म’ अर्थात् यह आत्मा ब्रह्म है। वेद के चार परम सत्य (हिंदी) लाइव हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 25 जून, 2013।

सम्बंधित लेख