शर्की वंश: Difference between revisions
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==स्थापत्य कला== | |||
ख़्वाजा जहान ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके राज्य की सीमाएँ 'कोल', '[[सम्भल]]' तथा 'रापरी' तक फैली हुयी थीं। उसने 'तिरहुत' तथा '[[दोआब]]' के साथ-साथ [[बिहार]] पर भी प्रभुत्व स्थापित किया था। शर्की वंश के लगभग सौ वर्ष के शासन काल में जौनपुर में बहुत-सी इमारतों जैसे- महल, मस्जिद, मक़बरों आदि का निर्माण किया गया। शर्की सुल्तानों द्वारा निर्मित इमारतों में [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] स्थापत्य कला का सुन्दर मिश्रण दिखाई पड़ता है। शर्की सुल्तानों के निर्माण कार्य अपनी बड़ी-बड़ी ढलुवाँ एवं तिरछी दीवारों, वर्गाकार स्तम्भों, छोटी गैलरियों एवं कोठरियों के कारण काफ़ी प्रसिद्ध हैं। | |||
====निर्माण कार्य==== | |||
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने शर्की शासकों के निर्माण कार्यों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, "शर्की सुल्तान जौनपुर की सम्राट कला और विद्या के महान संरक्षक थे, जिन भवनों का निर्माण इन शासकों ने कराया है, वे उनकी स्थापत्य कला की अभिरुचि के प्रमाण हैं, ये भवन सुदृढ़, प्रभावयुक्त तथा सुन्दर हैं। इनमें हिन्दू-मुस्लिम निर्माण कला शैली के विचारों का वास्तविक एवं प्रारम्भिक समन्वय है।" शर्की सुल्तानों के कुछ महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य निम्नलिखित हैं- | |||
#[[अटाला मस्जिद]] | |||
#[[जामी मस्जिद जौनपुर]] | |||
#[[झंझीरी मस्जिद जौनपुर|झंझीरी मस्जिद]] | |||
#[[लाल दरवाज़ा मस्जिद जौनपुर|लाल दरवाज़ा मस्जिद]] | |||
स्पष्ट है कि, शर्की शासकों की स्थापत्य कला में हिन्दू और इस्लामी शैलियों का अच्छा समन्वय है। विशाल ढलवा दीवारों, वर्गाकार स्तंभ, छोटे बरामदे और छायादार रास्ते हिन्दू कारीगरों द्वारा निर्मित होने के कारण स्पष्टतः हिन्दू विशेषताएँ हैं। मीनारों का अभाव इस कला की मुख्य विशेषता है। ये मस्जिदे ध्वस्त हिन्दू स्थलो पर बनायी गयी हैं। इनकी रचना शैली मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा बनवायी गयी बेगमपुरी मस्जिद (जामा मस्जिद) से बहुत अधिक प्रभावित है। | |||
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शर्की वंश में जो राजा हुए, उनके नाम इस प्रकार से है- | शर्की वंश में जो राजा हुए, उनके नाम इस प्रकार से है- | ||
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शर्की वंश की स्थापना ख़्वाजा जहान ने की थी, जो कि महमूद के दरबार में वज़ीर के पद पर नियुक्त था। बनारस के उत्तर पश्चिम में स्थित जौनपुर राज्य की नींव फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के द्वारा डाली गई थी। सम्भवतः इस राज्य को फ़िरोज ने अपने भाई 'जौना ख़ाँ' या 'जूना ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में बसाया था। यह नगर गोमती नदी के किनारे स्थापित किया गया था। 1394 ई. में फ़िरोज तुग़लक़ के पुत्र सुल्तान महमूद ने अपने वज़ीर 'ख़्वाजा जहान' को ‘मलिक-उस-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की। उसने दिल्ली पर हुए तैमूर के आक्रमण के कारण व्याप्त अस्थिरता का लाभ उठाकर स्वतन्त्र शर्की वंश की नींव डाली।
स्थापत्य कला
ख़्वाजा जहान ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके राज्य की सीमाएँ 'कोल', 'सम्भल' तथा 'रापरी' तक फैली हुयी थीं। उसने 'तिरहुत' तथा 'दोआब' के साथ-साथ बिहार पर भी प्रभुत्व स्थापित किया था। शर्की वंश के लगभग सौ वर्ष के शासन काल में जौनपुर में बहुत-सी इमारतों जैसे- महल, मस्जिद, मक़बरों आदि का निर्माण किया गया। शर्की सुल्तानों द्वारा निर्मित इमारतों में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का सुन्दर मिश्रण दिखाई पड़ता है। शर्की सुल्तानों के निर्माण कार्य अपनी बड़ी-बड़ी ढलुवाँ एवं तिरछी दीवारों, वर्गाकार स्तम्भों, छोटी गैलरियों एवं कोठरियों के कारण काफ़ी प्रसिद्ध हैं।
निर्माण कार्य
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने शर्की शासकों के निर्माण कार्यों की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, "शर्की सुल्तान जौनपुर की सम्राट कला और विद्या के महान संरक्षक थे, जिन भवनों का निर्माण इन शासकों ने कराया है, वे उनकी स्थापत्य कला की अभिरुचि के प्रमाण हैं, ये भवन सुदृढ़, प्रभावयुक्त तथा सुन्दर हैं। इनमें हिन्दू-मुस्लिम निर्माण कला शैली के विचारों का वास्तविक एवं प्रारम्भिक समन्वय है।" शर्की सुल्तानों के कुछ महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य निम्नलिखित हैं-
स्पष्ट है कि, शर्की शासकों की स्थापत्य कला में हिन्दू और इस्लामी शैलियों का अच्छा समन्वय है। विशाल ढलवा दीवारों, वर्गाकार स्तंभ, छोटे बरामदे और छायादार रास्ते हिन्दू कारीगरों द्वारा निर्मित होने के कारण स्पष्टतः हिन्दू विशेषताएँ हैं। मीनारों का अभाव इस कला की मुख्य विशेषता है। ये मस्जिदे ध्वस्त हिन्दू स्थलो पर बनायी गयी हैं। इनकी रचना शैली मुहम्मद बिन तुग़लक़ द्वारा बनवायी गयी बेगमपुरी मस्जिद (जामा मस्जिद) से बहुत अधिक प्रभावित है।
शासक
शर्की वंश में जो राजा हुए, उनके नाम इस प्रकार से है-
- मलिक करनफूल मुबारकशाह (1399 - 1402 ई.)
- इब्राहिमशाह शर्की (1402 - 1440 ई.)
- महमूदशाह शर्की (1440 - 1457 ई.)
- मुहम्मदशाह शर्की (1457 - 1458 ई.)
- हुसैनशाह शर्की (1458 - 1485 ई.)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख