अकबरी दरवाज़ा लखनऊ

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[[चित्र:‍Akbari darwaja.jpg|thumb|अकबरी दरवाज़ा, लखनऊ]] अकबरी दरवाज़ा लखनऊ के नक्‍खास क्षेत्र में स्थित है। इसकी पहचान यही है कि यह बहुत पुराना, ऊंचा सीधी-सादी मेहराब वाला दरवाज़ा है। अकबरी हुकूमत के इस दरवाज़े से वज़ीर बेगम के बनवाए हुए चौक चौराहे के गोल दरवाज़े के बीच किसी वक्त हुस्न का बाजार था और लखनवी तहजीब का बोलबाला था। यहां चांदी का बरक कूटने वालों की खट-खट में भी एक लय महसूस होती है। इस बाज़ार में गोटे किनारी की तमाम दुकानें हैं, सर्राफ खाना है, अत्तारों की दुकानें हैं, इस तरह यहां सोने-चांदी की चमक-दमक, चिकन के कारखाने, फूलों की मंडी, ज़री-कामदानी के कारीगर और गाने-बजाने नाचने वालों के घराने एक साथ मिलते हैं।

इतिहास

इन बाजारों में इन शाही इमारतों के किस्से बहुत पुराने हैं। सन् 1528 में बाबर ने लखनऊ को अपनी हुकूमत में ले लिया था, जबकि इससे पहले शर्की राज्य जौनपुर के शासक लखनऊ पर अपनी सल्तनत का सिक्का जमाए हुए थे। मुग़ल बादशाह हुमायूं के बाद शेरशाह सूरी ने लखनऊ को अपने अधिकार में लिया और इस शहर में टकसाल बनवायी जिसमें सिक्के ढाले जाते थे। यह टकसाल अकबरी दरवाजे के भीतर थी।

वास्तुशिल्प

बादशाह अकबर के तख़्तनशीन होते ही लखनऊ का भाग्य कुछ और चमका। उनके ही शासनकाल में जवाहर खान को अवध का सूबेदार बनाया गया था। इसी समय में चौक के दक्षिणी सिरे पर शाही ईरानी शैली का बना यह अकबरी दरवाज़ा बनाया गया। लखौड़ी ईट चूने से सीधी कमान देकर बनवाए गए। इस द्वार में कोई वास्तु सौंदर्य नहीं है सिवा इसके कि यह मुगल इतिहास से लखनऊ को जोड़ता है। इसे बनवाने के लिए अकबर ने 'मियां काज़ी महमूद बिलग्रामी' को दिल्ली से बुलाया था।



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