बहमनी वंश: Difference between revisions

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==स्थापना==
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दक्षिण में बहमनी राज्य और राजवंश का आरम्भ [[दिल्ली]] के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक (1325-51 ई0) के एक अधिकारी [[अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम|हसन]] (उपनाम ज़फ़रशाह) ने 1347 ई0 में किया। तुग़लक के अत्याचारों और उसकी सनक के कारण दक्षिण के मुसलमान अमीरों ने विद्रोह कर दिया। हसन ने इस विद्रोह का फायदा उठाया और वहाँ अपना शासन स्थापित कर लिया। हसन अपने को फ़ारस के वीर योद्धा बहमन का वंशज मानता था, इसलिए उसका वंश बहमनी कहलाने लगा। तख्त पर बैठने के बाद हसन ने अलाउद्दीन बहमन शाह का ख़िताब धारण कर लिया और अपनी राजधानी कुलबर्ग अथवा [[गुलबर्गा]] में बनायी। उसने 11 वर्ष (1347-58) तक शासन किया। उसकी मृत्यु के समय बहमनी राज्य उत्तर में पेनगंगा से दक्षिण में [[कृष्णा नदी]] के किनारे तक और पश्चिम में [[गोवा]] से पूर्व में भोंगिर तक फैल गया था।  
दक्षिण में बहमनी राज्य और राजवंश का आरम्भ [[दिल्ली]] के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक (1325-51 ई॰) के एक अधिकारी [[अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम|हसन]] (उपनाम ज़फ़रशाह) ने 1347 ई॰ में किया। तुग़लक के अत्याचारों और उसकी सनक के कारण दक्षिण के मुसलमान अमीरों ने विद्रोह कर दिया। हसन ने इस विद्रोह का फायदा उठाया और वहाँ अपना शासन स्थापित कर लिया। हसन अपने को फ़ारस के वीर योद्धा बहमन का वंशज मानता था, इसलिए उसका वंश बहमनी कहलाने लगा। तख्त पर बैठने के बाद हसन ने अलाउद्दीन बहमन शाह का ख़िताब धारण कर लिया और अपनी राजधानी कुलबर्ग अथवा [[गुलबर्गा]] में बनायी। उसने 11 वर्ष (1347-58) तक शासन किया। उसकी मृत्यु के समय बहमनी राज्य उत्तर में पेनगंगा से दक्षिण में [[कृष्णा नदी]] के किनारे तक और पश्चिम में [[गोवा]] से पूर्व में भोंगिर तक फैल गया था।  
==बहमनी राज्य के शासक==
==बहमनी राज्य के शासक==
बहमनी राज्य में [[अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम|हसन]] के अतिरिक्त 13 अन्य सुल्तान हुए थे। इनमें:-  
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*[[मुहम्मद बहमनी शाह प्रथम]] (1358-73 ई0),  
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*[[मुज़ाहिद बहमनी]] (1373-77 ई0),  
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*[[दाऊद बहमनी]] (1378 ई0),  
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*[[मुहम्मद बहमनी शाह द्वितीय]] (1378-97 ई0),  
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*[[ग़यासुद्दीन बहमनी]] (1397 ई0),  
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*[[शम्सुद्दीन बहमनी]] (1397 ई0),  
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*[[फ़िरोज शाह बहमनी]] (1397-1422 ई0),  
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*[[अहमदशाह बहमनी|अहमद द्वितीय]] (1422-35 ई0),  
*[[अहमदशाह बहमनी|अहमद द्वितीय]] (1422-35 ई॰),  
*[[अलाउद्दीन बहमन शाह द्वितीय]] (1435-57 ई0),   
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*[[हुमायूँ]] (1457-61 ई0),  
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*[[निज़ाम शाह बहमनी]] (1461-63 ई0),  
*[[निज़ाम शाह बहमनी]] (1461-63 ई॰),  
*[[मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय]] (1463-82), और  
*[[मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय]] (1463-82), और  
*[[महमूद शाह बहमनी]] (1482-1518 ई0) शामिल हैं।
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==बहमनी और विजयनगर में युद्ध==
==बहमनी और विजयनगर में युद्ध==
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बहमनी राज्य की आबादी में मुसलमान अल्पसंख्यक थे, इसलिए सुल्तान ने राज्य के बाहर के मुसलमानों को वहाँ आकर बसने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप बहुत से विदेशी मुसलमान वहाँ आकर बस गये जो अधिकतर शिया थे। उनमें से बहुत से लोगों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। विदेशी मुसलमानों के बढ़ते हुए प्रभाव से खिन्न होकर दक्खिनी औ अबीसीनियाई मुसलमान, जो ज्यादातर सुन्नी थे, उनसे शत्रुता रखने लगे।  
बहमनी राज्य की आबादी में मुसलमान अल्पसंख्यक थे, इसलिए सुल्तान ने राज्य के बाहर के मुसलमानों को वहाँ आकर बसने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप बहुत से विदेशी मुसलमान वहाँ आकर बस गये जो अधिकतर शिया थे। उनमें से बहुत से लोगों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। विदेशी मुसलमानों के बढ़ते हुए प्रभाव से खिन्न होकर दक्खिनी औ अबीसीनियाई मुसलमान, जो ज्यादातर सुन्नी थे, उनसे शत्रुता रखने लगे।  
==बहमनी सल्तनत का पतन==
==बहमनी सल्तनत का पतन==
दसवें सुल्तान अलाउद्दीन द्वितीय (1435-57 ई0) के शासनकाल में दक्खिनी और विदेशी मुसलमानों के संघर्ष ने अत्यन्त उग्र रूप धारण कर लिया। 1481 ई0 में 13वें सुल्तान मुहम्मद तृतीय के राज्य काल में [[मुहम्मद गवाँ]] को फाँसी दे दी गई, जो ग्यारहवें सुल्तान हमायूँ के समय से बहमनी सल्तनत का बड़ा वज़ीर था और उसने राज्य की बड़ी सेवा की थी। मुहम्मद गवाँ की मौत के बाद बहमनी सल्तनत का पतन शुरू हो गया।  
दसवें सुल्तान अलाउद्दीन द्वितीय (1435-57 ई॰) के शासनकाल में दक्खिनी और विदेशी मुसलमानों के संघर्ष ने अत्यन्त उग्र रूप धारण कर लिया। 1481 ई॰ में 13वें सुल्तान मुहम्मद तृतीय के राज्य काल में [[मुहम्मद गवाँ]] को फाँसी दे दी गई, जो ग्यारहवें सुल्तान हमायूँ के समय से बहमनी सल्तनत का बड़ा वज़ीर था और उसने राज्य की बड़ी सेवा की थी। मुहम्मद गवाँ की मौत के बाद बहमनी सल्तनत का पतन शुरू हो गया।  
==स्वतंत्र राज्य==
==स्वतंत्र राज्य==
अगले और आख़िरी सुलतान महमूद के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पाँच स्वतंत्र राज्य [[बरार]], [[बीदर]], [[अहमदनगर]], [[गोलकुण्डा]] और [[बीजापुर]] बन गये। जिनके सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया। इन पाँचों राज्यों ने 17वीं शताब्दी तक अपनी स्वतंत्रता बनाये रखी। तब इन सबको [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] में मिला लिया गया।  
अगले और आख़िरी सुलतान महमूद के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पाँच स्वतंत्र राज्य [[बरार]], [[बीदर]], [[अहमदनगर]], [[गोलकुण्डा]] और [[बीजापुर]] बन गये। जिनके सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया। इन पाँचों राज्यों ने 17वीं शताब्दी तक अपनी स्वतंत्रता बनाये रखी। तब इन सबको [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] में मिला लिया गया।  
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बहमनी सल्तनत से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं पहुँचा। कुछ बहमनी सुल्तानों ने इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया और राज्य के पूर्वी भाग में सिंचाई का प्रबंध किया। लेकिन उनकी लड़ाइयों, नरसंहार और आगजनी से प्रजा को बहुत नुकसान पहुँचा।  
बहमनी सल्तनत से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं पहुँचा। कुछ बहमनी सुल्तानों ने इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया और राज्य के पूर्वी भाग में सिंचाई का प्रबंध किया। लेकिन उनकी लड़ाइयों, नरसंहार और आगजनी से प्रजा को बहुत नुकसान पहुँचा।  
==समृद्धि और ऐश्वर्य==
==समृद्धि और ऐश्वर्य==
इस सल्तनत में साधारण प्रजा की दशा बहुत दयनीय थी, जैसा कि रूसी व्यापारी एथानासियस निकितिन ने लिखा है, जिसने बहमनी राज्य का चार वर्ष (1470-74 ई0) तक भ्रमण किया। उसने लिखा है कि भूमि पर जनसंख्या का भार अत्यधिक है, जबकि अमीर लोग समृद्धि और ऐश्वर्य का जीवन बिताते हैं। वे जहाँ कहीं जाते हैं, उनके लिए चांदी के पलंग पहले से ही रवाना कर दिये जाते हैं। उनके साथ बहुत घुड़सवार और सिपाही, मशालची और गवैये चलते हैं।  
इस सल्तनत में साधारण प्रजा की दशा बहुत दयनीय थी, जैसा कि रूसी व्यापारी एथानासियस निकितिन ने लिखा है, जिसने बहमनी राज्य का चार वर्ष (1470-74 ई॰) तक भ्रमण किया। उसने लिखा है कि भूमि पर जनसंख्या का भार अत्यधिक है, जबकि अमीर लोग समृद्धि और ऐश्वर्य का जीवन बिताते हैं। वे जहाँ कहीं जाते हैं, उनके लिए चांदी के पलंग पहले से ही रवाना कर दिये जाते हैं। उनके साथ बहुत घुड़सवार और सिपाही, मशालची और गवैये चलते हैं।  
==क़िले और मस्जिदें==
==क़िले और मस्जिदें==
बहमनी सुल्तानों ने गाबिलगढ़ और नरनाल में मज़बूत क़िले बनवाये और गुलबर्ग एवं बीदर में कुछ मस्जिदें भी बनवायीं। बहमनी सल्तनत के इतिहास से प्रकट होता है कि हिन्दू आबादी को सामूहिक रूप से किस प्रकार जबरन मुसलमान बनाने का सुल्तानों का प्रयास किस प्रकार विफल हुआ।
बहमनी सुल्तानों ने गाबिलगढ़ और नरनाल में मज़बूत क़िले बनवाये और गुलबर्ग एवं बीदर में कुछ मस्जिदें भी बनवायीं। बहमनी सल्तनत के इतिहास से प्रकट होता है कि हिन्दू आबादी को सामूहिक रूप से किस प्रकार जबरन मुसलमान बनाने का सुल्तानों का प्रयास किस प्रकार विफल हुआ।

Revision as of 13:20, 11 June 2010

स्थापना

दक्षिण में बहमनी राज्य और राजवंश का आरम्भ दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक (1325-51 ई॰) के एक अधिकारी हसन (उपनाम ज़फ़रशाह) ने 1347 ई॰ में किया। तुग़लक के अत्याचारों और उसकी सनक के कारण दक्षिण के मुसलमान अमीरों ने विद्रोह कर दिया। हसन ने इस विद्रोह का फायदा उठाया और वहाँ अपना शासन स्थापित कर लिया। हसन अपने को फ़ारस के वीर योद्धा बहमन का वंशज मानता था, इसलिए उसका वंश बहमनी कहलाने लगा। तख्त पर बैठने के बाद हसन ने अलाउद्दीन बहमन शाह का ख़िताब धारण कर लिया और अपनी राजधानी कुलबर्ग अथवा गुलबर्गा में बनायी। उसने 11 वर्ष (1347-58) तक शासन किया। उसकी मृत्यु के समय बहमनी राज्य उत्तर में पेनगंगा से दक्षिण में कृष्णा नदी के किनारे तक और पश्चिम में गोवा से पूर्व में भोंगिर तक फैल गया था।

बहमनी राज्य के शासक

बहमनी राज्य में हसन के अतिरिक्त 13 अन्य सुल्तान हुए थे। इनमें:-

बहमनी और विजयनगर में युद्ध

बहमनी सल्तनत की अपने पड़ोसी विजयनगर के हिन्दू राज्य से लगातार अनबन चलती रही। विजयनगर राज्य उस समय तुंगभद्रा नदी के दक्षिण और कृष्णा नदी के उत्तरी क्षेत्र में फैला हुआ था और उसकी पश्चिमी सीमा बहमनी राज्य से मिली हुई थी। विजयनगर राज्य के दो मज़बूत क़िले मुदगल और रायचूर बहमनी सीमा के निकट स्थित थे। इन क़िलों पर बहमनी सल्तनत और विजयनगर राज्य दोनों दाँत लगाये हुए थे। इन दोनों राज्यों में धर्म का अन्तर भी था। बहमनी राज्य इस्लामी और विजयनगर राज्य हिन्दू था। बहमनी सल्तनत की स्थापना के बाद ही उन दोनों राज्यों में लड़ाइयाँ शुरू हो गईं और वे तब तक चलती रहीं जब तक बहमनी सल्तनत क़ायम रही। बहमनी सुल्तानों के द्वारा पड़ोसी हिन्दू राज्य को नष्ट करने के सभी प्रयास निष्फल सिद्ध हुए, यद्यपि इन युद्धों में अनेक बार बहमनी सुल्तानों की विजय हुई और रायचूर के दोआब पर विजयनगर के राजाओं के मुक़ाबले में बहमनी सुल्तानों का अधिकार अधिक समय तक रहा।

तख़्त के लिए रक्तपात

बहमनी सुल्तानों में तख़्त के लिए प्रायः रक्तपात होता रहा। चार सुल्तानों को क़त्ल कर दिया गया। दो अन्य को गद्दी से जबरन उतार कर अंधा कर दिया गया। चौदह सुल्तानों में से केवल पाँच सुल्तान ही अपनी मौत से मरे। नवें सुल्तान अहमद ने राजधानी गुलबर्ग से हटाकर बीदर बनायी, जहाँ उसने अनेक आलीशान इमारतों का निर्माण कराया।

शासनिक पद

बहमनी राज्य की आबादी में मुसलमान अल्पसंख्यक थे, इसलिए सुल्तान ने राज्य के बाहर के मुसलमानों को वहाँ आकर बसने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप बहुत से विदेशी मुसलमान वहाँ आकर बस गये जो अधिकतर शिया थे। उनमें से बहुत से लोगों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। विदेशी मुसलमानों के बढ़ते हुए प्रभाव से खिन्न होकर दक्खिनी औ अबीसीनियाई मुसलमान, जो ज्यादातर सुन्नी थे, उनसे शत्रुता रखने लगे।

बहमनी सल्तनत का पतन

दसवें सुल्तान अलाउद्दीन द्वितीय (1435-57 ई॰) के शासनकाल में दक्खिनी और विदेशी मुसलमानों के संघर्ष ने अत्यन्त उग्र रूप धारण कर लिया। 1481 ई॰ में 13वें सुल्तान मुहम्मद तृतीय के राज्य काल में मुहम्मद गवाँ को फाँसी दे दी गई, जो ग्यारहवें सुल्तान हमायूँ के समय से बहमनी सल्तनत का बड़ा वज़ीर था और उसने राज्य की बड़ी सेवा की थी। मुहम्मद गवाँ की मौत के बाद बहमनी सल्तनत का पतन शुरू हो गया।

स्वतंत्र राज्य

अगले और आख़िरी सुलतान महमूद के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पाँच स्वतंत्र राज्य बरार, बीदर, अहमदनगर, गोलकुण्डा और बीजापुर बन गये। जिनके सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया। इन पाँचों राज्यों ने 17वीं शताब्दी तक अपनी स्वतंत्रता बनाये रखी। तब इन सबको मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

इस्लामी शिक्षा

बहमनी सल्तनत से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं पहुँचा। कुछ बहमनी सुल्तानों ने इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया और राज्य के पूर्वी भाग में सिंचाई का प्रबंध किया। लेकिन उनकी लड़ाइयों, नरसंहार और आगजनी से प्रजा को बहुत नुकसान पहुँचा।

समृद्धि और ऐश्वर्य

इस सल्तनत में साधारण प्रजा की दशा बहुत दयनीय थी, जैसा कि रूसी व्यापारी एथानासियस निकितिन ने लिखा है, जिसने बहमनी राज्य का चार वर्ष (1470-74 ई॰) तक भ्रमण किया। उसने लिखा है कि भूमि पर जनसंख्या का भार अत्यधिक है, जबकि अमीर लोग समृद्धि और ऐश्वर्य का जीवन बिताते हैं। वे जहाँ कहीं जाते हैं, उनके लिए चांदी के पलंग पहले से ही रवाना कर दिये जाते हैं। उनके साथ बहुत घुड़सवार और सिपाही, मशालची और गवैये चलते हैं।

क़िले और मस्जिदें

बहमनी सुल्तानों ने गाबिलगढ़ और नरनाल में मज़बूत क़िले बनवाये और गुलबर्ग एवं बीदर में कुछ मस्जिदें भी बनवायीं। बहमनी सल्तनत के इतिहास से प्रकट होता है कि हिन्दू आबादी को सामूहिक रूप से किस प्रकार जबरन मुसलमान बनाने का सुल्तानों का प्रयास किस प्रकार विफल हुआ।