हजामत -अनूप सेठी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " जोर " to " ज़ोर ")
m (Text replacement - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{स्वतंत्र लेख}}")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
{{स्वतंत्र लेखन नोट}}
{| style="background:transparent; float:right"
{| style="background:transparent; float:right"
|-
|-
Line 87: Line 88:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}
[[Category:समकालीन साहित्य]]
[[Category:समकालीन साहित्य]]

Latest revision as of 13:19, 26 January 2017

चित्र:Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
हजामत -अनूप सेठी
कवि अनूप सेठी
मूल शीर्षक जगत में मेला
प्रकाशक आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, एस. सी. एफ. 267, सेक्‍टर 16, पंचकूला - 134113 (हरियाणा)
प्रकाशन तिथि 2002
देश भारत
पृष्ठ: 131
भाषा हिन्दी
विषय कविता
प्रकार काव्य संग्रह
अनूप सेठी की रचनाएँ

सैलून की कुर्सी पर बैठे हुए
कान के पीछे उस्तरा चला तो सिहरन हुई

आइने में देखा बाबा ने
साठ-पैंसठ साल पहले भी
कान के पीछे गुदगुदी हुई थी
पिता ने कंधे से थाम लिया था

आइने में देखा बाबा ने
पीछे बैंच पर अधेड़ बेटा पत्रिकाएँ पलटता हुआ बैठा है
चालीस साल पहले यह भी उस्तरे की सरसराहट से बिदका था

बाबा ने देखा आइने में
इकतालीस साल पहले जब पत्नी को पहली बार
ब्याह के बाद गाँव में घास की गड्डी उठाकर लाते देखा था
हरी कोमल झालर मुँह को छूकर गुज़री थी
जैसे नाई ने पानी का फुहारा छोड़ा हो अचानक

तीस साल पहले जब बेटी विदा हुई थी
उसने कूक मारी थी ज़ोर से आँखें भर आईं थीं
और नाई ने पौंछ दीं रौंएदार तौलिए से

पाँच साल पहले पत्नी की देह को आग दी
आँखें सूखी रहीं, गर्दन भीग गई थी
जैसे बालों के टुकड़े चिपके हुए चुभने लगे हैं

बाबा के हाथ नहीं पँहुचे गर्दन तक आँखों पर या कान के पीछे
बेटा पत्रिका में खोया हुआ है
आइने में दुगनी दूर दिखता है
नाई कम्बख़्त देर बहुत लगाता है

हड़बड़ा कर आख़री बार आइने को देखा बाबा ने
उठते हुए सीढ़ी से उतरते वक़्त बेटे ने कंधे को हौले से थामा
बाबा ने खुली हवा में साँस ली
आसमान जरा धुंधला था

आइने बड़ा भरमाते हैं
उस्तरा भी कहाँ से कहाँ चला जाता है
साठ पैंसठ साल से हर बार बाबा सोचते हैं
इस बार दिल जकड़ के जाऊंगा नाई के पास

पाँच के हों या पिचहत्तर बरस के बाबा
बड़ा दुष्कर है हजामत बनवाना


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष