प्रवरसेन: Difference between revisions
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* प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने 'प्रवरसेन' की उपाधि धारण की। इसने 'प्रवरसेन' नगर की स्थापना की । | * प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने 'प्रवरसेन' की उपाधि धारण की। इसने 'प्रवरसेन' नगर की स्थापना की । | ||
*वाकाटक नरेश प्रवरसेन द्वितीय की रुचि साहित्य में भी थी। | *वाकाटक नरेश प्रवरसेन द्वितीय की रुचि साहित्य में भी थी। उन्होंने 'सेतुबंध' नामग ग्रंथ की रचना की । प्रवसेन द्वितीय का पुत्र नरेन्द्रसेन उसका उत्तराधिकारी बना। नरेन्द्र के बाद पृथ्वीसेन द्वितीय गद्दी पर बैठा। इसे वंश के खोए हुए भाग्य को निर्मित करने वाला कहा गया। शायद पृथ्वीसेन ने 'परमपुर' को अपनी राजधानी बनाई (प्रो. मीराशी के अनुसार) वाकाटकों की इस शाखा की अस्तित्व 480 ई. तक रहा। | ||
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Revision as of 13:48, 9 November 2010
- वाकाटक विंध्यशक्ति भारशिव नागों का सामन्त था।
- उसके पुत्र का नाम प्रवरसेन था।
- प्रवरसेन को 7 प्रकार के यज्ञ - अग्निष्टोम, अप्तोर्यम, वाजपेय, ज्योतिष्टोम, बृहस्पति, शड्यस्क,और अश्वमेध करने का श्रेय प्राप्त है। प्रवरसेन ने चार अश्वमेध यज्ञ भी किए।
- पुराणों में प्रवर सेन के चार पुत्रों का उल्लेख मिलता है, पर उसके दो .पुत्रों द्वारा ही शासन करने का प्रमाण उपलब्ध है।
- प्रवरसेन का राज्य उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्रों- गौतमीपुत्र एवं सर्वसेन में बंट गया।
- भारशिव राजा भवनाग की इकलौती लड़की प्रवरसेन के पुत्र गौतमी पुत्र को ब्याही थी।
- इस विवाह से गौतमीपुत्र के जो पुत्र हुआ था, उसका नाम रुद्रसेन था। क्योंकि भवनाग के कोई पुत्र नहीं था, अत: उसका उत्तराधिकारी उसका दौहित्र रुद्रसेन ही हुआ।
- गौतमीपुत्र की मृत्यु प्रवरसेन के कार्यकाल में ही हो गयी थी। अत: रुद्रसेन जहाँ अपने पितामह के राज्य का उत्तराधिकारी बना, वहाँ साथ ही वह अपने नाना के विशाल साम्राज्य का भी उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ।
- धीरे-धीरे भारशिव और वाकाटक राज्यों का शासन एक हो गया।
- रुद्रसेन के संरक्षक के रूप में प्रवरसेन ने वाकाटक और भारशिव दोनों वंशों के राज्य के शासन सूत्र को अपने हाथ में ले लिया।
- यह प्रवरसेन बड़ा ही शक्तिशाली राजा हुआ है। इसने चारों दिशाओं में दिग्विजय करके चार बार अश्वमेध यज्ञ किये, और वाजसनेय यज्ञ करके सम्राट का गौरवमय पद प्राप्त किया।
- प्रवरसेन की विजयों के मुख्य क्षेत्र मालवा, गुजरात और काठियावाड़ थे।
- पंजाब और उत्तरी भारत से कुषाणों का शासन इस समय तक समाप्त हो चुका था। पर गुजरात-काठियावाड़ में अभी तक शक महाक्षत्रप राज्य कर रहे थे।
- प्रवरसेन ने इनका अन्त किया। यही उसके शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना है।
- गुजरात और काठियावाड़ के महाक्षत्रपों को प्रवरसेन ने चौथी सदी के प्रारम्भ में परास्त किया था।
- गौतमी पुत्र के राज्य का केन्द्र नंदिवर्धन (नागपुर) एवं सर्वसेन का केन्द्र बरार में था। गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय से किया। रुद्रसेन द्वितीय पृथ्वीसेन प्रथम का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। कालान्तर में रुद्रसेन के मरने के बाद करीब 13 वर्ष तक प्रभावती गुप्ता ने अल्पवयस्क पुत्र की संरक्षिका के रूप में अपने पिता के सहयोग से शासन किया।
- प्रभावती के पुत्र दामोदर सेन ने 'प्रवरसेन' की उपाधि धारण की। इसने 'प्रवरसेन' नगर की स्थापना की ।
- वाकाटक नरेश प्रवरसेन द्वितीय की रुचि साहित्य में भी थी। उन्होंने 'सेतुबंध' नामग ग्रंथ की रचना की । प्रवसेन द्वितीय का पुत्र नरेन्द्रसेन उसका उत्तराधिकारी बना। नरेन्द्र के बाद पृथ्वीसेन द्वितीय गद्दी पर बैठा। इसे वंश के खोए हुए भाग्य को निर्मित करने वाला कहा गया। शायद पृथ्वीसेन ने 'परमपुर' को अपनी राजधानी बनाई (प्रो. मीराशी के अनुसार) वाकाटकों की इस शाखा की अस्तित्व 480 ई. तक रहा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ