द्रवत्व -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (श्रेणी:नया पन्ना (को हटा दिया गया हैं।))
 
Line 16: Line 16:
[[Category:वैशेषिक दर्शन]]
[[Category:वैशेषिक दर्शन]]
[[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 14:20, 13 November 2014

महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

द्रवत्व का स्वरूप

किसी तरल वस्तु के चूने, टपकने या एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहकर पहुँचने में अनेक स्पन्दनक्रियाएँ होती है। उनमें से प्रथम स्पन्दन का असमवायिकारण द्रवत्व (तरलता) कहलाता है, जो कि भूमि, तेज़ और जल में रहता है। घृत आदि पार्थिव द्रवत्व तथा सुवर्ण आदि में जो द्रवत्व है, वह नैमित्तिक (अग्निसंयोगजन्य) होता है, जब कि जल में जो द्रवत्व है वह स्वाभाविक है। पहली क्रिया के बाद की जो स्पन्दन क्रियाएँ होती हैं, उनका असमवायिकारण वेग होता है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख