हर्यक वंश: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
mNo edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
* अजातशत्रु कि हत्या उसके पुत्रा उदायिन ने 461 ई.पू. मे कर दी | * अजातशत्रु कि हत्या उसके पुत्रा उदायिन ने 461 ई.पू. मे कर दी | ||
* हर्यक वंश का अन्तिम राजा उदायिन का पुत्र नागदशक था | * हर्यक वंश का अन्तिम राजा उदायिन का पुत्र नागदशक था | ||
* | * नागदशक के आमत्य(सेनापति) शिशुनाग ने 412 ई.पू. मे उन्हे ह्टा के शिशुनाग वंंश की स्थापना की। | ||
<ref>पुस्तक 'लुसेन्ट सामान्य अध्ययन') पृष्ठ संख्या-16</ref> | <ref>पुस्तक 'लुसेन्ट सामान्य अध्ययन') पृष्ठ संख्या-16</ref> | ||
Revision as of 14:45, 30 June 2014
हर्यक वंश (544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक), इस वंश का सबसे प्रतापी राजा बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) था। इस वंश ने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया। बिम्बिसार का उपनाम श्रेणिक था। हर्यक वंश कुल के लोग नागवंश की एक उपशाखा थे। इसने कौशल एवं वैशाली के राज परिवारों से वैवाहिक सम्बन्ध क़ायम किया। उसकी पहली पत्नी महाकोशला प्रसेनजित की बहन थी, जिससे उसे काशी नगर का राजस्व प्राप्त हुआ। उसकी दूसरी पत्नी चेल्लना वैशाली के लिच्छवी प्रमुख चेटक की बहन थी। इसके पश्चात् उसने मद्र देश (कुरु के समीप) की राजकुमारी क्षेमा के साथ अपना विवाह कर मद्रों का सहयोग और समर्थन प्राप्त किया। महाबग्ग में उसकी 500 पत्नियों का उल्लेख है। कुशल प्रशासन की आवश्यकता पर सर्वप्रथम बिम्बिसार ने ही ज़ोर दिया था। बौद्ध साहित्य में उसके कुछ पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
- सब्बन्थक महामात्त (सर्वमहापात्र)-यह सामान्य प्रशासन का प्रमुख पदाधिकारी होता था।
- बोहारिक महामात्त (व्यवहारिक महामात्र)-यह प्रधान न्यायिक अधिकारी अथवा न्यायाधीश होता था।
- सेनानायक महामात्त-यह सेना का प्रधान अधिकारी होता था।
बिम्बिसार स्वयं शासन की समस्याओं में रुचि लेता था। महाबग्ग जातक में कहा गया है कि उसकी राजसभा में 80 हज़ार ग्रामों के प्रतिनिधि भाग लेते थे। वह जैन तथा ब्राह्मण धर्म के प्रति भी सहिष्णु था। जैन ग्रन्थ उसे अपने मत का पोषक मानते हैं। दीर्धनिकाय से पता चलता है कि बिम्बिसार ने चम्पा के प्रसिद्ध ब्राह्मण सोनदण्ड को वहाँ की पूरी आमदनी दान में दे दी थी।
पुराणों के अनुसार बिम्बिसार ने क़रीब 32 वर्ष तक शासन किया। बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का मित्र एवं संरक्षक था। विनयपिटक से ज्ञात होता है कि बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और बेलुवन नामक उद्यान बुद्ध तथा संघ के निमित्त कर दिया था। अन्तिम समय में अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर दी। बिम्बिसार ने राजगृह नामक नवीन नगर की स्थापना करवाई थी। बिम्बिसार का अवन्ति से अच्छा सम्बन्ध था, क्योंकि जब अवन्ति के राजा प्रद्योत बीमार थे, तो बिम्बिसार ने अपने वैद्य जीवक को भेजा था। बिम्बिसार ने अंग और चम्पा को जीता और वहाँ पर अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा बनाया।
- बिम्बिसार की हत्या इसके पुत्र अजातशत्रु ने 493 ई.पू. कर दि और मगध का राजा बन गया
- अजातशत्रु का उपनाम कुणिक था इसने लगभग 32 साल तक शासन किया
- अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था
- अजातशत्रु कि हत्या उसके पुत्रा उदायिन ने 461 ई.पू. मे कर दी
- हर्यक वंश का अन्तिम राजा उदायिन का पुत्र नागदशक था
- नागदशक के आमत्य(सेनापति) शिशुनाग ने 412 ई.पू. मे उन्हे ह्टा के शिशुनाग वंंश की स्थापना की।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक 'लुसेन्ट सामान्य अध्ययन') पृष्ठ संख्या-16