अव्यतिक्रम शील बौद्ध निकाय: Difference between revisions
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गृहीत व्रतों (शिक्षाप्रदों) का काय और वाक् के द्वारा उल्लघंन न करना (अनुल्लंघन) अव्यतिक्रम शील कहलाता है। | गृहीत व्रतों (शिक्षाप्रदों) का काय और वाक् के द्वारा उल्लघंन न करना (अनुल्लंघन) अव्यतिक्रम शील कहलाता है। अर्थात् जिस पुरुष ने यह प्रतिज्ञा की है कि मैं प्राणी-हिंसा न करूँगा- ऐसे पुरुष का किसी भी परिस्थिति में शरीर या वाणी द्वारा अपनी प्रतिज्ञा का उल्लंघन न करना 'अव्यतिक्रम शील' है। | ||
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Latest revision as of 07:54, 7 November 2017
बौद्ध धर्म के अठारह बौद्ध निकायों में अव्यतिक्रम शील की यह परिभाषा है:-
गृहीत व्रतों (शिक्षाप्रदों) का काय और वाक् के द्वारा उल्लघंन न करना (अनुल्लंघन) अव्यतिक्रम शील कहलाता है। अर्थात् जिस पुरुष ने यह प्रतिज्ञा की है कि मैं प्राणी-हिंसा न करूँगा- ऐसे पुरुष का किसी भी परिस्थिति में शरीर या वाणी द्वारा अपनी प्रतिज्ञा का उल्लंघन न करना 'अव्यतिक्रम शील' है।