देर रात कारोबार -अजेय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "अजेय् की रचनाएँ" to "अजेय की रचनाएँ")
m (Text replacement - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{स्वतंत्र लेख}}")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
{{स्वतंत्र लेखन नोट}}
{| style="background:transparent; float:right"
{| style="background:transparent; float:right"
|-
|-
Line 89: Line 90:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समकालीन कवि}}
{{समकालीन कवि}}
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:अजेय]][[Category:कविता]]
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:अजेय]][[Category:कविता]]

Latest revision as of 13:18, 26 January 2017

चित्र:Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
देर रात कारोबार -अजेय
कवि अजेय
जन्म स्थान (सुमनम, केलंग, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अजेय की रचनाएँ

देर रात को
सूनी गली मे
हाँक लगाता है कोई --
"आग ले लो........आग !”

उस ने पोटली खोल कर
छोटी बड़ी संदूकचियाँ निकालीं हैं
और बिछा दिया है सौदा--
"ये एक दम सुच्चा माल
देवताओं के देश से आया !!”

झुर्रियों वाला एक चेहरा है ताबदार, तना हुआ
मुट्ठियों से झर रहे थक्के पिघलती रोशनी के
मिट्टी पर गिरते ही ठोस हो जा रहे

“ये आखिरी चीज़ बची है
जो शुरू से ही ज़िन्दा है !!”

ज़ंग खाई उन खखरी पिटारियों में
बड़े जतन से सहेज कर रखी हुई आग की लपटें
उफन रहीं छेदों और झिर्रियों में से
और मैं निश्चेष्ठ लेटा हुआ अनमना अधमरा सा

“ये देखिए, अपने आप फैलती और सिमट जाती आप ही !!”

एकाएक बाहर दौड़ा हूँ बदहवास
सपनों के उस अधरंग से उठकर
लेकिन दहलीज़ पर ही ठिठक गया हूँ
खड़ा हुआ सहम कर बचता उन असली चिनगारियों से
देखता यह अद्भुत कारोबार ...
“मिलावट की कोई गुंजाईश नहीं
यह होती है या फिर होती ही नहीं !!”

 
कोई लेन –देन नहीं हो रहा
कोई मोल भाव नहीं
और उस नायाब ताम झाम को घेरे हुए कितने ही गाहक
उतावले
आशंकित
देर रात की दहशत में
बेबूझ
और तिलमिलाए हुए

“ये देखिए कैसे इस का ताप
गुप चुप पहुँच जाता
चीज़ों में अपने आप !!”

क्या किया जाए
कि सभी को चाहिए मुट्ठी भर आग
इस ठंडे अँधेरे में !



जनवरी 2007


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष