लंका: Difference between revisions

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'''लंका''' [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] पौराणिक ग्रंथों तथा मान्यताओं के अनुसार [[रामायण]] काल में [[रावण]] की राजधानी थी। इसकी स्थिति वर्तमान 'सिंहल' (सौलोन) या लंका द्वीप में मानी जाती है। माना जाता है कि [[मय दानव]] ने इस नगरी को निर्मित किया था, किन्तु दूसरी परम्परा के अनुसार देवशिल्पी [[विश्वकर्मा]] द्वारा इसका निर्माण माना जाता है। चित्रकूट पर्वत के बीच [[समुद्र|समुद्रों]] से घिरी [[कुबेर]] की स्वर्ग नगरी लंका को [[रावण]] ने अपने पराक्रम से छीन लिया था। यद्यपि आधुनिक [[श्रीलंका|लंका]] में इसका किंचित मात्र भी उल्लेख नहीं प्राप्त होता है, किन्तु [[राम]]-कथा के प्रसंग में '[[वाल्मीकि रामायण]]' से लेकर आज तक लिखे गये समस्त राम-काव्यों में इसका प्रयोग मिलता है।
'''लंका''' [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] पौराणिक ग्रंथों तथा मान्यताओं के अनुसार [[रामायण]] काल में [[रावण]] की राजधानी थी। इसकी स्थिति वर्तमान 'सिंहल' (सौलोन) या लंका द्वीप में मानी जाती है। माना जाता है कि [[मय दानव]] ने इस नगरी को निर्मित किया था, किन्तु दूसरी परम्परा के अनुसार देवशिल्पी [[विश्वकर्मा]] द्वारा इसका निर्माण माना जाता है। चित्रकूट पर्वत के बीच [[समुद्र|समुद्रों]] से घिरी [[कुबेर]] की स्वर्ग नगरी लंका को [[रावण]] ने अपने पराक्रम से छीन लिया था। यद्यपि आधुनिक [[श्रीलंका|लंका]] में इसका किंचित मात्र भी उल्लेख नहीं प्राप्त होता है, किन्तु [[राम]]-कथा के प्रसंग में '[[वाल्मीकि रामायण]]' से लेकर आज तक लिखे गये समस्त राम-काव्यों में इसका प्रयोग मिलता है।
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[[चित्र:Hanumaan.jpg|thumb|250px|right|हनुमानजी]] लंका हिन्दू पौराणिक ग्रंथों तथा मान्यताओं के अनुसार रामायण काल में रावण की राजधानी थी। इसकी स्थिति वर्तमान 'सिंहल' (सौलोन) या लंका द्वीप में मानी जाती है। माना जाता है कि मय दानव ने इस नगरी को निर्मित किया था, किन्तु दूसरी परम्परा के अनुसार देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा इसका निर्माण माना जाता है। चित्रकूट पर्वत के बीच समुद्रों से घिरी कुबेर की स्वर्ग नगरी लंका को रावण ने अपने पराक्रम से छीन लिया था। यद्यपि आधुनिक लंका में इसका किंचित मात्र भी उल्लेख नहीं प्राप्त होता है, किन्तु राम-कथा के प्रसंग में 'वाल्मीकि रामायण' से लेकर आज तक लिखे गये समस्त राम-काव्यों में इसका प्रयोग मिलता है।

पौराणिक उल्लेख

लंका 'त्रिकूट' नामक पर्वत पर स्थित थी। यह नगरी अपने ऐश्वर्य और वैभव की पराकाष्ठा के कारण स्वर्ण-मयी कही जाती थी। वाल्मीकि ने अरण्यकाण्ड[1] और सुन्दरकाण्ड[2] में लंका का सुदर वर्णन किया है-

'प्रदोष्काले हनुमानंस्तूर्णमुत्पत्य वीर्यवान्, प्रविवेश पुरीं रम्यां प्रविभक्तां महापथाम्, प्रासादमालां वितता स्तभैः काचनसनिभैः, शातकुभनिभैर्जालैर्गधर्वनगरोपमाम्, सप्तभौमाष्टभौमैश्च स ददर्श महापुरीम्; स्थलैः स्फटिकसंकीर्णः कार्तस्वरांविभूषितैः, तैस्ते शुशभिरेतानि भवान्यत्र रक्षसाम्।'

भारत और लंका के बीच के समुद्र पर पुल बनाकर श्रीरामचंद्र अपनी सेना को लंका ले गए थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भारत के दक्षिणतम भाग में स्थित महेन्द्र नामक पर्वत से कूदकर श्रीराम के परम भक्त हनुमान समुद्र पार लंका पहुंचे थे। रामचंद्रजी की सेना ने लंका में पहुंचकर समुद्र तट के निकट सुवेल पर्वत पर पहला शिविर बनाया था। लंका और भारत के बीच के उथले समुद्र में जो जलमग्न पर्वत श्रेणी है, उसके एक भाग को वाल्मीकि रामायण में मैनाक कहा गया है।[3]

वाल्मीकि रामायण का वर्णन

वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड[4] में भी इस रम्यनगरी का मनोहर वर्णन है, जिसका मुख्य भाग इस प्रकार है- 'शारदाम्बुधरप्रख्यैभंवनैरुपशोभिताम्, सागरोपम निर्घोषां सागरानिलसेविताम्। सुपुष्टबलसंपुष्टां यथैव विटपावतीम् चारुतोरणनिर्यूहां पांडूरद्वारतोणाम्। भुजगाचरितां गुप्तां शुभां भोगवतीमिव, तां सविद्यद्घनाकीर्णा ज्योतिर्गणनिषेदिताम्। चंडमारुतनिर्हृआदां यथा चाप्यमरावतीम् शातकुंभेन महता प्राकारेणभिसंवृताम् किंकणीजालघोषाभि: पताकाभिरंलंकृताम्, आसाद्य सहसा हृष्ट: प्राकारमभिपेदिवान्। वैदूर्यकृतसोपानै:, स्फटिक मुक्ताभिर्मणिकुट्टिमभूषितै: तप्तहाटक निर्यूहै: राजतामलपांडूरै:, वैदूर्यकृतसोपानै: स्फटिकान्तरपांसुभि:, चारुसंजवनोपेतै: खमिवोत्पतितै: शुभै:, क्रौंचबर्हिणसंघुष्टैरजिहंसनिषेवितै:, तूर्याभरणनिर्घोर्वै: सर्वत: परिनादिताम्। वस्वोकसारप्रतिमां समीक्ष्य नगरी तत:, खमिवोत्पतितां लंकां जहर्ष हनुमान् कपि:।'[5][3]

हनुमान ने सीता से अशोक वाटिका में भेट करने के उपरान्त लंका का एक भाग जलाकर भस्म कर दिया था। सुन्दरकाण्ड[6] और सुन्दरकाण्ड 14 में लंका के अनेक कृत्रिम वनों एवं तड़ागों का वर्णन है। राम ने रावण के वधोपरान्त लंका का राज्य विभीषण को दे दिया था।

बौद्ध धर्म का प्रचार

बौद्धकालीन लंका का इतिहास 'महावंश' तथा 'दीपवंश' नामक पाली ग्रंथो में प्राप्त होता है। अशोक के पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा ने सर्वप्रथम लंका में बौद्ध मत का प्रचार किया था।


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टीका टिप्पणी और सन्दर्भ

  1. अरण्यकाण्ड 55,7-9
  2. सुन्दरकाण्ड 2,48-50
  3. 3.0 3.1 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 807 |
  4. सुन्दरकाण्ड 3
  5. सुन्दरकाण्ड 3,2-3-4-5-6-7-8-9-10-11-12
  6. सुन्दरकाण्ड 54,8-9

संबंधित लेख