हिमाचल से रिपोर्ट -अनूप सेठी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर")
 
(13 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{स्वतंत्र लेखन नोट}}
{| style="background:transparent; float:right"
{| style="background:transparent; float:right"
|-
|-
Line 65: Line 66:


पहाड़ों की चोटी पर घिरी अकेली जल रही है माता ज्चालीमुखी
पहाड़ों की चोटी पर घिरी अकेली जल रही है माता ज्चालीमुखी
बूढ़े जमींदार की विधवा पान सुपारी चुभलाती
बूढ़े ज़मींदार की विधवा पान सुपारी चुभलाती


सेना की किसी टुकड़ी ने बना दिया
सेना की किसी टुकड़ी ने बना दिया
Line 72: Line 73:
ब्रह्म मुहूर्त के शंख नाद से जरा पहले
ब्रह्म मुहूर्त के शंख नाद से जरा पहले
चाय पीते मुसाफिरों को समझ नहीं आ रहा
चाय पीते मुसाफिरों को समझ नहीं आ रहा
पेशाब करने के लिए बिजली के खंभे से ज्यादा दूर क्यों जाएं
पेशाब करने के लिए बिजली के खंभे से ज़्यादा दूर क्यों जाएं
हैंड पंप के पानी से मुंह धोने के बाद भी
हैंड पंप के पानी से मुंह धोने के बाद भी


Line 78: Line 79:
यूं ही पांव पसारे लटका रहेगा
यूं ही पांव पसारे लटका रहेगा
कल आने वाले ग्राहकों या इस वक्त
कल आने वाले ग्राहकों या इस वक्त
टैक्सी का दरवाजा खोलकर खर्राटे लेते ड्राइवर को क्या फ पड़ेगा
टैक्सी का दरवाज़ा खोलकर खर्राटे लेते ड्राइवर को क्या फ पड़ेगा




Line 104: Line 105:
दूर नीचे दिखती चट्टानें
दूर नीचे दिखती चट्टानें
गहरा निर्मल ठंडा पानी
गहरा निर्मल ठंडा पानी
हर चीज तब कितनी विशाल थी
हर चीज़ तब कितनी विशाल थी


कितना संकरा हो गया देखते उेखते थका थका
कितना संकरा हो गया देखते उेखते थका थका
Line 117: Line 118:
पी डब्लयू डी की वशॉप घों घों करती ग्रीस बहाती रहती है
पी डब्लयू डी की वशॉप घों घों करती ग्रीस बहाती रहती है
गोरखा भवन में मंदिर का आहाता फैल गया है
गोरखा भवन में मंदिर का आहाता फैल गया है
चांदमारी के पास बावड़ी का पानी साफ नहीं रहा
चांदमारी के पास बावड़ी का पानी साफ़ नहीं रहा
राजस्थान से मजदूर आए
राजस्थान से मज़दूर आए
उनके बच्चों की आंखों में धुंआ धुंआ पीलाई
उनके बच्चों की आंखों में धुंआ धुंआ पीलाई


Line 126: Line 127:


खड्ड की पीठ से चिपकने लगीं
खड्ड की पीठ से चिपकने लगीं
ज्यादा सफल लोगों की शहरी सी दिखती नावाकिफ इमारतें
ज़्यादा सफल लोगों की शहरी सी दिखती नावाकिफ इमारतें


इस उम्रदराज पुल का घिसना तय था
इस उम्रदराज़ पुल का घिसना तय था
खड्ड के साथ हारने को बजिद्द
खड्ड के साथ हारने को बजिद्द
छोटा भी पड़ गया मरजाणा
छोटा भी पड़ गया मरजाणा
Line 136: Line 137:


भेखलटी में धूप सबसे पहले आएगी
भेखलटी में धूप सबसे पहले आएगी
ठियोग के शालीबाजार के पीछे जब पहुँचेगी
ठियोग के शालीबाज़ार के पीछे जब पहुँचेगी
बहुत से लोग तब तक शिमला पहुँच चुके होंगे
बहुत से लोग तब तक शिमला पहुँच चुके होंगे


Line 148: Line 149:


खचाखच भरी पहाड़ी सैरगाह के पिछवाड़े
खचाखच भरी पहाड़ी सैरगाह के पिछवाड़े
बसा यह कस्बा
बसा यह क़स्बा
ट्रकों बसों की आवाजाही से थका
ट्रकों बसों की आवाजाही से थका
तहसील के दफ्तरों को लादे खड़ा
तहसील के दफ़्तरों को लादे खड़ा
सेबों की साज संभाल में माँदा हुआ जाता
सेबों की साज संभाल में माँदा हुआ जाता
सोडियम पके आमों को निहारता
सोडियम पके आमों को निहारता
Line 172: Line 173:


बच्चे आए रबर पेंसिल के साथ ले गए
बच्चे आए रबर पेंसिल के साथ ले गए
जालिम से दिखते अँतर्राष्ट्रीय पहलवानों के मुफ्त स्टिकर
जालिम से दिखते अँतर्राष्ट्रीय पहलवानों के मुफ़्त स्टिकर
बजती रही कैसेट बेरोक
बजती रही कैसेट बेरोक


Line 182: Line 183:
घिसती रही कैसेट
घिसती रही कैसेट


दिहाड़ी से लौटे मजदूर
दिहाड़ी से लौटे मज़दूर
दुआ सलाम के वास्ते
दुआ सलाम के वास्ते
पल भर रुके जरूर
पल भर रुके ज़रूर
पड़े नहीं पर भाइयों के कानों में गीत
पड़े नहीं पर भाइयों के कानों में गीत
हालाँकि वही था तब वहाँ
हालाँकि वही था तब वहाँ
Line 197: Line 198:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}
[[Category:समकालीन साहित्य]]
[[Category:समकालीन साहित्य]]

Latest revision as of 10:51, 2 January 2018

चित्र:Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
हिमाचल से रिपोर्ट -अनूप सेठी
कवि अनूप सेठी
मूल शीर्षक जगत में मेला
प्रकाशक आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,एस. सी. एफ. 267, सेक्‍टर 16,पंचकूला - 134113 (हरियाणा)
प्रकाशन तिथि 2002
देश भारत
पृष्ठ: 131
भाषा हिन्दी
विषय कविता
प्रकार काव्य संग्रह
अनूप सेठी की रचनाएँ

पाँच कविताएँ

1. ज्वालाजी

सुनसान सूखी उनींदी सड़क के किनारे
रात के तीन बजे स्टोव की भड़भड़ के ऊपर
चिपचिपाती चाय उफन रही है
रेहड़ियां गठड़ियों की तरह बंधी पड़ी हैं दुकानें
उजड़े हुए खुरदुरे फट्टों से बंद की बई हैं
मानो सालों से उन्हें खोला नहीं गया
भोजनालय ठंडे पड़े हैं
ढेर ढेर लोगों ने लेकिन
कुछ घंटे पहले खाई हैं ढेर ढेर रोटियां
तंदूर लाल हुए रहे दिन भर
पेड़े भी बहुत बिके
सड़क पर धड़धड़ाते रहे वाहन

लोग आए हड़बड़ाए हुए चुन्नियां चढ़ाकर निकल गए
सूनी आंखों वाले बच्चे भी दौड़े बदहवास

दुकानों के पीछे फैले खेत
गर्मियों की सूखी पीली पड़ी हरियाली
और फर्लांग भर बाद पसरे रहे गांव

परांठे और चावल और दाल पच रही है भक्तों की अंतड़ियों में
लोग सो रहे हैं सरायों में
पंडों की तोंदों में भोग भी पच रहा है उसी तरह

पहाड़ों की चोटी पर घिरी अकेली जल रही है माता ज्चालीमुखी
बूढ़े ज़मींदार की विधवा पान सुपारी चुभलाती

सेना की किसी टुकड़ी ने बना दिया
बेदरोदीवार सीमेंट का तोरणद्वार

ब्रह्म मुहूर्त के शंख नाद से जरा पहले
चाय पीते मुसाफिरों को समझ नहीं आ रहा
पेशाब करने के लिए बिजली के खंभे से ज़्यादा दूर क्यों जाएं
हैंड पंप के पानी से मुंह धोने के बाद भी

बांबे वाले कपड़ों की सेल का यह बैनर
यूं ही पांव पसारे लटका रहेगा
कल आने वाले ग्राहकों या इस वक्त
टैक्सी का दरवाज़ा खोलकर खर्राटे लेते ड्राइवर को क्या फ पड़ेगा



2. चामुण्डा माता
भला हो भक्तों का
आबाद कर दिए नदी नाले
मंदिर जगमगाने लगे

सूखी पथरीली खड्ड की किस्मत फिरी
बजरी कुटने लगी रेत पिसने लगी
ट्रक चले टैक्सियां चलीं खूब चलीं

दिन में कनफाड़ कैसेटें रात में गलाफाड़ जगराते

माता सोई नहीं कब से

गांव गोहर में भी सोए नहीं
लोग गाएं बैल बची हुई भेड़ें और पेड़ दो चार

 

3. धर्मशाला में चुरान का पुल
वह पुल उसके जंगले
दूर नीचे दिखती चट्टानें
गहरा निर्मल ठंडा पानी
हर चीज़ तब कितनी विशाल थी

कितना संकरा हो गया देखते उेखते थका थका
चट्टानें अतल में धंस गईं
उथला पानी कहीं कहीं दिखता

भागसू का जल प्रपात भी ठिगना हो गया
स्लेट की खानों से पहाड़ की अनगिनत अस्थियां लुढ़कती रहती हैं
फिसलन भरी ढलानें
खच्चरों के खतरनाक रास्ते
सूरज चांद के भंजित बिंब टूटे हुए आइने
पी डब्लयू डी की वशॉप घों घों करती ग्रीस बहाती रहती है
गोरखा भवन में मंदिर का आहाता फैल गया है
चांदमारी के पास बावड़ी का पानी साफ़ नहीं रहा
राजस्थान से मज़दूर आए
उनके बच्चों की आंखों में धुंआ धुंआ पीलाई

हमारे पिताओं ने धीरे धीरे पुल के आसपास बना लिए मकान
नौकरियां और गृहस्थियां चलाते हुए
इसी खड्ड की रेत बजरी से

खड्ड की पीठ से चिपकने लगीं
ज़्यादा सफल लोगों की शहरी सी दिखती नावाकिफ इमारतें

इस उम्रदराज़ पुल का घिसना तय था
खड्ड के साथ हारने को बजिद्द
छोटा भी पड़ गया मरजाणा
 

4. ठियोग

भेखलटी में धूप सबसे पहले आएगी
ठियोग के शालीबाज़ार के पीछे जब पहुँचेगी
बहुत से लोग तब तक शिमला पहुँच चुके होंगे

राजू ने छोले उबाल लिए होंगे
समोसे तले जा रहे होंगे
बस अड्डे पर घिसे हुए कैसेट बजने लगेंगे

धीरे धीरे धूप नीचे घाटियों तक उतरेगी
लोग ऊपर चढ़ेंगे बूढ़ों की तरह
निर्विकार खच्चरें मटरों की बोरियां लाद लाएँगी

खचाखच भरी पहाड़ी सैरगाह के पिछवाड़े
बसा यह क़स्बा
ट्रकों बसों की आवाजाही से थका
तहसील के दफ़्तरों को लादे खड़ा
सेबों की साज संभाल में माँदा हुआ जाता
सोडियम पके आमों को निहारता
कुछ बोलना चाहता है बोल नहीं पाता

बसें बहुत आती हैं आगे चली जाती हैं
कोई नहीं ऐसी बस खत्म हो जाए यहाँ आकर
बने फिर यहां से जाने के लिए
 

5. गांव की हट्टी में लोकगीत

सुबह होते ही
हट्टी में पहाड़ी गीतों की धमाकेदार कैसेट बजने लगी

चिड़िया लेंटर के झूलते सरिए से उड़कर
खेत के बीच वाले पेड़ पर जा बैठी
जो लोग रुक गए चाय पीने
दस मिनट खड़े सुनते रहे समझने की कोशिश में
किसके हैं क्या हैं बोल इस झांय झांय गीत के

बच्चे आए रबर पेंसिल के साथ ले गए
जालिम से दिखते अँतर्राष्ट्रीय पहलवानों के मुफ़्त स्टिकर
बजती रही कैसेट बेरोक

एक के बाद एक दो ट्रकों के पीछे आई एक बस
बिना रुके धूल उड़ाती निकल गई
किनारे खड़ी भैंस बिदकी नहीं खड़ी रही बेखौफ
चिड़िया अलवत्ता जो अब भैंस की सवारी कर रही थी
बेमालूम ढंग से उड़कर बिजली के खंभे पर जा बैठी
घिसती रही कैसेट

दिहाड़ी से लौटे मज़दूर
दुआ सलाम के वास्ते
पल भर रुके ज़रूर
पड़े नहीं पर भाइयों के कानों में गीत
हालाँकि वही था तब वहाँ
एकमात्र जबर्दस्त शोर

                                 (1995)


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष