मकरध्वज: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''मकरध्वज''' [[श्रीराम|भगवान श्रीराम]] के परम [[भक्त]] [[हनुमान]] के पुत्र थे। यद्यपि हनुमान ब्रह्मचारी थे, फिर भी वे एक पुत्र के [[पिता]] बने थे। पौराणिक कथा के अनुसार जब [[लंका]] में माता सीता की खोज में गए हनुमान को [[मेघनाद]] ने बंदी बना लिया, तब उन्हें [[रावण]] के समक्ष लाया गया। रावण के आदेश से हनुमान जी की पूँछ में [[आग]] लगा दी गयी। इसी जलती हुई पूँछ से हनुमान ने सम्पूर्ण लंका नगरी को जला डाला। तीव्र गर्मी से व्याकुल तथा पूँछ की आग को शांत करने हेतु हनुमान [[समुद्र]] में कूद पड़े, तभी उनके पसीने की एक बूँद [[जल]] में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई। इसी मछली से मकरध्वज उत्पन्न हुआ, जो हनुमान के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था।
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
{{tocright}}
|चित्र=Makaradhwaja-Son-Of-Hanuman.jpg
|चित्र का नाम=मकरध्वज
|विवरण='मकरध्वज' पौराणिक मान्यताओं के अनुसार [[हनुमान]] के पुत्र थे। असुरराज [[अहिरावण]] ने इन्हें [[पाताल|पाताल पुरी]] का रक्षक नियुक्त किया था।
|शीर्षक 1=पिता
|पाठ 1=[[हनुमान]]
|शीर्षक 2=जन्म विवरण
|पाठ 2=[[लंका]] दहन के पश्चात् [[हनुमान]] गर्मी से छुटकारा पाने हेतु [[समुद्र]] में कूद गए थे, तब उनके पसीने की बूँद को एक [[मछली]] ने निगल लिया, जिससे मकरध्वज का जन्म हुआ।
|शीर्षक 3=
|पाठ 3=
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|शीर्षक 6=
|पाठ 6=
|शीर्षक 7=
|पाठ 7=
|शीर्षक 8=
|पाठ 8=
|शीर्षक 9=
|पाठ 9=
|शीर्षक 10=
|पाठ 10=
|संबंधित लेख=[[रामायण]], [[राम]], [[लक्ष्मण]], [[सीता]], [[हनुमान]], [[रावण]], [[मेघनाद]]
|अन्य जानकारी=[[अहिरावण]] के वध के पश्चात् मकरध्वज का राज्याभिषेक [[राम|श्रीराम]] ने किया था और उन्हें [[पाताल|पाताल पुरी]] का नया राजा नियुक्त कर दिया।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
 
'''मकरध्वज''' [[श्रीराम|भगवान श्रीराम]] के परम [[भक्त]] [[हनुमान]] के पुत्र थे। यद्यपि हनुमान ब्रह्मचारी थे, फिर भी वे एक पुत्र के [[पिता]] बने थे। पौराणिक कथा के अनुसार जब [[लंका]] में माता सीता की खोज में गए हनुमान को [[मेघनाद]] ने बंदी बना लिया, तब उन्हें [[रावण]] के समक्ष लाया गया। रावण के आदेश से हनुमान जी की पूँछ में [[आग]] लगा दी गयी। इसी जलती हुई पूँछ से हनुमान ने सम्पूर्ण लंका नगरी को जला डाला। तीव्र गर्मी से व्याकुल तथा पूँछ की आग को शांत करने हेतु हनुमान [[समुद्र]] में कूद पड़े, तभी उनके पसीने की एक बूँद [[जल]] में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई। इसी मछली से मकरध्वज उत्पन्न हुआ, जो हनुमान के समान ही महान् पराक्रमी और तेजस्वी था।
==जन्म कथा==
==जन्म कथा==
पवनपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे, लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है। '[[वाल्मीकि रामायण]]' के अनुसार, [[लंका]] जलाते समय आग की तपिश के कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए [[समुद्र]] में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने की एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी [[मछली]] ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर में बदल गई। एक दिन [[पाताल]] के असुरराज [[अहिरावण]] के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र 'मकरध्वज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।<ref>{{cite web |url= http://kathapuran.blogspot.in/2012/10/blog-post_6778.html|title= हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा|accessmonthday= 13 जनवरी|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पुराण कथा|language= हिन्दी}}</ref>
पवनपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे, लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है। '[[वाल्मीकि रामायण]]' के अनुसार, [[लंका]] जलाते समय आग की तपिश के कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए [[समुद्र]] में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने की एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी [[मछली]] ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर में बदल गई। एक दिन [[पाताल]] के असुरराज [[अहिरावण]] के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र 'मकरध्वज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।<ref name="aa">{{cite web |url= http://kathapuran.blogspot.in/2012/10/blog-post_6778.html|title= हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा|accessmonthday= 13 जनवरी|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पुराण कथा|language= हिन्दी}}</ref>
==हनुमान से भेंट==
==हनुमान से भेंट==
जब [[राम]]-[[रावण]] युद्ध हो रहा था, तब रावण की आज्ञानुसार अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया। उनके अपहरण से वानर सेना भयभीत व शोकाकुल हो गयी। लेकिन [[विभीषण]] ने यह भेद [[हनुमान]] के समक्ष प्रकट कर दिया। तब राम-लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमान जी पाताल पुरी पहुँचे। जब उन्होंने पाताल के द्वार पर एक वानर को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा। मकरध्वज अपना परिचय देते हुआ बोला- "मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का द्वारपाल हूँ।"
जब [[राम]]-[[रावण]] युद्ध हो रहा था, तब रावण की आज्ञानुसार अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया। उनके अपहरण से वानर सेना भयभीत व शोकाकुल हो गयी। लेकिन [[विभीषण]] ने यह भेद [[हनुमान]] के समक्ष प्रकट कर दिया। तब राम-लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमान जी पाताल पुरी पहुँचे। जब उन्होंने पाताल के द्वार पर एक वानर को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा। मकरध्वज अपना परिचय देते हुआ बोला- "मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का द्वारपाल हूँ।"


मकरध्वज की बात सुनकर हनुमान क्रोधित होकर बोले- "यह तुम क्या कह रहे हो? दुष्ट! मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। फिर भला तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?" हनुमान का परिचय पाते ही मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें प्रणाम कर अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई। हनुमानजी ने भी मान लिया कि वह उनका ही पुत्र है। लेकिन यह कहकर कि वे अभी अपने प्रभु [[राम|श्रीराम]] और [[लक्ष्मण]] को लेने आए हैं, जैसे ही द्वार की ओर बढ़े वैसे ही मकरध्वज उनका मार्ग रोकते हुए बोला- "पिताश्री! यह सत्य है कि मैं आपका पुत्र हूँ, लेकिन अभी मैं अपने स्वामी की सेवा में हूँ। इसलिए आप अन्दर नहीं जा सकते।"
मकरध्वज की बात सुनकर हनुमान क्रोधित होकर बोले- "यह तुम क्या कह रहे हो? दुष्ट! मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। फिर भला तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?" हनुमान का परिचय पाते ही मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें प्रणाम कर अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई। हनुमानजी ने भी मान लिया कि वह उनका ही पुत्र है। लेकिन यह कहकर कि वे अभी अपने प्रभु [[राम|श्रीराम]] और [[लक्ष्मण]] को लेने आए हैं, जैसे ही द्वार की ओर बढ़े वैसे ही मकरध्वज उनका मार्ग रोकते हुए बोला- "पिताश्री! यह सत्य है कि मैं आपका पुत्र हूँ, लेकिन अभी मैं अपने स्वामी की सेवा में हूँ। इसलिए आप अन्दर नहीं जा सकते।"<ref name="aa"/>
==पिता से युद्ध==
==पिता से युद्ध==
हनुमान ने मकरध्वज को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, किंतु वह द्वार से नहीं हटा। तब दोनों में घोर य़ुद्ध शुरू हो गया। देखते-ही-देखते हनुमान जी उसे अपनी पूँछ में बाँधकर [[पाताल]] में प्रवेश कर गए। हनुमान सीधे देवी मंदिर में पहुँचे, जहाँ [[अहिरावण]] राम-लक्ष्मण की बलि देने वाला था। हनुमान जी को देखकर चामुंडा देवी पाताल लोक से प्रस्थान कर गईं। तब हनुमान जी देवी-रूप धारण करके वहाँ स्थापित हो गए। कुछ देर के बाद अहिरावण वहाँ आया और [[पूजा]] अर्चना करके जैसे ही उसने राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तलवार उठाई, वैसे ही भयंकर गर्जन करते हुए [[हनुमान|हनुमान जी]] प्रकट हो गए और उसी तलवार से अहिरावण का वध कर दिया।
हनुमान ने मकरध्वज को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, किंतु वह द्वार से नहीं हटा। तब दोनों में घोर य़ुद्ध शुरू हो गया। देखते-ही-देखते हनुमान जी उसे अपनी पूँछ में बाँधकर [[पाताल]] में प्रवेश कर गए। हनुमान सीधे देवी मंदिर में पहुँचे, जहाँ [[अहिरावण]] राम-लक्ष्मण की बलि देने वाला था। हनुमान जी को देखकर चामुंडा देवी पाताल लोक से प्रस्थान कर गईं। तब हनुमान जी देवी-रूप धारण करके वहाँ स्थापित हो गए। कुछ देर के बाद अहिरावण वहाँ आया और [[पूजा]] अर्चना करके जैसे ही उसने राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तलवार उठाई, वैसे ही भयंकर गर्जन करते हुए [[हनुमान|हनुमान जी]] प्रकट हो गए और उसी तलवार से अहिरावण का वध कर दिया।
==पाताल के राजा==
==पाताल के राजा==
हनुमान ने राम-लक्ष्मण को बंधन से मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा- "हनुमान! तुम्हारी पूँछ में यह कौन बँधा है? बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है। इसे बंधन मुक्त कर दो।" हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। मकरध्वज ने श्रीराम के समक्ष सिर झुका लिया। तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे [[पाताल]] का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे। यह सुनकर मकरध्वज ने तीनों को प्रणाम किया। तीनों उसे आशीर्वाद देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए। इस प्रकार मकरध्वज हनुमान पुत्र कहलाए।
हनुमान ने राम-लक्ष्मण को बंधन से मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा- "हनुमान! तुम्हारी पूँछ में यह कौन बँधा है? बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है। इसे बंधन मुक्त कर दो।" हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। मकरध्वज ने श्रीराम के समक्ष सिर झुका लिया। तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे [[पाताल]] का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे। यह सुनकर मकरध्वज ने तीनों को प्रणाम किया। तीनों उसे आशीर्वाद देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए। इस प्रकार मकरध्वज हनुमान पुत्र कहलाए।<ref name="aa"/>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{रामायण}}
{{रामायण}}
[[Category:रामायण]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:रामायण]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 11:28, 1 August 2017

मकरध्वज
विवरण 'मकरध्वज' पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान के पुत्र थे। असुरराज अहिरावण ने इन्हें पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त किया था।
पिता हनुमान
जन्म विवरण लंका दहन के पश्चात् हनुमान गर्मी से छुटकारा पाने हेतु समुद्र में कूद गए थे, तब उनके पसीने की बूँद को एक मछली ने निगल लिया, जिससे मकरध्वज का जन्म हुआ।
संबंधित लेख रामायण, राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, रावण, मेघनाद
अन्य जानकारी अहिरावण के वध के पश्चात् मकरध्वज का राज्याभिषेक श्रीराम ने किया था और उन्हें पाताल पुरी का नया राजा नियुक्त कर दिया।

मकरध्वज भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान के पुत्र थे। यद्यपि हनुमान ब्रह्मचारी थे, फिर भी वे एक पुत्र के पिता बने थे। पौराणिक कथा के अनुसार जब लंका में माता सीता की खोज में गए हनुमान को मेघनाद ने बंदी बना लिया, तब उन्हें रावण के समक्ष लाया गया। रावण के आदेश से हनुमान जी की पूँछ में आग लगा दी गयी। इसी जलती हुई पूँछ से हनुमान ने सम्पूर्ण लंका नगरी को जला डाला। तीव्र गर्मी से व्याकुल तथा पूँछ की आग को शांत करने हेतु हनुमान समुद्र में कूद पड़े, तभी उनके पसीने की एक बूँद जल में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई। इसी मछली से मकरध्वज उत्पन्न हुआ, जो हनुमान के समान ही महान् पराक्रमी और तेजस्वी था।

जन्म कथा

पवनपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे, लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है। 'वाल्मीकि रामायण' के अनुसार, लंका जलाते समय आग की तपिश के कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए समुद्र में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने की एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी मछली ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर में बदल गई। एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र 'मकरध्वज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[1]

हनुमान से भेंट

जब राम-रावण युद्ध हो रहा था, तब रावण की आज्ञानुसार अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया। उनके अपहरण से वानर सेना भयभीत व शोकाकुल हो गयी। लेकिन विभीषण ने यह भेद हनुमान के समक्ष प्रकट कर दिया। तब राम-लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमान जी पाताल पुरी पहुँचे। जब उन्होंने पाताल के द्वार पर एक वानर को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा। मकरध्वज अपना परिचय देते हुआ बोला- "मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का द्वारपाल हूँ।"

मकरध्वज की बात सुनकर हनुमान क्रोधित होकर बोले- "यह तुम क्या कह रहे हो? दुष्ट! मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। फिर भला तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?" हनुमान का परिचय पाते ही मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें प्रणाम कर अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई। हनुमानजी ने भी मान लिया कि वह उनका ही पुत्र है। लेकिन यह कहकर कि वे अभी अपने प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, जैसे ही द्वार की ओर बढ़े वैसे ही मकरध्वज उनका मार्ग रोकते हुए बोला- "पिताश्री! यह सत्य है कि मैं आपका पुत्र हूँ, लेकिन अभी मैं अपने स्वामी की सेवा में हूँ। इसलिए आप अन्दर नहीं जा सकते।"[1]

पिता से युद्ध

हनुमान ने मकरध्वज को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, किंतु वह द्वार से नहीं हटा। तब दोनों में घोर य़ुद्ध शुरू हो गया। देखते-ही-देखते हनुमान जी उसे अपनी पूँछ में बाँधकर पाताल में प्रवेश कर गए। हनुमान सीधे देवी मंदिर में पहुँचे, जहाँ अहिरावण राम-लक्ष्मण की बलि देने वाला था। हनुमान जी को देखकर चामुंडा देवी पाताल लोक से प्रस्थान कर गईं। तब हनुमान जी देवी-रूप धारण करके वहाँ स्थापित हो गए। कुछ देर के बाद अहिरावण वहाँ आया और पूजा अर्चना करके जैसे ही उसने राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तलवार उठाई, वैसे ही भयंकर गर्जन करते हुए हनुमान जी प्रकट हो गए और उसी तलवार से अहिरावण का वध कर दिया।

पाताल के राजा

हनुमान ने राम-लक्ष्मण को बंधन से मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा- "हनुमान! तुम्हारी पूँछ में यह कौन बँधा है? बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है। इसे बंधन मुक्त कर दो।" हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। मकरध्वज ने श्रीराम के समक्ष सिर झुका लिया। तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे। यह सुनकर मकरध्वज ने तीनों को प्रणाम किया। तीनों उसे आशीर्वाद देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए। इस प्रकार मकरध्वज हनुमान पुत्र कहलाए।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा (हिन्दी) पुराण कथा। अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2014।

संबंधित लेख