शब्द -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:58, 23 August 2011
महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।
शब्द (गुण) का स्वरूप
शब्द वह गुण है जिसका ग्रहण श्रोत्र के द्वारा किया जाता है। शब्द का आश्रय द्रव्य आकाश है। अत: यह आकाश का विशेष गुण भी कहा जाता है। शब्द दो प्रकार का होता है- ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक। भेरी आदि से उत्पन्न शब्द ध्वन्यात्मक और कण्ठ से उत्पन्न शब्द वर्णात्मक कहलाता है। भेरी आदि दइश में उत्पन्न शब्द श्रोत्र तक कैसे पहुँचता है, इस सम्बन्ध में नैयायिकों ने मुख्यत: जिन दो न्यायों का उल्लेख किया है, वे हैं-
- वीचितरंगन्याय और
- कदम्बमुकुलन्याय।
- न्यायकन्दली में श्रीधर ने वीचितरंगन्याय को अन्यातिकता निरूपित किया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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