अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ: Difference between revisions
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प्रारंभिक सितार-शिक्षा अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ ने प्रसिद्ध बीनकार उस्ताद बाबू खाँ से शुरू हुई। तत्पश्चात् उस्ताद महबूब खाँ से सितार की उच्च स्तरीय तालीम हासिल की। अब तक आप अपने फन में पूरी तरह माहिर हो चुके थे। | |||
==फ़िल्मी जीवन== | ==फ़िल्मी जीवन== | ||
पिता का इन्तकाल होने की वजह से हलीम साहब के सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गई, परिणामतः आपको फ़िल्मी क्षेत्र में जाना पड़ा। यहाँ आपको काफ़ी कामयाबी मिली, साथ ही सारे [[भारत]] में आपके सितार वादन की धूम मच गई। [[आकाशवाणी]] के राष्ट्रीय कार्यक्रमों तथा अखिल भारतीय संगीत सम्मेलनों में अपने सितार वादन से आपने लाखों श्रोताओं की आनन्द-विभोर तथा आश्चर्यचकित किया है। आपने चकंधुन, कल्पना, मध्यमी तथा खुसरूबानी जैसे मधुर [[राग]] निर्मित किए हैं। कुछ दक्षिणी रागों को भी [[उत्तर भारत]] में लोकप्रिय बनाया है। सांस्कृतिक प्रतिनिधिमण्डल के माध्यम से कई बार विदेश भ्रमण कर चुके हैं। | |||
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अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ
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पूरा नाम | अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ |
जन्म | 18 फ़रवरी, 1927 |
जन्म भूमि | इन्दौर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 4 जनवरी, 2017 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | उस्ताद जाफ़र खाँ (पिता) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | सितार वादक |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, शिखर सम्मान |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ के सितार वादन की अपनी अलग शैली है, जिसे लोग 'जाफ़रखानी बाज' कहने लगे हैं। |
अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ (अंग्रेज़ी: Abdul Halim Jaffer Khan, जन्म- (18 फ़रवरी, 1927, इन्दौर; मृत्यु- 4 जनवरी, 2017, मुम्बई) को संगीत की दुनिया में 'सितार का जादूगर' नाम से पुकारा जाता है। इनका चमत्कारिक सितार वादन संगीत से अनभिज्ञ श्रोताओं को भी रसमग्न कर देता है। इनके वादन की अपनी अलग शैली है, जिसे लोग 'जाफ़रखानी बाज' कहने लगे हैं। इसमें मिज़राव का काम कम तथा बाएँ हाथ का काम ज़्यादा होता हैं। कण, मुर्की, खटका आदि का काम भी अधिक रहता है। प्रस्तुतीकरण में बीन तथा सरोद अंग का आभास होता है।
जीवन परिचय
हलीम साहब का जन्म इन्दौर, मध्य प्रदेश के निकटस्थ जावरा नामक गाँव में सन् 1929 में हुआ था। कुछ समय बाद इनका परिवार बंबई चला गया। अब्दुल हलीम के पिता उस्ताद जाफ़र खाँ भी सितार के अच्छे ज्ञाता थे। बचपन से ही सांगीतिक वातावरण मिलने से संगीत के प्रति लगाव हो जाना स्वाभाविक था।
शिक्षा
प्रारंभिक सितार-शिक्षा अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ ने प्रसिद्ध बीनकार उस्ताद बाबू खाँ से शुरू हुई। तत्पश्चात् उस्ताद महबूब खाँ से सितार की उच्च स्तरीय तालीम हासिल की। अब तक आप अपने फन में पूरी तरह माहिर हो चुके थे।
फ़िल्मी जीवन
पिता का इन्तकाल होने की वजह से हलीम साहब के सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गई, परिणामतः आपको फ़िल्मी क्षेत्र में जाना पड़ा। यहाँ आपको काफ़ी कामयाबी मिली, साथ ही सारे भारत में आपके सितार वादन की धूम मच गई। आकाशवाणी के राष्ट्रीय कार्यक्रमों तथा अखिल भारतीय संगीत सम्मेलनों में अपने सितार वादन से आपने लाखों श्रोताओं की आनन्द-विभोर तथा आश्चर्यचकित किया है। आपने चकंधुन, कल्पना, मध्यमी तथा खुसरूबानी जैसे मधुर राग निर्मित किए हैं। कुछ दक्षिणी रागों को भी उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाया है। सांस्कृतिक प्रतिनिधिमण्डल के माध्यम से कई बार विदेश भ्रमण कर चुके हैं।
सम्मान और पुरस्कार
- पद्मभूषण (2006)
- शिखर सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार, 1991)
- गौरव पुरस्कार (महाराष्ट्र सरकार, 1990)
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987)
- पद्मश्री (1970)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Ustad Abdul Halim Jaffer Khan's Tracks
- अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ का सितार वादन (यू-ट्यूब)
- सूफ़ियाना रंग -अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ (यू-ट्यूब)
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