पातिमोक्ख: Difference between revisions
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*पातिमोक्ख [[बौद्ध]] भिक्षुक संहिता है। | |||
*पातिमोक्ख 227 नियमों का एक संग्रह, जो भिक्षुओं व साध्वियों के दौरान जीवन की गतिविधियों पर नियंत्रण रखता है। | |||
*पालि धर्मविधान में पतिमोक्ख के निषेध अपराध की गंभीरता के अनुसार व्यवस्थित हैं – वे अपराध, जिनमें संप्रदाय से तुरंत व आजीवन निष्कासन आवश्यक है, अस्थायी निलंबन या विभिन्न अंशों में क्षतिपूर्ति अथवा प्रायश्चित से लेकर वह अपराध, जिनमें केवल स्वीकारोक्ति की आवश्यकता होती है। इसमें भिक्षुक समुदाय के आपसी मतभेदों के समाधान के लिए नियम भी दिए गए हैं। | |||
*संपूर्ण पतिमोक्ख का पाठ उपोसथ अथवा थेरवाद भिक्षुओं की पाक्षिक सभा के दौरान किया जाता है। | |||
*सर्वास्तिवाद (सभी सत्य हैं का सिद्धांत) परंपरा के संस्कृत धर्मविधान में भिक्षुक जीवन के 250 नियमों के एक तुलनीय समूह का वर्णन है, जो उत्तरी [[बौद्ध]] देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है। [[चीन]] और [[जापान]] में [[महायान]] मत ने उन नियमों को, जो स्थानीय तौर पर लागू करने योग्य नहीं हैं, सामान्यत: अस्वीकार कर दिया और उन्हें अनुशासनात्मक संहिताओं से प्रतिस्थापित कर दिया, जो एक संप्रदाय से दूसरे संप्रदाय तथा कभी-कभी एक मठ से दूसरे मठ भिन्न थे। | |||
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Revision as of 12:04, 16 July 2011
- बौद्ध धर्म के विनयपिटक के पातिमोक्ख (प्रतिमोक्ष) ग्रंथ में अनुशासन संबंधी नियमों तथा उसके उल्लंघनों पर किये जाने वाले प्रायश्यितों का संकलन है। पातिमोक्ख (पालि शब्द, अर्थात जो बाध्यकारी है) संस्कृत प्रतिमोक्ष है।
- पातिमोक्ख बौद्ध भिक्षुक संहिता है।
- पातिमोक्ख 227 नियमों का एक संग्रह, जो भिक्षुओं व साध्वियों के दौरान जीवन की गतिविधियों पर नियंत्रण रखता है।
- पालि धर्मविधान में पतिमोक्ख के निषेध अपराध की गंभीरता के अनुसार व्यवस्थित हैं – वे अपराध, जिनमें संप्रदाय से तुरंत व आजीवन निष्कासन आवश्यक है, अस्थायी निलंबन या विभिन्न अंशों में क्षतिपूर्ति अथवा प्रायश्चित से लेकर वह अपराध, जिनमें केवल स्वीकारोक्ति की आवश्यकता होती है। इसमें भिक्षुक समुदाय के आपसी मतभेदों के समाधान के लिए नियम भी दिए गए हैं।
- संपूर्ण पतिमोक्ख का पाठ उपोसथ अथवा थेरवाद भिक्षुओं की पाक्षिक सभा के दौरान किया जाता है।
- सर्वास्तिवाद (सभी सत्य हैं का सिद्धांत) परंपरा के संस्कृत धर्मविधान में भिक्षुक जीवन के 250 नियमों के एक तुलनीय समूह का वर्णन है, जो उत्तरी बौद्ध देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है। चीन और जापान में महायान मत ने उन नियमों को, जो स्थानीय तौर पर लागू करने योग्य नहीं हैं, सामान्यत: अस्वीकार कर दिया और उन्हें अनुशासनात्मक संहिताओं से प्रतिस्थापित कर दिया, जो एक संप्रदाय से दूसरे संप्रदाय तथा कभी-कभी एक मठ से दूसरे मठ भिन्न थे।
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