परिमाण -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (श्रेणी:नया पन्ना (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 19: | Line 19: | ||
[[Category:वैशेषिक दर्शन]] | [[Category:वैशेषिक दर्शन]] | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 14:13, 13 November 2014
महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।
परिमाण का स्वरूप
मान के व्यवहार अर्थात् दो सेर आदि नापने और तौलने के असाधारण कारण को परिमाण कहा जाता है। परिमाण नौ द्रव्यों में रहता है और अणु, महत, दीर्ष व हृस्व भेद से चार प्रकार का होता है। परिमाण का नित्य और अनित्य के रूप में भी वर्गीकरण किया जाता है। नित्य द्रव्यों में रहने वाला परिमाण नित्य और अनित्य द्रव्यों में रहने वाला परिमाण अनित्य होता है। कार्यगत परिमाण के तीन उपभेद हैं-
- संख्यायोनि,
- परिमाणयोनि तथा
- प्रचययोनि।
- पृथकत्व का स्वरूप
पृथक्ता के व्यवहार के असाधारण कारण को पृथक्त्व कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है- जहाँ एक वस्तु में अन्य वस्तु से पृथक्त् प्रतीत होती हैं, वहाँ एक पृथकत्व और जहाँ दो वस्तुओं में अन्य वस्तु या वस्तुओं से पृथक्ता प्रतीत होती है (जैसे घट और पट पुस्तक से पृथक् है) वहाँ द्विपृथक्त्व आदि। एक पृथकत्व नित्य द्रव्य में रहता हुआ नित्य होता है और अनित्य द्रव्य में रहता हुआ अनित्य। द्विपृथक्त्य आदि सर्वत्र अनित्य ही होता है, क्योंकि उसका आधार द्वित्व आदि संख्या हे, जिसको अनित्य माना जाता है। 'यह घट उस घट से पृथक् है'- इस प्रकार का व्यवहार द्रव्यों के संबन्ध में प्राय: देखा जाता है। इस प्रकार की प्रतीति का निमित्त एक गुण माना जाता है। यही पृथकत्व है। अन्योन्याभाव के आधार पर यह प्रतीति नहीं हो सकती, क्योंकि अन्योन्याभाव तो 'घट पट नहीं है' आदि ऐसे उदाहरणों पर चरितार्थ होता है, जिनमें तादात्म्य का अभाव है। इस प्रकार पृथकत्व की प्रतीति भावात्मक है जबकि अन्योन्याभाव की प्रतीति अभावात्मक होती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख