यूसुफ़: Difference between revisions
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हज़रत यूसुफ़
हज़रत नूह, हज़रत इब्राहीम, हज़रत इसहाक़, हज़रत यूसुफ़, हज़रत मूसा, और हज़रत ईसा (अलैहिमुस्सलाम) निस्सन्देह नबी थे और वे लोग भी नबी थे जो अन्य क़ौमों के मार्गदर्शन के लिए ईश्वर ने नियुक्त किए[1] किन्तु उनके नाम निश्चित रूप से (क़ुरान में उल्लिखित करके) हमें ईश्वर द्वारा बताए नहीं गए।
[2]
कथा
"बालक यूसुफ़ ने बाप (याकूब) से कहा—मैंने 11 तारे चन्द्रमा और सूर्य को अपने लिए प्रणाम करते देखा। (पिता) बोला—बेटा! अपने स्वप्न को अपने भाइयों से मत कहना अन्यथा वह धोखा देंगे। इस प्रकार (ज्ञात होता है) तेरा प्रभु तुम पर कृपा करेगा और तुझे (रहस्य की) बातें सिखायेगा एवं तुझ पर तथा याकूब–सन्तति पर अपनी प्रसन्नता पूर्ण करेगा। जैसा कि उसने तेरे दो बाप–दादों—इस्माइल और इसाहक़ पर किया[3]। (एक समय) उसके भाइयों ने मंत्रणा की कि 'यूसुफ़' उसका भाई (बनि–अमीन) हमारे बाप को हमसे अधिक प्रिय है। इसलिए आओ उन्हें एक दिन मारकर फेंक दिया जाए। उन्होंने बाप को फुसलाकर किसी प्रकार यूसुफ़ को शिकार खेलने के लिए अपने साथ वन में ले जाने पर राजी कर लिया। वन में ले जाकर कुँए में ढकेल दिया और उसकी कमीज को लहू में रंग कर बाप के सामने रखकर कहा—उसे भेड़िया खा गया। उधर (किसी) यात्री समुदाय के एक आदमी ने पानी खोजने के समय यूसुफ़ को कुँए से निकाला और उसे एक मिस्री सौदागर के हाथ बेच डाला।"[4]
"मिस्री ख़रीदार ने उस सुन्दर बालक को एक स्त्री (मिस्र के राज्यमंत्री की स्त्री) के हाथ बेच दिया। उसने भली प्रकार रखा। जब वह युवा हुआ तो उसकी सुन्दरता पर उसका मन चलायमान हो गया, किन्तु यूसुफ़ ने बात स्वीकार न की। अज़ीज़ (मिस्र के राज्यमंत्री) की स्त्री अपने दास पर मोहित है, यह बात पूरे नगर में फैल गई। इस पर अज़ीज़ की स्त्री ने नगर की स्त्रियों को बुलाकर यूसुफ़ के सामने उन्हें ख़रबूज़ा और छूरी दी। उनका चित्त यूसुफ़ की ओर इतना आकर्षित हुआ कि उन्होंने अपना हाथ काट डाला और कहा—'हाशल्लाहु ![5], यह मनुष्य नहीं देवता है। 'यूसुफ़' से निराश होकर उस स्त्री ने उसे क़ैद की धमकी दी। यूसुफ़ बोला—जिधर मुझे बुलाती हो, उससे जेल मुझे बहुत ही प्रियतर है। निदान यूसुफ़ जेल में डाल दिया गया। उसके साथ वहाँ पर दो और बन्दी थे। एक रात दोनों ने स्वप्न में देखा और 'यूसुफ़' से कहा। यूसुफ़ ने उसे—जिसने सिर पर रखी रोटी को जानवरों से खाई जाते देखा था—कहा कि तू सूली पर चढ़ाया जाएगा और तेरा सिर जानवर नोचेंगे। दूसरे से—जिसने शराब निचोड़ते देखा था—कहा, तू राजा को शराब पिलाएगा और उसका प्रिय दास होगा। किन्तु पदारूढ़ होकर मुझे स्मरण रखना। यूसुफ़ कितने ही वर्षों जेल में रहा।"[6]
"एक समय बादशाह ने स्वप्न देखा कि सात मोटी गायों को सात दुबली (गायें) खाती हैं, सात बालें हरी और सात सूखी हैं। राजा ने स्वप्न विचारने के लिए सगुनियों को बुलवाया। उसी समय उसके उस भूतपूर्व बन्दी नौकर ने यूसुफ़ की प्रशंसा की। यूसुफ़ ने आकर बताया कि सात वर्ष तुम्हारे राज्य में खूब फ़सल होगी और सात बरस तक पानी न बरसेगा। इसलिए अनाज काटकर उसे बालियों में ही पड़ा रहने दो। राजा ने प्रसन्न हो यूसुफ़ की निरपराधता का पता पा क़ैद से छुड़ाकर उसे अपना काम सौंपा। अकाल के समय यूसुफ़ ही के हाथ में अनाज आदि का अधिकार था। एक समय उसके भाई भी अकाल के मारे उसके यहाँ अनाज लेने आए। बोरी तैयार होने पर उसने उनसे कहा—जब तक तुम्हारा छोटा भाई 'बनि–अमीन' न आयेगा, तुम माल न ले जा सकोगे। फिर किसी प्रकार बाप को राजी करके वह बनि–अमीन को वहाँ पर लाए। उसकी तो इच्छा 'बनि–अमीन' को अपने पास रखने की थी। इसलिए उसने युक्ति सोच 'बनि–अमीन' की बोरी में लोटा रखवा उसे चोर बनाकर पकड़ लिया। उसके भाइयों ने बहुत छुड़ाने का प्रयत्न किया। अन्त में यूसुफ़ ने उनकी करनी को कह उन्हें लज्जित कर अपने आप को प्रकट कर दिया। अपने वियोग में रोते–रोते अन्धे हो गए बाप के पास उसने यह कह अपना कुर्ता भेजा कि इसके मुँह पर रखते ही उनकी आँखें अच्छी हो जाएँगी और यह भी कहा—घर सहित तुम सब यहाँ ही चले आओ। उसके आने के बाद बूढ़े माता–पिता को सिंहासन पर बैठा सबने प्रणाम किया।"[7]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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