परमार वंश: Difference between revisions
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*मुंज अनेक वर्षों तक [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] के [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] राजाओं से युद्ध करता रहा और 995 ई. में युद्ध में ही मारा गया। उसका उत्तराधिकारी भोज (1018-1060 ई.) [[गुजरात]] तथा [[चेदि जनपद|चेदि]] के राजाओं की संयुक्त सेनाओं के साथ युद्ध में मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही परमार वंश का प्रताप नष्ट हो गया। यद्यपि स्थानीय राजाओं के रूप में परमार राजा तेरहवीं [[शताब्दी]] के आरम्भ तक राज्य करते रहे, अंत में [[तोमर|तोमरों]] ने उनका उच्छेद कर दिया। | *मुंज अनेक वर्षों तक [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] के [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] राजाओं से युद्ध करता रहा और 995 ई. में युद्ध में ही मारा गया। उसका उत्तराधिकारी भोज (1018-1060 ई.) [[गुजरात]] तथा [[चेदि जनपद|चेदि]] के राजाओं की संयुक्त सेनाओं के साथ युद्ध में मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही परमार वंश का प्रताप नष्ट हो गया। यद्यपि स्थानीय राजाओं के रूप में परमार राजा तेरहवीं [[शताब्दी]] के आरम्भ तक राज्य करते रहे, अंत में [[तोमर|तोमरों]] ने उनका उच्छेद कर दिया। | ||
*परमार राजा विशेष रूप से वाक्पति मुंज और भोज, बड़े | *परमार राजा विशेष रूप से वाक्पति मुंज और भोज, बड़े विद्वान् थे और विद्वानों एवं कवियों के आश्रयदाता थे। | ||
Latest revision as of 14:36, 6 July 2017
परमार वंश का आरम्भ नवीं शताब्दी के प्रारम्भ में नर्मदा नदी के उत्तर मालवा (प्राचीन अवन्ती) क्षेत्र में उपेन्द्र अथवा कृष्णराज द्वारा हुआ था। इस वंश के शासकों ने 800 से 1327 ई. तक शासन किया। मालवा के परमार वंशी शासक सम्भवतः राष्ट्रकूटों या फिर प्रतिहारों के समान थे।[1]
- इस वंश के प्रारम्भिक शासक उपेन्द्र, वैरसिंह प्रथम, सीयक प्रथम, वाक्पति प्रथम एवं वैरसिंह द्वितीय थे।
- परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन में थी पर कालान्तर में राजधानी 'धार', मध्य प्रदेश में स्थानान्तरित कर ली गई।
- इस वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं प्रतापी राजा 'सीयक अथवा श्रीहर्ष' था। उसने अपने वंश को राष्ट्रकूटों की अधीनता से मुक्त कराया।
- परमार वंश में आठ राजा हुए, जिनमें सातवाँ वाक्पति मुंज (973 से 995 ई.) और आठवाँ मुंज का भतीजा भोज (1018 से 1060 ई.) सबसे प्रतापी थी।
- मुंज अनेक वर्षों तक कल्याणी के चालुक्य राजाओं से युद्ध करता रहा और 995 ई. में युद्ध में ही मारा गया। उसका उत्तराधिकारी भोज (1018-1060 ई.) गुजरात तथा चेदि के राजाओं की संयुक्त सेनाओं के साथ युद्ध में मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही परमार वंश का प्रताप नष्ट हो गया। यद्यपि स्थानीय राजाओं के रूप में परमार राजा तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ तक राज्य करते रहे, अंत में तोमरों ने उनका उच्छेद कर दिया।
- परमार राजा विशेष रूप से वाक्पति मुंज और भोज, बड़े विद्वान् थे और विद्वानों एवं कवियों के आश्रयदाता थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 233 |