आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट दिसम्बर 2014: Difference between revisions
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| 29 दिसम्बर, 2014 | |||
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हुस्न औ इश्क़ के क़िस्से तो हज़ारों हैं मगर | |||
उनको कहने या न कहने से फ़र्क़ क्या होगा | |||
कोई तफ़सील से समझाए मुहब्बत का सबब | |||
इसके होने या ना होने से फ़र्क़ क्या होगा | |||
तराश संग को बनते हैं, बुत तो रोज़ मगर | |||
इसके यूँ ही पड़ा रहने से फ़र्क़ क्या होगा | |||
कभी जो फ़ुरसतें होंगी तो इश्क़ कर लेंगे | |||
इसके करने या करने से फ़र्क़ क्या होगा | |||
तुम ही समझाओ मुझे तुम ही इश्क़ करते हो | |||
समझ भी लूँ तो समझने से फ़र्क़ क्या होगा | |||
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| 29 दिसम्बर, 2014 | | 29 दिसम्बर, 2014 | ||
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| 23 दिसम्बर, 2014 | | 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए | |||
बेच देते हैं वो, कुछ पैसा बनाने के लिए | |||
बड़ी शिद्दत से हमने ख़त लिखे, और भेजे थे | |||
वो भी जलवा दिए हैं, ठंड भगाने के लिए | |||
हाय नाज़ों से हमने दिल को अपने पाला था | |||
तोड़ते रहते हैं वो काम बनाने के लिए | |||
एक दिन मर्द बने, घर ही उनके पहुँच गए | |||
बच्चा पकड़ा दिया था हमको, खिलाने के लिए | |||
कोई जो जान बचाए, मेरी इस आफ़त से | |||
वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए | |||
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| 14 दिसम्बर, 2014 | |||
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| 10 दिसम्बर, 2014 | | 10 दिसम्बर, 2014 | ||
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"हाँ तो नरेन ! तो क्या खाओगे ? मैं जल्दी से सब्ज़ी बना देती हूँ, तुम भी रसोई में आ जाओ सब्ज़ी काटने में मेरी सहायता करो।” | |||
स्वामी विवेकानंद अमरीका जाने से पहले मां शारदा का आशीर्वाद लेने उनके पास पहुँचे। स्वामी विवेकानंद का नाम नरेन था। संत तो संत होते ही हैं, उनकी पत्नियाँ भी कभी-कभी अपने पतियों से अधिक ऊँचाइयाँ छू लेती हैं। संत रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी मां शारदा, उनमें से एक थीं। | |||
मां शारदा बोलीं “नरेन ज़रा वहाँ से छुरी उठा कर मुझे देदो।” इतना सुनते ही विवेकानंद ने छुरी उठाई और मां शारदा को देदी। | |||
मां शारदा बोलीं “नरेन अब तुम विदेश में भारत के प्रतिनिधि बनके जाने योग्य हो और जो भी संदेश दोगे वह एक सच्चे भारतीय का संदेश होगा। | |||
विवेकानंद आश्चर्य चकित होकर बोले “आपने तो मुझसे कुछ भी नहीं पूछा ? यह कैसे जान लिया कि मैं भारत का सच्चा प्रतिनिधि बन सकता हूँ ?” | |||
मां शारदा ने कहा "देखो नरेन ! जब मैंने तुमसे छुरी मांगी तो तुमने धार की की ओर से पकड़ कर मुझे छुरी दी जिससे कि मैं हत्थे की ओर से आसानी से उसे पकड़ सकूँ। यदि धार मेरी ओर और हत्था तुम्हारी ओर होता तो मेरी उँगली घायल होने का ख़तरा हो सकता था। इन छोटी-छोटी बातों का ख़याल रखना ही भारतीय संस्कार है, यही सच्ची भारतीयता है नरेन ! अब तुम जाओ और अमरीका में भारत की अहिंसा का पाठ पढ़ाओ…” | |||
मेरे विचार से भारतीयत संस्कार का इतना सटीक उदाहरण और पाठ कोई और मिलना मुश्किल है। | |||
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| 3 दिसम्बर, 2014 | |||
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| 3 दिसम्बर, 2014 | |||
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Revision as of 14:26, 18 February 2015
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