परंतप

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परंतप कौशांबी नगर के राजा थे। जब राजा परंतप अपनी पत्नी के साथ धूप में बैठे थे, तभी 'हत्थी लिंग' (हाथी के समान मुख वाला) विशाल पक्षी ने उनकी रानी को मांस का टुकड़ा समझ उठा लिया। पक्षी ने रानी को उँचे पर्वत के एक पेड़ की जड़ पर रख दिया। यहाँ एक तापस ने रानी की सहायता की। इसी स्थान पर रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उदयन रखा गया। तापस कई विधाओं का जानकार था और उसने ये विधाएँ उदयन को भी सिखाईं। आगे के वर्षों में उदयन ने अपने पिता परंतप का छत्र धारण किया।

उदयन का जन्म

राजा परंतप अपनी रानी के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनके राज्य में चारों ओर सुख व समृद्धि व्याप्त थी। एक दिन वे अपनी गर्भिणी राजमहिषी के पास खुली धूप में आकाश के नीचे बैठे थे। रानी धूप सेवन करती हुई लाल कम्बल ओढ़े बैठी थी। आकाश से विशाल हत्थी लिंग पक्षी मांस का टुकड़ा समझ रानी को आकाश में उड़ा ले गया। रानी चुप रही, कि कहीं वह पक्षी पंजों से मुक्त करके उसे पृथ्वी पर न पटक दे। उड़ते-उड़ते पक्षी ने पर्वत की जड़ में लगे वृक्ष पर रानी को रख दिया। तब उसने ज़ोर से ताली बजा-बजाकर और चिल्लाकर, आवाज़ कर पक्षी को भगा दिया। वहीं पर उसे प्रसव वेदना हुई। देव के बरसते तीन याम रानी रातभर कम्बल ओढ़े बैठी रही। पास में एक तापस रहता था। अरुणोदय में रानी का शब्द सुनकर तपस्वी वृक्ष के नीचे आया। सीढ़ी बांध कर उसने रानी को नीचे उतारा। 'यागू' (खिचड़ी) खिलाई। बालक मेघ ऋतु ओर पर्वत ऋतु को लेकर पैदा हुआ, इसीलिए उसका उदयन नाम रखा गया।

विधा प्राप्ति

तापस ने रानी को फल खाने का दिए। बच्चे और रानी को पाला पोसा, यत्न से रखा। रानी ने एक दिन तापस की आगवानी की, उसका व्रत भंग कर दिया। उनके बहुत काल तक पर्वत पर रहते वियोग में राजा परंतप मर गया। एक रात नक्षत्र देख तापस बोला अवश्य ही राजा की मृत्यु हुई है। अब पुत्र राजछत्र धारण करे। रानी ने पुत्र को आदि से अंत तक पूरी कथा बताई। तापस ने शुक्र के पास से 'हस्ति ग्रन्थशिल्प' (हाथी को वश में करने की कला) उदयन को सिखाई थी। दूसरी विद्या वीणा बजाकर श्लोक पाठ से मधुर ध्वनि पर हाथी आ जा सकते थे। उदयन ने बरगद के पेड़ पर चढ़कर वीणा बजाई और श्लोक पाठ किया, जिसे सुनकर हाथी भयभीत हो कर भाग गए। दूसरे दिन भी वीणा बजाई और दूसरा श्लोक पढ़ा तो हाथी कंधे झुकाकर वहीं पर बैठ गए।

राजछ्त्र की प्राप्ति

एक दिन तरुण योद्धा उदयन ने एक श्रेष्ठ सरदार हाथी पर सवारी की, कुछ तरुण हाथी साथ में लिए। वनवासिनी माता का लाल कम्बल, राजसी अंगूठी ली और मातृ वंदना कर, तापस का आशीर्वाद प्राप्त कर छत्र धारण को निकल पड़ा। नगर में घोषणा कर दी कि वह परंतप का पुत्र है। उसे छत्र प्रदान करो। उसने सबको कम्बल और अंगूठी दिखाई और पिता का राज्य प्राप्त कर लिया। बाद में राजा चंड प्रदयोत ने हस्तिगन्थ शिल्प विद्या सीखने के लिए उसे एक काठ के हाथी के कटघरे में योद्धाओं को बिठा पकड़वा लिया। शिल्प सीखने को अपनी लावण्यमयी राजकन्या को भेजा। आगे उनका मिलन प्रेम विवाह में बदल गया। उसी राजकन्या की कोख से बोधि राजकुमार का जन्म हुआ था, जो 'भर्ग देश' का राजा बना। इस राजकुमार ने यह विद्या अपने पिता से सीखी, जिसका देवज्ञ बुद्ध को पूर्ण ज्ञान था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 477 |


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