चैतन्य सम्प्रदाय: Difference between revisions
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|चित्र=Chetanya-Mahaprabhu.jpg | |||
|चित्र का नाम=चैतन्य महाप्रभु | |||
|विवरण=इस सम्प्रदाय के अनुसार परमतत्त्व एक ही हैं जो सच्चिदानंद स्वरूप हैं, जो अनंत शक्ति संपन्न तथा अनादि है। | |||
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|अन्य जानकारी=तात्विक सिद्धांत की दृष्टि से इसे अचिंत्य भेदाभेदवादी संप्रदाय कहते हैं। | |||
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|अद्यतन= | |||
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'''चैतन्य संप्रदाय''' को गौड़ीय संप्रदाय भी कहा जाता है। इसके प्रवर्तक [[चैतन्य महाप्रभु]] हैं। | |||
*तात्विक सिद्धांत की दृष्टि से इसे अचिंत्य भेदाभेदवादी संप्रदाय कहते हैं। | *तात्विक सिद्धांत की दृष्टि से इसे अचिंत्य भेदाभेदवादी संप्रदाय कहते हैं। | ||
*इसके अनुसार | *इसके अनुसार परमतत्त्व एक ही हैं जो सच्चिदानंद स्वरूप हैं, जो अनंत शक्ति संपन्न तथा अनादि है। | ||
*उपाधि भेद के द्वारा उसको परमात्मा, ब्रह्म | *उपाधि भेद के द्वारा उसको परमात्मा, ब्रह्म और भगवान कहा गया है। | ||
* | *परमतत्त्व [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ही माने गये हैं। | ||
*उनकी अनंत शक्तियां प्रकट हों तो भगवान, अप्रकट हों तो [[ब्रह्मा]] तथा कुछ प्रकट और कुछ अप्रकट हों तो परमात्मा भेदों का जन्म होता है। | *उनकी अनंत शक्तियां प्रकट हों तो भगवान, अप्रकट हों तो [[ब्रह्मा]] तथा कुछ प्रकट और कुछ अप्रकट हों तो परमात्मा भेदों का जन्म होता है। | ||
*इस संप्रदाय के अनुसार ब्रह्म ज्ञान गम्य है, परमात्मा योगगम्य तथा भगवान भक्तिगम्य होता है। | *इस संप्रदाय के अनुसार ब्रह्म ज्ञान गम्य है, परमात्मा योगगम्य तथा भगवान भक्तिगम्य होता है। | ||
*[[श्रीकृष्ण]] की तुलना में ब्रह्म की स्थिति ऐसी है जैसे सूर्य की तुलना में उसके प्रकाश की। परब्रह्म के तीन रूप हैं- स्वयंरूप, तदेकात्मकरूप तथा आवेशरूप। | *[[श्रीकृष्ण]] की तुलना में ब्रह्म की स्थिति ऐसी है जैसे [[सूर्य]] की तुलना में उसके [[प्रकाश]] की। | ||
*परब्रह्म के तीन रूप हैं- स्वयंरूप, तदेकात्मकरूप तथा आवेशरूप। | |||
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*भगवान की तीन प्रकार की शक्तियां होती हैं- अन्तर्ग, बहिरंग और तटस्थ। | *भगवान की तीन प्रकार की शक्तियां होती हैं- अन्तर्ग, बहिरंग और तटस्थ। | ||
*अन्तरंग शक्ति ही उनके स्वरूप की शक्ति है। इसके सत, चित और आनंद तीन भेद हैं। भगवान सत से विद्यमान, चित से स्वयं प्रकाशवान तथा | *अन्तरंग शक्ति ही उनके स्वरूप की शक्ति है। इसके सत, चित और आनंद तीन भेद हैं। | ||
*आनंद से आनंदमग्न रहते हैं। इसी को आह्लादिनी शक्ति कहा जाता है। राधा इसी का स्वरूप है। | *भगवान सत से विद्यमान, चित से स्वयं प्रकाशवान तथा जगत् के प्रकाशयिता होते हैं। | ||
*बहिरंग शक्ति माया है जिससे | *आनंद से आनंदमग्न रहते हैं। इसी को आह्लादिनी शक्ति कहा जाता है। [[राधा]] इसी का स्वरूप है। | ||
*तटस्थ शक्ति सम्पन्न जीव है जो एक ओर अंतरंग से तथा दूसरी ओर बहिरंग से संबंधित रहती है। रसखान के काव्य में चैतन्य संप्रदाय के सिद्धांत भी नहीं मिलते। | *बहिरंग शक्ति माया है जिससे जगत् की उत्पत्ति होती है। | ||
*तटस्थ शक्ति सम्पन्न जीव है जो एक ओर अंतरंग से तथा दूसरी ओर बहिरंग से संबंधित रहती है। | |||
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Latest revision as of 13:46, 30 June 2017
चैतन्य सम्प्रदाय
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विवरण | इस सम्प्रदाय के अनुसार परमतत्त्व एक ही हैं जो सच्चिदानंद स्वरूप हैं, जो अनंत शक्ति संपन्न तथा अनादि है। |
अन्य नाम | गौड़ीय संप्रदाय |
प्रवर्तक | चैतन्य महाप्रभु |
उपास्थ देव | श्रीकृष्ण |
अन्य जानकारी | तात्विक सिद्धांत की दृष्टि से इसे अचिंत्य भेदाभेदवादी संप्रदाय कहते हैं। |
चैतन्य संप्रदाय को गौड़ीय संप्रदाय भी कहा जाता है। इसके प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु हैं।
- तात्विक सिद्धांत की दृष्टि से इसे अचिंत्य भेदाभेदवादी संप्रदाय कहते हैं।
- इसके अनुसार परमतत्त्व एक ही हैं जो सच्चिदानंद स्वरूप हैं, जो अनंत शक्ति संपन्न तथा अनादि है।
- उपाधि भेद के द्वारा उसको परमात्मा, ब्रह्म और भगवान कहा गया है।
- परमतत्त्व श्रीकृष्ण ही माने गये हैं।
- उनकी अनंत शक्तियां प्रकट हों तो भगवान, अप्रकट हों तो ब्रह्मा तथा कुछ प्रकट और कुछ अप्रकट हों तो परमात्मा भेदों का जन्म होता है।
- इस संप्रदाय के अनुसार ब्रह्म ज्ञान गम्य है, परमात्मा योगगम्य तथा भगवान भक्तिगम्य होता है।
- श्रीकृष्ण की तुलना में ब्रह्म की स्थिति ऐसी है जैसे सूर्य की तुलना में उसके प्रकाश की।
- परब्रह्म के तीन रूप हैं- स्वयंरूप, तदेकात्मकरूप तथा आवेशरूप।
- परब्रह्म का स्वयंरूप श्रीकृष्ण हैं जो अपने पूर्णरूप से द्वारिका में, पूर्णतर रूप से मथुरा में और पूर्णतम रूप से से वृंदावन में विराजते थे।
- भगवान के तीन प्रकार के अवतार होते हैं- पुरुषावतार, लीलावतार तथा गुणावतार।
- भगवान की तीन प्रकार की शक्तियां होती हैं- अन्तर्ग, बहिरंग और तटस्थ।
- अन्तरंग शक्ति ही उनके स्वरूप की शक्ति है। इसके सत, चित और आनंद तीन भेद हैं।
- भगवान सत से विद्यमान, चित से स्वयं प्रकाशवान तथा जगत् के प्रकाशयिता होते हैं।
- आनंद से आनंदमग्न रहते हैं। इसी को आह्लादिनी शक्ति कहा जाता है। राधा इसी का स्वरूप है।
- बहिरंग शक्ति माया है जिससे जगत् की उत्पत्ति होती है।
- तटस्थ शक्ति सम्पन्न जीव है जो एक ओर अंतरंग से तथा दूसरी ओर बहिरंग से संबंधित रहती है।
- रसखान के काव्य में चैतन्य संप्रदाय के सिद्धांत भी नहीं मिलते।
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