धर्म और अधर्म -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions
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Revision as of 07:42, 20 August 2011
महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।
धर्म और अधर्म का स्वरूप
अन्नंभट्ट ने विहित कर्मों से जन्य अदृष्ट को धर्म और निषिद्ध कर्मों से उत्पन्न अदृष्ट को अधर्म कहा है। केशवमिश्र के अनुसार सुख तथा दु:ख के असाधारण कारण क्रमश: धर्म और अधर्म कहलाते हैं। इनका ज्ञान प्रत्यक्ष से नहीं, अपितु आगम या अनुमान से होता है। अनुमान का रूप इस प्रकार होगा-देवदत्त के शरीर आदि देवदत्त के विशेष गुणों से उत्पन्न होते हैं (प्रतिज्ञा), क्योंकि ये कार्य होते हैं (प्रतिज्ञा), क्योंकि ये कार्य होते हुये देवदत्त के भोग के हेतु हैं। (हेतु), जैसे देवदत्त के प्रयत्न से उत्पन्न होने वाली वस्तु वस्त्र आदि (उदाहरण), इस प्रकार शरीर आदि का निमित्त होनेवाले विशेष गुण ही धर्म तथा अधर्म हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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