मक़्ता: Difference between revisions

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Latest revision as of 13:04, 25 February 2013

मक़्ता ग़ज़ल के आख़िरी शे'र को कहते हैं इस शे'र में शायर कभी कभी अपना तख़ल्लुस (उपनाम) लिखता है।

उदाहरण

अजनबी रात अजनबी दुनिया
तेरा मजरूह अब किधर जाये - (मजरूह सुल्तानपुरी)

  • यह मजरूह सुल्तानपुरी की ग़ज़ल का आख़िरी शे'र है जिसमें शायर ने अपने तख़ल्लुस 'मजरूह' (शाब्दिक अर्थ - घायल) का सुन्दर प्रयोग किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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