अहम् ब्रह्मास्मि -किरण मिश्रा: Difference between revisions

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<poem>
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तुम्हे सुना था मैं ने
जैसे आत्माएँ दबी हो आकांक्षाओं में
सावन की गीली हवाओं में 
और कामनाएँ अपने नुकीले नाखूनों से 
जब रोपती थी तुम कोई गीत नया 
किरच रही हों बुद्ध के साधन चातुष्टय को
जब साँझ पड़े अँधेरा हाथ पसारे 
माया डोर ले हाथों में
भर रहा होता बाँहों में दिन को 
बना कर कठपुतली
दिया जला प्रकाश को रस्ता दिखाती 
दिग्भ्रमित करती है दुनिया के पथिक को
वो तुम ही थी 
भ्रमित पथिक कहाँ सुन पता है
अशोक को साक्षी बना 
आत्मा की वेदना और कहा देख पता है
अस्तित्व की रक्षा करती 
माया के खेल को
वो भी तुम थी
वो मगन रहता है अहम् ब्रह्मास्मि में
इतिहास में मानवता की लाज बचाती 
तुम ही थी कोई और नहीं 
फिर आज तुम क्यों भूल बैठी हो खुद को 
तोड़ दो वक्त की बाड़ें 
बिछा लो समय को अपने लिए 
विकसित करो अपने अन्दर 
जीवन कर्म का सौन्दर्य 
फिर से सुनाओ संभावनाओं के गीत
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<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समकालीन कवि}}
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चित्र:Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
अहम् ब्रह्मास्मि -किरण मिश्रा
पूरा नाम डॉ. किरण मिश्रा
जन्म 12 अक्टूबर, 1980
जन्म भूमि अंबिकापुर, छत्तीसगढ़
मुख्य रचनाएँ समाजशास्त्र: एक परिचय
भाषा हिन्दी
शिक्षा परास्नातक (समाजशास्त्र)
पुरस्कार-उपाधि माटी साहित्य सम्मान (2013), सरस्वती सम्मान (2012), निरालाश्री पुरस्कार (2015) आदि
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
किरण मिश्रा की रचनाएँ

जैसे आत्माएँ दबी हो आकांक्षाओं में
और कामनाएँ अपने नुकीले नाखूनों से 
किरच रही हों बुद्ध के साधन चातुष्टय को
माया डोर ले हाथों में
बना कर कठपुतली
दिग्भ्रमित करती है दुनिया के पथिक को
भ्रमित पथिक कहाँ सुन पता है
आत्मा की वेदना और कहा देख पता है
माया के खेल को
वो मगन रहता है अहम् ब्रह्मास्मि में

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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