नायक: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
||
Line 24: | Line 24: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{रंगमंच}}{{ | {{रंगमंच}}{{अभिनेता}} | ||
[[Category:रंगमंच]] | [[Category:रंगमंच]] | ||
[[Category:नाट्य और अभिनय]] | [[Category:नाट्य और अभिनय]] | ||
[[Category: | [[Category:अभिनेता]] | ||
[[Category:सिनेमा]] | [[Category:सिनेमा]] | ||
[[Category:कला कोश]] | [[Category:कला कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 06:27, 3 April 2015
नायक या अभिनेता उस व्यक्ति को कहते है जो किसी नाटक, फ़िल्म (चलचित्र) या अन्य कला की प्रस्तुति में अपने किरदार को निभाए। नायक ऐसा कार्य करने वाले नर शख्स को कहते हैं। ऐसा ही कार्य करने वाली महिला को नायिका या अभिनेत्री कहते हैं। नायक अथवा हीरो उस व्यक्ति को भी कहते हैं जो दूसरों के लिये, विशेषतः विपत्ति के समय, कुछ असामान्य कार्य कर दिखाये।
रसखान की दृष्टि में 'नायक'
हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। भारतीय काव्य-शास्त्र के अनुसार काव्यलंबन नायक वह माना गया है जो त्याग भावना से भरा हो, महान कार्यों का कर्ता हो, कुल का महान हो, बुद्धि-वैभव से संपन्न हो, रूप-यौवन और उत्साह की संपदाओं से संपन्न हो, निरन्तर उद्योगशील रहने वाला हो, जनता का स्नेहभाजन हो और तेजस्विता, चतुरता किंवा सुशीलता का निदर्शक हो। रसखान के काव्य के नायक श्रीकृष्ण हैं, जो महान कार्यों के कर्ता, उच्च कुल में उत्पन्न बुद्धि, वैभव से संपन्न, रूप यौवन उत्साह की संपदाओं से सुशोभित, गोपियों के स्नेहभाजन, तेजस्वी और सुशील हैं। रसखान के नायक में नायकोचित लगभग सभी गुण मिलते हैं। नायक के महान कार्यों की चर्चा मिलती है। द्रौपदी, गणिका, गज, गीध, अजामिल का रसखान के नायक ने उद्धार किया। अहिल्या को तारा, प्रह्लाद के संकटों का नाश किया।[1] केवल यही नहीं, उन्होंने उत्साहपूर्वक कालिय दमन तथा कुवलया वध भी किया।[2] रसखान ने अपने नायक के महान कार्यों के साथ-साथ उनके रूप यौवन की भी चर्चा की है। गोपियों ने उनके रूप से प्रभावित होकर लोकमर्यादा तक को त्याग दिया। कृष्ण के रूप यौवन का प्रभाव असाधारण है। गोपी बेबस होकर लोक मर्यादा त्यागने पर विवश हो जाती हैं-
अति लोक की लाज समूह मैं छोरि कै राखि थकी बहुसंकट सों।
पल में कुलकानि की मेड़ नखी नहिं रोकी रुकी पल के पट सों॥
रसखानि सु केतो उचाटि रही उचटी न संकोच की औचट सों।
अलि कोटि कियौ हटकी न रही अटकी अंखियां लटकी लट सों।[3]
रसखान ने अपने नायक के रूप-यौवन की चर्चा अनेक पदों में की है। रूप यौबन के अतिरिक्त उनकी चेष्टाएं, मधुर मुस्कान भी मन को हर लेती हैं।
मैन मनोहर बैन बजै सुसजे तन सोहत पीत पटा है।
यौं दमकै चमकै झमकै दुति दामिनि की मनो स्याम घटा है।
ए सजनी ब्रजराजकुमार अटा चढ़ि फेरत लाल बटा है।
रसखानि महामधुरी मुख की मुसकानि करै कुलकानि कटा है।[4]
रसखान ने कृष्ण के प्रेममय रूप का निरूपण अनेक पदों में किया है। उन्हें राधा के पैर दबाते हुए दिखाया है[5] तथा गोपियों के आग्रह पर छछिया भरी छाछ पर भी नाचते हुए दिखाया है। सर्वसमर्थ होकर भी कृष्ण अपनी प्रेयसी गोपियों के आनंद के लिए इस प्रकार का व्यवहार करते हैं। जिससे सिद्ध होता है कि वे प्रेम के वशवर्ती हैं। अत: रसखान द्वारा निरूपित नायक में लगभग उन सब विशेषताओं का सन्निवेश है जो भारतीय काव्यशास्त्र के अंतर्गत गिनाई गई हैं। उनमें शौर्य, रूप, यौवन और उत्साह है।
|
|
|
|
|