ऋत्विक सान्याल: Difference between revisions

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ऋत्विक सान्याल (अंग्रेज़ी: Ritwik Sanyal, जन्म- 12 अप्रॅल, 1953) भारतीय शास्त्रीय गायक हैं। प्रो. ऋत्विक सान्याल ध्रुपद गायन के सशक्त हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने 60 के दशक में लुप्त गायन शैली को एक नई ऊंचाई प्रदान की है। भारत सरकार ने 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की थी। इनमें वाराणसी की दो विभूति शामिल रहीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के आयुर्वेद संकाय के क्षारसूत्र विशेषज्ञ रहे प्रो. मनोरंजन साहू और संगीत संकाय के डीन रहे, प्रख्यात ध्रुपद गायक पंडित ऋत्विक सान्याल। इन्हें पद्म श्री, 2023 से सम्मानित किया गया है।

परिचय

बीएचयू संगीत संकाय के डीन रहे जाने माने ध्रुपद गायक पंडित ऋत्विक सान्याल गायन की इस विधा के सशक्त हस्ताक्षर है। इनका जन्म 12 अप्रॅल, 1953 को हुआ था। मूल रूप से कटियार, बिहार के निवासी प्रो. ऋत्विक सान्याल को संगीत की शिक्षा उनकी मां रानू सान्याल ने दी। रानू सान्याल भी गायिका और लेखिका रहीं। पिता प्रो. बटुक सान्याल फिलॉसफी के विद्यान रहे। प्रो. सान्याल ने डागर घराने के विख्यात वीणा के वादक उस्ताद जिया मोहिउद्दीन डागर और गायक उस्ताद जिया फ़रीदुद्दीन डागर से भी संगीत की शिक्षा ली।

स्थापित कलाकार

दर्शनशास्त्र में परास्नातक करने के बाद संगीत में स्नातकोत्तर करने के बाद शोध प्रो. प्रेमलता शर्मा के निर्देशन में किया। इसके बाद बीएचयू के संगीत एवं मंच कला संकाय में डीन भी रहे। लगभग 40 साल से प्रो. ऋत्विक सान्याल विश्व के अलग-अलग देशों में ध्रुपद शो में भाग लेते रहे हैं। प्रो. सान्याल के कई शिष्य ध्रुपद, ख्याल एवं वाद्य संगीत आदि विधा के स्थापित कलाकार हैं।

सम्मान व पुरस्कर

प्रो. ऋत्विक सान्याल को 'केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', 2013; 'उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', 2002; 'उत्तर प्रदेश रत्न', 2016; 'ध्रुपद सम्मान जयपुर', 2007; ध्रुपद के क्षेत्र में योगदान के लिए ध्रुपद मेला वाराणसी द्वारा 'स्वाति तिरुनल सम्मान', 1995 मिल चुका है। प्रो. ऋत्विक सान्याल आईसीसीआर आकाशवाणी, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक सस्थाओं के सम्मानित सदस्य भी हैं।

अलग पद्धति का विकास

प्रो. ऋत्विक सान्याल ने ध्रुपद की डागर परम्परा और ध्रुपद आलाप की विशिष्ट तकनीक, कण्ठ संस्कार एवं परम्परागत व संस्थागत शिक्षण की अपनी एक अलग पद्धति विकसित कर अपनी अलग पहचान बनाई। ध्रुपद गायन शैली बनारस और भारतीय संगीत की पुरानी थाती रही है। 60 के दशक में यह शैली लुप्त सी हो गई थी, किन्तु प्रो. ऋत्विक सान्याल के प्रयास से फिर युवा संगीत साधक इससे अपनी पहचान बना रहे हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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