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'''झील''' [[जल]] का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च [[पर्वत|पर्वतों]] पर मिलती हैं, [[पठार|पठारों]] और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर [[सागर]] तल से नीचे भी पाई जाती हैं।
'''झील''' [[जल]] का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च [[पर्वत|पर्वतों]] पर मिलती हैं, [[पठार|पठारों]] और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर [[सागर]] तल से नीचे भी पाई जाती हैं।



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[[चित्र:Mussoorie-Lake.jpg|thumb|250px|मसूरी झील, उत्तराखंड]] झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं।

भारत की झीलें

देश की अधिकांश झीलों की स्थिति उत्तर के पर्वतीय पर्वतीय प्रदेश में ही सीमित है। समुद्र तटीय क्षेत्रों में भी कुछ महत्त्वपूर्ण झीलें स्थित हैं। मैदानी भाग में इनकी कमी है। महाद्वीपों के मध्यवर्ती भाग अर्थात धरातल पर उपस्थित जलपूर्ण भागों को झील कहते हैं। झीलों की सबसे बड़ी विशेषता उनका स्थल से घिरा होना है।

विभिन्न प्रकार की झीलें

  1. विवर्तनिक झीलें - भूभर्गिक हलचलों के कारण निर्मित झीलों को विवर्तनिक झीलों के अंतर्गत रखा जाता है। कश्मीर की वूलर झील तथा कुमायूँ हिमालय में स्थित अनेक झीलें ।
  2. क्रेटर झील या ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित झील - शांत ज्वालामुखियों के वृहदाकार मुखों या क्रेटरों में जल भर जाने से ऐसी झीलों की उत्पत्ति होती है। इसका प्रमुख उदाहरण महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा ज़िले की लोनार झील और अफ्रीका की विक्टोरिया झील है।
  3. लैगून या अनूप झीलें - चिल्का झील (उड़ीसा), पुलिकट झील (आंध्र प्रदेश), कोलेरू झील (आंध्र प्रदेश)
  4. हिमानी द्वारा निर्मित झीलें - ताजे या मीठे पानी की झीलें जिनमें नदियों के माध्यम से निरंतर ताजे जल का प्रवाह होता रहता है मीठे पानी की झीलें होती हैं क्योंकि इनमें विभिन्न प्रकार के लवणों का जमाव नहीं होने पाता है। कुमायूँ हिमालय की अधिकांश झीलें इसी प्रकार की हैं। इनके उदाहरण हैं - राकसताल, नैनीताल, सातताल, भीमताल, नौकुचिया ताल, खुरपाताल, समताल, पूनाताल, मालवाताल आदि।
  5. वायु द्वारा निर्मित झीलें - राजस्थान की सांभर, डीडवाना, पंचभद्रा, लूनकरनसर आदि।
  6. भ्रंशन द्वारा बनी झीलें- भूगर्भिक हलचलों के कारण धरातल के किसी भाग के नीचे धंस जाने या ऊपर उठ जाने से बनी बेसिनों में जल भर जाने के परिणामस्वरूप ऐसी झीलों का निर्माण होता है।
  7. दरार घाटी झीलें- धरातल की दो समानांतर दरारों के मध्यवर्ती भाग के नीचे धंस जाने एवं उसमें जल भर जाने के फलस्वरूप ऐसी झीलों का निर्माण होता है। इजरायल का मृत सागर इसका उदहारण है।
  8. खारे पानी की झीलें- जिन झीलों में बाहर से पानी आकर मिलता तो है किन्तु नकिलकर बाहर नहीं जाता है, वे प्रायः खारी झीलें होती हैं। कैस्पियन सागर विश्व की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।

अन्य प्रमुख झीलें

डल झील, मानसबल, शेषनाग, अनन्तनाग, गन्धारवल, अच्छाबल, बैरीनाग तथा नागिन झील (जम्मू-कश्मीर), उदयसागर, पिछोला, फ़तह सागर, जयसमन्द, राजसमन्द (उदयपुर), लोकटक (मणिपुर), वेम्बानद (केरल), हुसैनसागर (आन्ध्र प्रदेश) आदि।  

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