चन्देल वंश: Difference between revisions
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Latest revision as of 10:22, 5 July 2016
चन्देल वंश गोंड जनजातीय मूल का राजपूत वंश था, जिसने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से राज किया। प्रतिहारों के पतन के साथ ही चंदेल नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में यमुना नदी से लेकर सागर (मध्य प्रदेश, मध्य भारत) तक और धसान नदी से विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध कालिंजर का क़िला, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ उनके प्रमुख गढ़ थे। चंदेल राजा नंद या गंड ने लाहौर में तुर्कों के ख़िलाफ़ अभियान में एक अन्य राजपूत सरदार जयपाल की मदद की, लेकिन 'ग़ज़ना' (ग़ज़नी) के महमूद ने उन्हें पराजित कर दिया था। 1023 ई. में चंदेलों का स्थान बुंदेलों ने ले लिया। खजुराहो के मंदिर निर्माण के लिए ही चंदेल संभवत: सबसे अधिक विख्यात हैं।
वंश स्थापना तथा शासक
जेजाकभुक्ति के प्रारम्भिक शासक गुर्जर प्रतिहार शासकों के सामंत थे। इन्होनें खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया। 'नन्नुक' इस वंश का पहला राजा था। उसके अतिरिक्त अन्य सामंत थे- वाक्पति, जयशक्ति (सम्भवतः इसके नाम पर ही बुन्देलखण्ड का नाम जेजाक भुक्ति पड़ा) विजय शक्ति, राहिल एवं हर्ष।
- नन्नुक (831 - 845 ई.) (संस्थापक)
- वाक्पति (845 - 870 ई.)
- जयशक्ति चन्देल और विजयशक्ति चन्देल (870 - 900 ई.)
- राहिल (900 - ?)
- हर्ष चन्देल (900 - 925 ई.)
- यशोवर्मन (925 - 950 ई.)
- धंगदेव (950 - 1003 ई.)
- गंडदेव (1003 - 1017 ई.)
- विद्याधर (1017 - 1029 ई.)
- विजयपाल (1030 - 1045 ई.)
- देववर्मन (1050-1060 ई.)
- कीरतवर्मन या कीर्तिवर्मन (1060-1100 ई.)[1]
- सल्लक्षणवर्मन (1100 - 1115 ई.)
- जयवर्मन (1115 - ?)
- पृथ्वीवर्मन (1120 - 1129 ई.)
- मदनवर्मन (1129 - 1162 ई.)
- यशोवर्मन द्वितीय (1165 - 1166 ई.)
- परमार्दिदेव अथवा परमल (1166 - 1203 ई.)
- 1203 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने परार्माददेव को पराजित कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया और अंततः 1305 ई. में चन्देल राज्य दिल्ली में मिल गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चंदेल राजवंश (हिन्दी) vinaykumarmadane.blogspot। अभिगमन तिथि: 05 जुलाई, 2016।