टीका: Difference between revisions
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*मस्तकस्थ टीका के सादृश्य से ही ग्रंथव्याख्या को भी 'टीका' कहा जाने लगा। | *मस्तकस्थ टीका के सादृश्य से ही ग्रंथव्याख्या को भी 'टीका' कहा जाने लगा। | ||
*[[ग्रंथ]] के ऊर्ध्व भाग में टीका के न | *[[ग्रंथ]] के ऊर्ध्व भाग में टीका के न आने पर उसे पत्र के निचले भाग में भी लिख लिया जाता था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=288|url=}}</ref> | ||
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चित्र:Disamb2.jpg टीका | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- टीका (बहुविकल्पी) |
टीका ग्रंथों के भाष्य अथवा विवरण लेखों को कहा जाता है।[1]
- वास्तव में 'टीका' ललाट में लगायी जाने वाली कुंकुम आदि की रेखा को कहते हैं।
- इसी प्रकार प्राचीन हस्त लेखपत्र के केन्द्र या मध्य स्थल में मूल रचना लिखी जाती थी और ऊर्ध्व भाग में ललाट के तिलक की तरह मूल की व्याख्या लिखी जाती थी।
- मस्तकस्थ टीका के सादृश्य से ही ग्रंथव्याख्या को भी 'टीका' कहा जाने लगा।
- ग्रंथ के ऊर्ध्व भाग में टीका के न आने पर उसे पत्र के निचले भाग में भी लिख लिया जाता था।[2]
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