कमलशील बौद्धाचार्य: Difference between revisions

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*आचार्य कमलशील आचार्य [[शान्तरक्षित बौद्धाचार्य|शान्तरक्षित]] के प्रमुख शिष्यों में अन्यतम थे। यद्यपि आचार्य के जन्म आदि के बारे में किसी निश्चित तिथि पर विद्वान् एकमत नहीं हैं, फिर भी भोट देश के नरेश ठिसोङ् देउचन<ref>742-798</ref> के शासनकाल में 792 ईसवीय वर्ष के आसपास तिब्बत पहुँचे थे। आचार्य नालन्दा के अग्रणी विद्वानों में से एक थे। उनकी विद्वता का प्रमाण उनकी गम्भीर एवं विशाल कृतियाँ हैं।  
*आचार्य कमलशील आचार्य [[शान्तरक्षित बौद्धाचार्य|शान्तरक्षित]] के प्रमुख शिष्यों में अन्यतम थे। यद्यपि आचार्य के जन्म आदि के बारे में किसी निश्चित तिथि पर विद्वान् एकमत नहीं हैं, फिर भी भोट देश के नरेश ठिसोङ् देउचन<ref>742-798</ref> के शासनकाल में 792 ईसवीय वर्ष के आसपास तिब्बत पहुँचे थे। आचार्य नालन्दा के अग्रणी विद्वानों में से एक थे। उनकी विद्वता का प्रमाण उनकी गम्भीर एवं विशाल कृतियाँ हैं।  
*भोट देश में उनका पहुँचना तब होता है, जब समस्त भोट जनता चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग के कुदर्शन से प्रभावित होकर दिग्भ्रमित हो रही थी और भारतीय [[बौद्ध]] धर्म के विलोप का खतरा उपस्थित हो गया था। मन की विचारहीनता की अवस्था को ह्रशङ्ग-बुद्धत्व-प्राप्ति का उपाय बता रहे थे। उस समय शान्तरक्षित की मृत्यु हो चुकी थी और आचार्य पद्मसम्भव तिब्बत से अन्यत्र जा चुके थे। यद्यपि राजा ठिसोङ् देउचन भारतीय बौद्ध धर्म के पक्षपाती थे, किन्तु ह्रशङ्ग के नवीन अनुयायियों का समझा पाने में असमर्थ थे। तब आचार्य शान्तरक्षित के तिब्बती शिष्य ने उन्हें आचार्य शान्तरक्षित की भविष्यवाणी का स्मरण कराया, जिसमें कहा गया था कि जब तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों में आन्तरिक विवाद उत्पन्न होगा, उस समय आचार्य कमलशील को आमन्त्रित करके उनसे शास्त्रार्थ करवाना।  
*भोट देश में उनका पहुँचना तब होता है, जब समस्त भोट जनता चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग के कुदर्शन से प्रभावित होकर दिग्भ्रमित हो रही थी और भारतीय [[बौद्ध]] धर्म के विलोप का ख़तरा उपस्थित हो गया था। मन की विचारहीनता की अवस्था को ह्रशङ्ग-बुद्धत्व-प्राप्ति का उपाय बता रहे थे। उस समय शान्तरक्षित की मृत्यु हो चुकी थी और आचार्य पद्मसम्भव तिब्बत से अन्यत्र जा चुके थे। यद्यपि राजा ठिसोङ् देउचन भारतीय बौद्ध धर्म के पक्षपाती थे, किन्तु ह्रशङ्ग के नवीन अनुयायियों का समझा पाने में असमर्थ थे। तब आचार्य शान्तरक्षित के तिब्बती शिष्य ने उन्हें आचार्य शान्तरक्षित की भविष्यवाणी का स्मरण कराया, जिसमें कहा गया था कि जब तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों में आन्तरिक विवाद उत्पन्न होगा, उस समय आचार्य कमलशील को आमन्त्रित करके उनसे शास्त्रार्थ करवाना।  
*तदनुसार राजा के द्वारा आचार्य कमलशील को तिब्बत बुलाया गया और वे वहाँ पहुँचे। उन्होंने चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग को शास्त्रार्थ में पराजित किया और भारतीय बुद्धशासन की वहाँ पुन: प्रतिष्ठा की। भोट नरेश ने आचार्य कमलशील का सम्मान किया और उन्हें आध्यात्मिक विद्या के विभाग का प्रधान घोषित किया तथा चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग को देश से निकाल दिया। इस तरह आचार्य ने वहाँ आर्य [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] के सिद्धान्त एवं सर्वास्तिवादी विनय की रक्षा की।  
*तदनुसार राजा के द्वारा आचार्य कमलशील को तिब्बत बुलाया गया और वे वहाँ पहुँचे। उन्होंने चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग को शास्त्रार्थ में पराजित किया और भारतीय बुद्धशासन की वहाँ पुन: प्रतिष्ठा की। भोट नरेश ने आचार्य कमलशील का सम्मान किया और उन्हें आध्यात्मिक विद्या के विभाग का प्रधान घोषित किया तथा चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग को देश से निकाल दिया। इस तरह आचार्य ने वहाँ आर्य [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] के सिद्धान्त एवं सर्वास्तिवादी विनय की रक्षा की।  
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Latest revision as of 13:45, 21 March 2014

आचार्य कमलशील

  • आचार्य कमलशील आचार्य शान्तरक्षित के प्रमुख शिष्यों में अन्यतम थे। यद्यपि आचार्य के जन्म आदि के बारे में किसी निश्चित तिथि पर विद्वान् एकमत नहीं हैं, फिर भी भोट देश के नरेश ठिसोङ् देउचन[1] के शासनकाल में 792 ईसवीय वर्ष के आसपास तिब्बत पहुँचे थे। आचार्य नालन्दा के अग्रणी विद्वानों में से एक थे। उनकी विद्वता का प्रमाण उनकी गम्भीर एवं विशाल कृतियाँ हैं।
  • भोट देश में उनका पहुँचना तब होता है, जब समस्त भोट जनता चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग के कुदर्शन से प्रभावित होकर दिग्भ्रमित हो रही थी और भारतीय बौद्ध धर्म के विलोप का ख़तरा उपस्थित हो गया था। मन की विचारहीनता की अवस्था को ह्रशङ्ग-बुद्धत्व-प्राप्ति का उपाय बता रहे थे। उस समय शान्तरक्षित की मृत्यु हो चुकी थी और आचार्य पद्मसम्भव तिब्बत से अन्यत्र जा चुके थे। यद्यपि राजा ठिसोङ् देउचन भारतीय बौद्ध धर्म के पक्षपाती थे, किन्तु ह्रशङ्ग के नवीन अनुयायियों का समझा पाने में असमर्थ थे। तब आचार्य शान्तरक्षित के तिब्बती शिष्य ने उन्हें आचार्य शान्तरक्षित की भविष्यवाणी का स्मरण कराया, जिसमें कहा गया था कि जब तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों में आन्तरिक विवाद उत्पन्न होगा, उस समय आचार्य कमलशील को आमन्त्रित करके उनसे शास्त्रार्थ करवाना।
  • तदनुसार राजा के द्वारा आचार्य कमलशील को तिब्बत बुलाया गया और वे वहाँ पहुँचे। उन्होंने चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग को शास्त्रार्थ में पराजित किया और भारतीय बुद्धशासन की वहाँ पुन: प्रतिष्ठा की। भोट नरेश ने आचार्य कमलशील का सम्मान किया और उन्हें आध्यात्मिक विद्या के विभाग का प्रधान घोषित किया तथा चीनी भिक्षु ह्रशङ्ग को देश से निकाल दिया। इस तरह आचार्य ने वहाँ आर्य नागार्जुन के सिद्धान्त एवं सर्वास्तिवादी विनय की रक्षा की।

कृतियाँ

उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं, जिन्हें भोटदेशीय तन-ग्युर संग्रह के आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है : (1) आर्य सप्तशतिका प्रज्ञापारमिता टीका,
(2) आर्य वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता टीका,
(3) मध्यमकालङ्कारपञ्जिका,
(4) मध्यमकालोक,
(5) तत्त्वालोक प्रकरण,
(6) सर्वधर्मनि: स्वभावतासिद्धि,
(7) बोधिचित्तभावना,
(8) भावनाक्रम,
(9) भावनायोगावतार,
(10) आर्य विकल्पप्रवेशधारणी-टीका,
(11) आर्यशालिस्तम्ब-टीका,
(12) श्रद्धोत्पादप्रदीप,
(13) न्यायबिन्दु पूर्वपक्षसंक्षेप,
(14) तत्त्वसंग्रहपञ्जिका,
(15) श्रमणपञ्चाशत्कारिकापदाभिस्मरण,
(16) ब्राह्मणीदक्षिणाम्बायै अष्टदु:खविशेषनिर्देश,
(17) प्रणिधानद्वयविधा।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 742-798

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