कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य: Difference between revisions
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Revision as of 09:05, 14 October 2010
- चंद्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कुमारगुप्त राजगद्दी पर बैठा।
- यह पट्टमहादेवी ध्रुवदेवी का पुत्र था।
- इसके शासन काल में विशाल गुप्त साम्राज्य अक्षुण्ण रूप से क़ायम रहा।
- बल्ख से बंगाल की खाड़ी तक इसका अबाधित शासन था।
- सब राजा, सामन्त, गणराज्य और प्रत्यंतवर्ती जनपद कुमारगुप्त के वशवर्ती थे।
- गुप्त वंश की शक्ति इस समय अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी। कुमारगुप्त को विद्रोही राजाओं को वश में लाने के लिए कोई युद्ध नहीं करने पड़े।
- उसके शासन काल में विशाल गुप्त साम्राज्य में सर्वत्र शान्ति विराजती थी। इसीलिए विद्या, धन, कला आदि की समृद्धि की दृष्टि से यह काल वस्तुतः भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' था।
- अपने पिता और पितामह का अनुकरण करते हुए कुमारगुप्त ने भी अश्वमेध यज्ञ किया। उसने यह अश्वमेध किसी नई विजय यात्रा के उपलक्ष्य में नहीं किया था। कोई सामन्त या राजा उसके विरुद्ध शक्ति दिखाने का साहस तो नहीं करता, यही देखने के लिए यज्ञीय अश्व छोड़ा गया था, जिसे रोकने का साहस किसी राजशक्ति ने नहीं किया था।
- कुमारगुप्त ने कुल चालीस वर्ष तक राज्य किया।
- उसके राज्यकाल के अन्तिम भाग में मध्य भारत की नर्मदा नदी के समीप 'पुष्यमित्र' नाम की एक जाति ने गुप्त साम्राज्य की शक्ति के विरुद्ध एक भयंकर विद्रोह खड़ा किया।
- ये पुष्यमित्र लोग कौन थे, इस विषय में बहुत विवाद हैं, पर यह एक प्राचीन जाति थी, जिसका उल्लेख पुराणों में भी आया है।
- पुष्यमित्रों को कुमार स्कन्दगुप्त ने परास्त किया।
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