नूहानी वंश: Difference between revisions

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'''नूहानी वंश''' [[बिहार]] के [[मध्यकालीन भारत|मध्यकालीन इतिहास]] में एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान रखता है, क्योंकि इसका उदय [[सिकन्दर लोदी]] के शासनकालीन अवस्था में हुए राजनैतिक परिवर्तनों से जुड़ा है। जब सिकन्दर लोदी सुल्तान बना तो उसके भाई वारवाक शाह ने विद्रोह कर बिहार में शरण ली। इसके पहले जौनपुर का पूर्व शासक हुसैनशाह शर्की भी बिहार में आकर [[तिरहुत]] एवं सारण के जमींदारों के साथ विद्रोही रूप में खड़ा था। बिहार विभिन्न समस्याओं का केन्द्र बना हुआ था। इसके फलस्वरूप सिकन्दर लोदी ने बिहार तथा [[बंगाल]] के लिए अभियान चलाया।


[[बिहार शरीफ़]] स्थित लोदी के [[अभिलेख]] के अनुसार सिकन्दर लोदी ने 1495-96 ई. में बंगाल के हुसैनशाह शर्की को हराकर बिहार में दरिया खाँ लोहानी को गवर्नर नियुक्‍त किया। 1504 ई. में सिकन्दर लोदी ने बंगाल के साथ एक सन्धि करके बिहार और बंगाल के बीच [[मुंगेर]] की एक सीमा रेखा निश्‍चित कर दी। बिहार का प्रभारी दरिया खाँ लोहानी को नियुक्‍त कर दिया। दरिया खाँ लोहानी ने एक योग्य शासक की तरह इस क्षेत्र के जमींदारों एवं अन्य विद्रोही तत्वों को शान्त बनाये रखा। उसने जमींदारों, उलेमाओं एवं सन्तो के प्रति दोस्ताना नीति अपनाई।
[[बिहार शरीफ़]] स्थित लोदी के [[अभिलेख]] के अनुसार सिकन्दर लोदी ने 1495-96 ई. में बंगाल के हुसैनशाह शर्की को हराकर बिहार में दरिया खाँ लोहानी को गवर्नर नियुक्‍त किया। 1504 ई. में सिकन्दर लोदी ने बंगाल के साथ एक सन्धि करके बिहार और बंगाल के बीच [[मुंगेर]] की एक सीमा रेखा निश्‍चित कर दी। बिहार का प्रभारी दरिया खाँ लोहानी को नियुक्‍त कर दिया। दरिया खाँ लोहानी ने एक योग्य शासक की तरह इस क्षेत्र के जमींदारों एवं अन्य विद्रोही तत्वों को शान्त बनाये रखा। उसने जमींदारों, उलेमाओं एवं सन्तो के प्रति दोस्ताना नीति अपनाई।


[[पटना]] में दरियापुर, नूहानीपुर जैसे नाम भी नूहानी के प्रभाव की झलक देते हैं। परन्तु 1523 ई. में दरिया खाँ नूहानी की मृत्यु हो गयी। दूसरी ओर [[पानीपत का प्रथम युद्ध|पानीपत के प्रथम युद्ध]] 1526 ई. के बाद अवसर का लाभ उठाकर नूहानी के पुत्र सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता की घोषणा कर दी। इसके दरबार में इब्राहिम जैसे असन्तुष्ट [[अफ़ग़ान]] सरदारों का जमावाड़ा था। उसने धीरे-धीरे अपनी सेना की संख्या एक लाख कर ली और बिहार से सम्बल तक मुहम्मद लोहानी का कब्जा हो गया। इस परिस्थति से चिन्तित होकर इब्राहिम लोदी ने मुस्तफा फरश्‍ली को सुल्तान मुहम्मद के खिलाफ सेना भेजी, परन्तु इस समय मुस्तफा की मृत्यु हो गई। सेना की कमान शेख बाइजिद और फतह खान के हाथों में थी। दोनों की सेनाओं के बीच कनकपुरा में युद्ध हुआ।
[[पटना]] में दरियापुर, नूहानीपुर जैसे नाम भी नूहानी के प्रभाव की झलक देते हैं। परन्तु 1523 ई. में दरिया खाँ नूहानी की मृत्यु हो गयी। दूसरी ओर [[पानीपत का प्रथम युद्ध|पानीपत के प्रथम युद्ध]] 1526 ई. के बाद अवसर का लाभ उठाकर नूहानी के पुत्र सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता की घोषणा कर दी। इसके दरबार में इब्राहिम जैसे असन्तुष्ट [[अफ़ग़ान]] सरदारों का जमावाड़ा था। उसने धीरे-धीरे अपनी सेना की संख्या एक लाख कर ली और बिहार से सम्बल तक मुहम्मद लोहानी का क़ब्ज़ा हो गया। इस परिस्थति से चिन्तित होकर इब्राहिम लोदी ने मुस्तफा फरश्‍ली को सुल्तान मुहम्मद के खिलाफ सेना भेजी, परन्तु इस समय मुस्तफा की मृत्यु हो गई। सेना की कमान शेख बाइजिद और फतह खान के हाथों में थी। दोनों की सेनाओं के बीच कनकपुरा में युद्ध हुआ।


[[इब्राहिम लोदी]] की मृत्यु के पश्‍चात सुल्तान मुहम्मद ने सिकन्दर पुत्र मेहमूद लोदी को [[दिल्ली]] पर अधिकार करने के प्रयास में सहायता प्रदान की, परन्तु 1529 ई. में [[घाघरा का युद्ध|घाघरा युद्ध]] में [[बाबर]] ने इन अफगानों को बुरी तरह पराजित किया। बाबर ने [[बिहार]] में मोहम्मद शाह नूहानी के पुत्र जलाल खान को बिहार का प्रशासक नियुक्‍त किया और [[शेरशाह|शेर ख़ाँ]] (फ़रीद ख़ाँ) को उसका संरक्षक नियुक्‍त किया गया। इस प्रकार बिहार में नूहानिया का प्रभाव 1495 ई. से प्रारम्भ होकर 1530 ई. में समाप्त हो गया।
[[इब्राहिम लोदी]] की मृत्यु के पश्‍चात सुल्तान मुहम्मद ने सिकन्दर पुत्र मेहमूद लोदी को [[दिल्ली]] पर अधिकार करने के प्रयास में सहायता प्रदान की, परन्तु 1529 ई. में [[घाघरा का युद्ध|घाघरा युद्ध]] में [[बाबर]] ने इन अफगानों को बुरी तरह पराजित किया। बाबर ने [[बिहार]] में मोहम्मद शाह नूहानी के पुत्र जलाल खान को बिहार का प्रशासक नियुक्‍त किया और [[शेरशाह|शेर ख़ाँ]] (फ़रीद ख़ाँ) को उसका संरक्षक नियुक्‍त किया गया। इस प्रकार बिहार में नूहानिया का प्रभाव 1495 ई. से प्रारम्भ होकर 1530 ई. में समाप्त हो गया।

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नूहानी वंश बिहार के मध्यकालीन इतिहास में एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान रखता है, क्योंकि इसका उदय सिकन्दर लोदी के शासनकालीन अवस्था में हुए राजनैतिक परिवर्तनों से जुड़ा है। जब सिकन्दर लोदी सुल्तान बना तो उसके भाई वारवाक शाह ने विद्रोह कर बिहार में शरण ली। इसके पहले जौनपुर का पूर्व शासक हुसैनशाह शर्की भी बिहार में आकर तिरहुत एवं सारण के जमींदारों के साथ विद्रोही रूप में खड़ा था। बिहार विभिन्न समस्याओं का केन्द्र बना हुआ था। इसके फलस्वरूप सिकन्दर लोदी ने बिहार तथा बंगाल के लिए अभियान चलाया।

बिहार शरीफ़ स्थित लोदी के अभिलेख के अनुसार सिकन्दर लोदी ने 1495-96 ई. में बंगाल के हुसैनशाह शर्की को हराकर बिहार में दरिया खाँ लोहानी को गवर्नर नियुक्‍त किया। 1504 ई. में सिकन्दर लोदी ने बंगाल के साथ एक सन्धि करके बिहार और बंगाल के बीच मुंगेर की एक सीमा रेखा निश्‍चित कर दी। बिहार का प्रभारी दरिया खाँ लोहानी को नियुक्‍त कर दिया। दरिया खाँ लोहानी ने एक योग्य शासक की तरह इस क्षेत्र के जमींदारों एवं अन्य विद्रोही तत्वों को शान्त बनाये रखा। उसने जमींदारों, उलेमाओं एवं सन्तो के प्रति दोस्ताना नीति अपनाई।

पटना में दरियापुर, नूहानीपुर जैसे नाम भी नूहानी के प्रभाव की झलक देते हैं। परन्तु 1523 ई. में दरिया खाँ नूहानी की मृत्यु हो गयी। दूसरी ओर पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 ई. के बाद अवसर का लाभ उठाकर नूहानी के पुत्र सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता की घोषणा कर दी। इसके दरबार में इब्राहिम जैसे असन्तुष्ट अफ़ग़ान सरदारों का जमावाड़ा था। उसने धीरे-धीरे अपनी सेना की संख्या एक लाख कर ली और बिहार से सम्बल तक मुहम्मद लोहानी का क़ब्ज़ा हो गया। इस परिस्थति से चिन्तित होकर इब्राहिम लोदी ने मुस्तफा फरश्‍ली को सुल्तान मुहम्मद के खिलाफ सेना भेजी, परन्तु इस समय मुस्तफा की मृत्यु हो गई। सेना की कमान शेख बाइजिद और फतह खान के हाथों में थी। दोनों की सेनाओं के बीच कनकपुरा में युद्ध हुआ।

इब्राहिम लोदी की मृत्यु के पश्‍चात सुल्तान मुहम्मद ने सिकन्दर पुत्र मेहमूद लोदी को दिल्ली पर अधिकार करने के प्रयास में सहायता प्रदान की, परन्तु 1529 ई. में घाघरा युद्ध में बाबर ने इन अफगानों को बुरी तरह पराजित किया। बाबर ने बिहार में मोहम्मद शाह नूहानी के पुत्र जलाल खान को बिहार का प्रशासक नियुक्‍त किया और शेर ख़ाँ (फ़रीद ख़ाँ) को उसका संरक्षक नियुक्‍त किया गया। इस प्रकार बिहार में नूहानिया का प्रभाव 1495 ई. से प्रारम्भ होकर 1530 ई. में समाप्त हो गया।


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