बृद्धकाल कूप, वाराणसी: Difference between revisions
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'''बृद्धकाल कूप''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[वाराणसी]] नगर में स्थित है। मैदागिन चौमुहानी के पास दारानगर मुहल्ले में है, कलश कूप कश्मीरीमल की हवेली, चन्द्र कूप सिद्धेश्वरी मुहल्ले में, धर्म कूप मीरघाट मुहल्ले में, शुक्र कूप कालिका गली में तथा शुभोदक कूप छित्तनपुरा के ओंकालेश्वर मुहल्ले में<ref>अराजी संख्या 2074 पर स्थित है, जिसे अवांछनीय तत्वों ने कूप को हाल ही में पाटकर | '''बृद्धकाल कूप''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[वाराणसी]] नगर में स्थित है। मैदागिन चौमुहानी के पास दारानगर मुहल्ले में है, कलश कूप कश्मीरीमल की हवेली, चन्द्र कूप सिद्धेश्वरी मुहल्ले में, धर्म कूप मीरघाट मुहल्ले में, शुक्र कूप कालिका गली में तथा शुभोदक कूप छित्तनपुरा के ओंकालेश्वर मुहल्ले में<ref>अराजी संख्या 2074 पर स्थित है, जिसे अवांछनीय तत्वों ने कूप को हाल ही में पाटकर क़ब्ज़ा कर लिया है।</ref> पौराणिक मान्यता रही है कि [[काशी]] के कुण्ड व कूप प्राचीन काल में [[गंगा]] के समानान्तर मिलते रहे हैं। धीरे-धीरे गंगा की बड़ी धारा के समक्ष कुण्डों की छोटी व संक्षिप्त धारा विलुप्त होती गई और इस तरह कई सामानान्तर धाराओं का लोप हो गया। कुछ बचे-खुचे कुण्ड ही रह गये हैं, जो अपना अस्तित्व किसी पर्व आदि के कारण बनाये रखने में सफल रहे हैं। | ||
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सरकारी उपेक्षा और कुण्ड की स्वच्छता के प्रति लोगों की उदासीनता के कारण यह जल कुण्ड भी धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। इसके चारों तरफ भवनों के कारण इस पर अतिक्रमण का खतरा बना हुआ है। यदि शीघ्र कोई ठोस कारगर प्रयास नहीं किया गया तो इसके विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है। | सरकारी उपेक्षा और कुण्ड की स्वच्छता के प्रति लोगों की उदासीनता के कारण यह जल कुण्ड भी धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। इसके चारों तरफ भवनों के कारण इस पर अतिक्रमण का खतरा बना हुआ है। यदि शीघ्र कोई ठोस कारगर प्रयास नहीं किया गया तो इसके विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है। | ||
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Latest revision as of 14:10, 9 May 2021
बृद्धकाल कूप उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी नगर में स्थित है। मैदागिन चौमुहानी के पास दारानगर मुहल्ले में है, कलश कूप कश्मीरीमल की हवेली, चन्द्र कूप सिद्धेश्वरी मुहल्ले में, धर्म कूप मीरघाट मुहल्ले में, शुक्र कूप कालिका गली में तथा शुभोदक कूप छित्तनपुरा के ओंकालेश्वर मुहल्ले में[1] पौराणिक मान्यता रही है कि काशी के कुण्ड व कूप प्राचीन काल में गंगा के समानान्तर मिलते रहे हैं। धीरे-धीरे गंगा की बड़ी धारा के समक्ष कुण्डों की छोटी व संक्षिप्त धारा विलुप्त होती गई और इस तरह कई सामानान्तर धाराओं का लोप हो गया। कुछ बचे-खुचे कुण्ड ही रह गये हैं, जो अपना अस्तित्व किसी पर्व आदि के कारण बनाये रखने में सफल रहे हैं।
वर्तमान में
सरकारी उपेक्षा और कुण्ड की स्वच्छता के प्रति लोगों की उदासीनता के कारण यह जल कुण्ड भी धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। इसके चारों तरफ भवनों के कारण इस पर अतिक्रमण का खतरा बना हुआ है। यदि शीघ्र कोई ठोस कारगर प्रयास नहीं किया गया तो इसके विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अराजी संख्या 2074 पर स्थित है, जिसे अवांछनीय तत्वों ने कूप को हाल ही में पाटकर क़ब्ज़ा कर लिया है।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख