स्नेह -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions

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Revision as of 07:40, 20 August 2011

महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

स्नेह का स्वरूप

'चिकनापन' नामक जो गुण है, वह स्नेह कहलाता है। वह केवल जल में रहता है। स्नेह ऐसा गुण है, जिसके कारण पृथक्-पृथक् रूप से विद्यमान कण या अंश पिण्ड रूप में परिणत हो जाते हैं। स्नेह दो प्रकार का होता है- नित्य और अनित्य। जल के परमाणुओं में नित्य होता है और कार्यरूप जल में अनित्य। अनित्य स्नेह कारण गुणपूर्वक होता है और तभी तक रहता है, जब तक उसका आश्रय द्रव्य द्वयणुक आदि रहता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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