तापसह पदार्थ: Difference between revisions
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'''तापसह पदार्थ''' (Refractory mateials) - वे पदार्थ हैं, जो ऊँचे ताप पर धातुमल की | '''तापसह पदार्थ''' (Refractory mateials) - वे पदार्थ हैं, जो ऊँचे ताप पर धातुमल की निघर्षण क्रिया द्वारा प्रभावित नहीं होते। ये तीन प्रकार के (अम्लीय, समक्षारीय तथा उदासीन) होते हैं। अम्लीय पदार्थो के अंतगर्त सभी प्रकार की [[अग्निसह मिट्टी]] आ जाती है। तापसह पदार्थों के निमार्ण के लिये कच्चे पदार्थो का कोई अभाव नहीं है, और बड़ी से बड़ी भावी आवश्यकता की पूर्ति सुगमता से की जा सकती है। | ||
==अग्निसह मिट्टी (Fire Clays) == | ==अग्निसह मिट्टी (Fire Clays) == |
Revision as of 10:10, 10 August 2015
तापसह पदार्थ (Refractory mateials) - वे पदार्थ हैं, जो ऊँचे ताप पर धातुमल की निघर्षण क्रिया द्वारा प्रभावित नहीं होते। ये तीन प्रकार के (अम्लीय, समक्षारीय तथा उदासीन) होते हैं। अम्लीय पदार्थो के अंतगर्त सभी प्रकार की अग्निसह मिट्टी आ जाती है। तापसह पदार्थों के निमार्ण के लिये कच्चे पदार्थो का कोई अभाव नहीं है, और बड़ी से बड़ी भावी आवश्यकता की पूर्ति सुगमता से की जा सकती है।
अग्निसह मिट्टी (Fire Clays)
विभिन्न उद्योगों में जहाँ भी ऊँचा ताप उत्पन्न होता है, वहां अग्निसह मिट्टियों का प्रयोग किया जाता है। अग्निसह मिट्टियाँ आधुनिक उद्योगों में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, तथा मुख्यत: इनका उपयोग इनके गुणानुसार ऊष्मासह कायों में किया जाता है। इनसे ऊष्मासह ईटें बनाने के सयंत्र अधिकतर बंगाल तथा बिहार के कोयला क्षेत्रों में ही सीमित हैं। कुछ कारखाने मध्य प्रदेश तथा मैसूर में भी हैं, जिनसे स्थानीय आवश्यकता पूरी की जाती है। रानीगंज कोयला क्षेत्र की अग्निसह मिट्टियाँ उत्तम प्रकार की हैं, तथा इनसे बनी हुई ऊष्मासह ईटोंं की तुलना सर्वोतम विदेशी ईटों से की जा सकती है।[1] अग्निसह मिट्टियों का खनन किया जाता है। इसी प्रकार उड़ीसा के संबलपुर जिले में स्थित रामपुर कोयला क्षेत्र से भी, बेल पहाड़ के समीप जोराबगा में, अग्निसह मिट्टियाँ प्राप्त की जा सकती है।[2]
ताप सहनशीलता
सामान्यत: ऊष्मासह पदार्थो के निर्माण कुछ अधिक शुद्ध मिट्टियाँ, जिनमें सिलिका[3] की मात्रा 45 तथा ऐल्यूमिना [4] की 30 से 40 हो और लोहे ऑक्साइड पर्याप्त कम मात्रा में हो, प्रयुक्त की जाती हैं। सावधानी से इस प्रकार की मिट्टियों के मिश्रणों को निर्मित कर 12,00° सेंटीग्रेट से 1,400° सेंटीग्रेट तक पकाया जाता है। निर्मित ईटोंं के ऊष्मासह गुण को मिश्रण में ऐल्यूमिना की मात्रा में वृद्धि कर अधिक बढ़ाया जा सकता है। इस कार्य के लिये भारतीय ईटं निर्माता राँची जिले के लोहारडांगा तथा मध्य प्रदेश के कटनी क्षेत्र से प्राप्त बॉक्साइट का उपयोग करते हैं।[2]
रानीगंज कोयला क्षेत्र की अग्निसह मिट्टियाँ बराबर श्रेणी के अंतर्गत, अधर एवं मध्य संस्तरों[5] में, अनेक स्तरों में प्राप्त होती है। झरिया कोयला क्षेत्र की अग्निसह मिट्टियाँ मुख्यत: स्वयं झरिया में ही तथा पाथरडीह की और मिलती हैं। रानीगंज के स्तरों की भाँति यहाँ भी स्तरों की मोटाई विभिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न है। डाल्टनगंज क्षेत्र में भी पालामऊ जिले के रझारा नामक स्थान पर अत्यंत सुघटीत हैं।
मिट्टी का प्रयोग करना
मध्य प्रदेश के शहडोल तथा विलासपुर स्थित कोरबा क्षेत्र से इसी प्रकार की मिट्टियाँ, मिट्टी के बरत बनाने तथा खपरैल आदि के निर्माण में प्रयुक्त होती हैं। पूर्वी तट की गोंडवाना शिलाओं में, मद्रास राज्य के श्री परुम्बत्तु के समीप चिंगलपट्टु तथा आंध्र के गुंटूर जिले में आंगोलु के समीप वेमावरम में, अग्निसह मिट्टियाँ प्राप्त हुई हैं। इसी प्रकार बंगलोर तथा बंगलोर जिले के नंदागुडी कोलार जिले के कराडिबांडे आदि स्थानों से भी मिट्टियों का खनन किया जाता है। केरल में फिरोके, क्विलोन तथा अल्वाए में अनेक ऊष्मासह वस्तुओं का निर्माण होता है। ऊष्मासह ईटें बनाने के लिये श्वेत मिट्टियाँ त्रिशशूर के किझूपिल्लक्कारा नामक स्थान से उपलब्ध की जाती हैं।
अग्नि मिट्टी के प्राप्ति स्थान
इन स्थानों के अतिरिक्त अग्नि मिट्टियाँ अन्य स्थानों में भी प्राप्त होती हैं, जिनमें से कुछ पर्याप्त उत्तम वर्ग की सिद्ध हुई हैं। इस प्रकार के प्राप्ति स्थान-असम की खासी पहाडिंयों में जवाई; बिहार में राजमहल पहाड़ियों तथा भागलपुर जिले में करनपुरा कोयला क्षेत्र; उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले में; केरल में कुंदारा; दलोल, राजपुर तथा पंचमहल; हिमतनगर; बड़ौदा में माटा की तकरी; सौराष्ट्र में ध्रांगध्रा के अनेक स्थानों पर, देवपुर (कच्छ) आदि; मद्रास में दक्षिण आरकाट; आंध्र में निजामाबाद जिले के कोणसमुद्रम; राजस्थान के कोटा तथा जैसलमेर जिले; मध्य प्रदेश में रीवा के चाँदा-उमरिया क्षेत्र, छिंदवाड़ा तथा होशंगाबाद में - स्थित हैं।[2]
तापसह पदार्थों के निमार्ण के लिये कच्चे पदार्थो का कोई अभाव नहीं है, और बड़ी से बड़ी भावी आवश्यकता की पूर्ति सुगमता से की जा सकती है। कुछ योजनाएँ, अग्निसह मिट्टियों तथा उनसे बने पदार्थों के दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों को निर्यात करने के लिये भी विचाराधीन हैं।
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