नए फैशन के मकान -अनूप सेठी: Difference between revisions

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पुराने घर को छोड़कर आ गए रहने लोग
पुराने घर को छोड़कर आ गए रहने लोग


पक्की गली बाजार तक जाती है
पक्की गली बाज़ार तक जाती है
पिछवाड़े वही है पुराना मुहल्ला
पिछवाड़े वही है पुराना मुहल्ला


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बड़े लोगों ने सीख लिया
बड़े लोगों ने सीख लिया
ओंठ सिल के व्यस्त बने रहना
ओंठ सिल के व्यस्त बने रहना
अखबार खरीदना
अखबार ख़रीदना
टीवी देखना
टीवी देखना
कभी कभी आपस में
कभी कभी आपस में
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थोड़ा घर की दीवारों को खुरचता है
थोड़ा घर की दीवारों को खुरचता है
थोड़ा बाजार गली में टहलने निकल जाता है
थोड़ा बाज़ार गली में टहलने निकल जाता है
थोड़ा पड़ोस में कानाफूसी करता है
थोड़ा पड़ोस में कानाफूसी करता है
थोड़ा खिड़की से हवा हो जाता है ।
थोड़ा खिड़की से हवा हो जाता है ।
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नए फैशन के मकान -अनूप सेठी
कवि अनूप सेठी
मूल शीर्षक जगत में मेला
प्रकाशक आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,एस. सी. एफ. 267, सेक्‍टर 16,पंचकूला - 134113 (हरियाणा)
प्रकाशन तिथि 2002
देश भारत
पृष्ठ: 131
भाषा हिन्दी
विषय कविता
प्रकार काव्य संग्रह
अनूप सेठी की रचनाएँ

जब बन गया नए फैशन का मकान
पुराने घर को छोड़कर आ गए रहने लोग

पक्की गली बाज़ार तक जाती है
पिछवाड़े वही है पुराना मुहल्ला

सहमे हुए रहते हैं बच्चे
उड़धम मचाते हैं जब हों अकेले

बड़े लोगों ने सीख लिया
ओंठ सिल के व्यस्त बने रहना
अखबार ख़रीदना
टीवी देखना
कभी कभी आपस में
पँखे से सुर मिला कर
घुर-घुर बातें करना

रात को जब बिस्तर पर पड़ते हैं
नए फैशन के मकान में
पुराने शहर को छोड़ कर आए हुए लोग
कोलाहल उनके फेफड़ों से बाहर निकलता है

थोड़ा घर की दीवारों को खुरचता है
थोड़ा बाज़ार गली में टहलने निकल जाता है
थोड़ा पड़ोस में कानाफूसी करता है
थोड़ा खिड़की से हवा हो जाता है ।
                       (1989)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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