जनक: Difference between revisions
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*एक बार राजा जनक ने अपनी यौगिक क्रियाओं से स्थूल शरीर का त्याग कर दिया। स्वर्गलोक से एक विमान उनकी आत्मा को लेने के लिए आया। देव लोक के रास्ते से जनक कालपुरी पहुंचे जहां बहुत से पापी लोग विभिन्न नरकों से प्रताड़ित किये जा रहे थे । उन लोगों ने जब जनक को छूकर जाती हुई हवा में सांस ली तो उन्हें अपनी प्रताड़नाओं का शमन होता अनुभव हुआ और नरक की अग्नि का ताप शीतलता में बदलने लगा। जब जनक वहां से जाने लगे तब नरक के वासियों ने उनसे रुकने की प्रार्थना की। जनक सोचने लगे-'यदि ये नरकवासी मेरी उपस्थिति से कुछ आराम अनुभव करते हैं तो मैं इसी कालपुरी में रहूंगा- यही मेरा स्वर्ग होगा।' | *एक बार राजा जनक ने अपनी यौगिक क्रियाओं से स्थूल शरीर का त्याग कर दिया। स्वर्गलोक से एक विमान उनकी आत्मा को लेने के लिए आया। देव लोक के रास्ते से जनक कालपुरी पहुंचे जहां बहुत से पापी लोग विभिन्न नरकों से प्रताड़ित किये जा रहे थे । उन लोगों ने जब जनक को छूकर जाती हुई हवा में सांस ली तो उन्हें अपनी प्रताड़नाओं का शमन होता अनुभव हुआ और नरक की अग्नि का ताप शीतलता में बदलने लगा। जब जनक वहां से जाने लगे तब नरक के वासियों ने उनसे रुकने की प्रार्थना की। जनक सोचने लगे-'यदि ये नरकवासी मेरी उपस्थिति से कुछ आराम अनुभव करते हैं तो मैं इसी कालपुरी में रहूंगा- यही मेरा स्वर्ग होगा।' | ||
*ऐसा सोचते हुए वे वहीं रूक गये तब काल विभिन्न प्रकार के पापियों को उनके कर्मानुसार दंड देने के विचार से वहां पहुंचे और जनक को वहां देखकर उन्होंने पूछा-'आप | *ऐसा सोचते हुए वे वहीं रूक गये तब काल विभिन्न प्रकार के पापियों को उनके कर्मानुसार दंड देने के विचार से वहां पहुंचे और जनक को वहां देखकर उन्होंने पूछा-'आप यहाँ नरक में क्या कर रहे हैं?' | ||
*जनक ने अपने ठहरने का कारण बताते हुए कहा कि वे वहां से तभी प्रस्थान करेंगे जब काल उन सबको मुक्त कर देगा। काल ने प्रत्येक पापी के विषय में बताया कि उसे क्यों प्रताड़ित किया जा रहा है। जनक ने काल से उनकी प्रताड़ना से मुक्ति की युक्ति पूछी। काल ने कहा-'तुम्हारे कुछ पुण्य इनको दे दें तो इनकी मुक्ति हो सकती है।' जनक ने अपने पुण्य उनके प्रति दे दिये। उनके मुक्त होने के बाद जनक ने काल से पूछा-'मैंने कौन सा पाप किया था कि मुझे | *जनक ने अपने ठहरने का कारण बताते हुए कहा कि वे वहां से तभी प्रस्थान करेंगे जब काल उन सबको मुक्त कर देगा। काल ने प्रत्येक पापी के विषय में बताया कि उसे क्यों प्रताड़ित किया जा रहा है। जनक ने काल से उनकी प्रताड़ना से मुक्ति की युक्ति पूछी। काल ने कहा-'तुम्हारे कुछ पुण्य इनको दे दें तो इनकी मुक्ति हो सकती है।' जनक ने अपने पुण्य उनके प्रति दे दिये। उनके मुक्त होने के बाद जनक ने काल से पूछा-'मैंने कौन सा पाप किया था कि मुझे यहाँ आना पड़ा?' | ||
*काल ने कहा-'हे राजन! संसार में किसी भी व्यक्ति के तुम्हारे जितने पुण्य नहीं हैं, पर एक छोटा-सा पाप तुमने किया था। एक बार एक गाय को घास खाने से रोकने के कारण तुम्हें | *काल ने कहा-'हे राजन! संसार में किसी भी व्यक्ति के तुम्हारे जितने पुण्य नहीं हैं, पर एक छोटा-सा पाप तुमने किया था। एक बार एक गाय को घास खाने से रोकने के कारण तुम्हें यहाँ आना पड़ा। अब पाप का फल पा चुके सो तुम स्वर्ग जा सकते हो।' विदेह (जनक) ने काल को प्रणाम कर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया।<balloon title="पद्म पुराण, 30-39।" style=color:blue>*</balloon> | ||
*इसी कारण जनक को विदेह कहा जाता है। | *इसी कारण जनक को विदेह कहा जाता है। | ||
Revision as of 14:42, 20 April 2010
जनक / Janak
- जनक सीता के पिता थे।
- जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
- जनक के पूर्वज निमि कहे जाते हैं।
- निमि ने एक बृहत यज्ञ का आयोजन करके वसिष्ठ को पौरोहित्य के हेतु आमन्त्रित किया,किन्तु वसिष्ठ उस समय इन्द्र के यज्ञ में संलग्न थे। अत: वे असमर्थ रहे।
- निमि ने गौतम आदि ऋषियों की सहायता से यज्ञ आरम्भ करा दिया।
- वसिष्ठ ने उन्हें शाप दे दिया। किन्तु प्रत्युत्तर में निमि ने भी शाप दिया।
- परिणामत: दोनों ही भस्म हो गये।
- ऋषियों ने एक विशेष उपचार से यज्ञसमाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा।
- निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अतएव ऋषियों ने अरणि से उनका शरीर मन्थन किया, जिससे इनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
- शरीर मन्थन से उत्पन्न होने के कारण जनक को मिथि भी कहा जाता है।
- मृतदेह से उत्पन्न होने के कारण यही पुत्र जनक, विदेह होने के कारण ‘वैदेह’ और मन्थन से उत्पन्न होने के कारण उसी बालक का नाम ‘मिथिल’ हुआ।
- इसी आधार पर इन्होंने मिथिलापुरी बसायी। इसी कुल में श्री शीरध्वज जनक के यहाँ आदि शक्ति सीता ने अवतार लिया था।
शिव-धनुष
- राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। दक्ष यज्ञ विनष्ट होने के अवसर पर रुष्टमना शिव ने इसी धनुष को टंकार कर कहा था कि देवताओं ने उन्हें यज्ञ में भाग नहीं दिया, इसलिए वे धनुष से सबका मस्तक काट लेंगे। देवताओं ने बहुत स्तुति की तो भोलानाथ ने प्रसन्न होकर यह धनुष उन्हीं देवताओं को दे दिया। देवताओं ने राजा जनक के पूर्वजों के पास वह धनुष धरोहरस्वरूप रखा था।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, बाल कांड, 66।5-12" style=color:blue>*</balloon>
- एक बार राजा जनक ने एक यज्ञ किया। विश्वामित्र तथा मुनियों ने राम और लक्ष्मण को भी उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि उन दोनों को शिव-धनुष के दर्शन करने का अवसर भी प्राप्त होगा।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, बाल कांड, 31।5-14" style=color:blue>*</balloon>
विदेह
- एक बार राजा जनक ने अपनी यौगिक क्रियाओं से स्थूल शरीर का त्याग कर दिया। स्वर्गलोक से एक विमान उनकी आत्मा को लेने के लिए आया। देव लोक के रास्ते से जनक कालपुरी पहुंचे जहां बहुत से पापी लोग विभिन्न नरकों से प्रताड़ित किये जा रहे थे । उन लोगों ने जब जनक को छूकर जाती हुई हवा में सांस ली तो उन्हें अपनी प्रताड़नाओं का शमन होता अनुभव हुआ और नरक की अग्नि का ताप शीतलता में बदलने लगा। जब जनक वहां से जाने लगे तब नरक के वासियों ने उनसे रुकने की प्रार्थना की। जनक सोचने लगे-'यदि ये नरकवासी मेरी उपस्थिति से कुछ आराम अनुभव करते हैं तो मैं इसी कालपुरी में रहूंगा- यही मेरा स्वर्ग होगा।'
- ऐसा सोचते हुए वे वहीं रूक गये तब काल विभिन्न प्रकार के पापियों को उनके कर्मानुसार दंड देने के विचार से वहां पहुंचे और जनक को वहां देखकर उन्होंने पूछा-'आप यहाँ नरक में क्या कर रहे हैं?'
- जनक ने अपने ठहरने का कारण बताते हुए कहा कि वे वहां से तभी प्रस्थान करेंगे जब काल उन सबको मुक्त कर देगा। काल ने प्रत्येक पापी के विषय में बताया कि उसे क्यों प्रताड़ित किया जा रहा है। जनक ने काल से उनकी प्रताड़ना से मुक्ति की युक्ति पूछी। काल ने कहा-'तुम्हारे कुछ पुण्य इनको दे दें तो इनकी मुक्ति हो सकती है।' जनक ने अपने पुण्य उनके प्रति दे दिये। उनके मुक्त होने के बाद जनक ने काल से पूछा-'मैंने कौन सा पाप किया था कि मुझे यहाँ आना पड़ा?'
- काल ने कहा-'हे राजन! संसार में किसी भी व्यक्ति के तुम्हारे जितने पुण्य नहीं हैं, पर एक छोटा-सा पाप तुमने किया था। एक बार एक गाय को घास खाने से रोकने के कारण तुम्हें यहाँ आना पड़ा। अब पाप का फल पा चुके सो तुम स्वर्ग जा सकते हो।' विदेह (जनक) ने काल को प्रणाम कर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया।<balloon title="पद्म पुराण, 30-39।" style=color:blue>*</balloon>
- इसी कारण जनक को विदेह कहा जाता है।