स्कन्दगुप्त: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Removed Category:नया पन्ना (using HotCat)) |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Removed Category:भारत के राजवंश (using HotCat)) |
||
Line 31: | Line 31: | ||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]] | ||
[[Category:गुप्त_काल]] | [[Category:गुप्त_काल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 11:10, 31 October 2010
- कुमारगुप्त की पटरानी का नाम महादेवी अनन्तदेवी था।
- उसका पुत्र पुरुगुप्त था।
- स्कन्दगुप्त की माता सम्भवतः पटरानी या महादेवी नहीं थी। ऐसा प्रतीत होता है, कि कुमारगुप्त की मृत्यु के बाद राजगद्दी के सम्बन्ध में कुछ झगड़ा हुआ, और अपनी वीरता तथा अन्य गुणों के कारण स्कन्दगुप्त गुप्त साम्राज्य का स्वामी बना। अपने पिता के शासन काल में ही 'पुष्यमित्रों' को परास्त करके उसने अपनी अपूर्व प्रतिभा और वीरता का परिचय दिया था। पुष्यमित्रों का विद्रोह इतना भयंकर रूप धारण कर चुका था, कि गुप्तकाल की लक्ष्मी विचलित हो गई थी और उसे पुनः स्थापित करने के लिए स्कन्दगुप्त ने अपने बाहुबल से शत्रुओं का नाश करते हुए कई रातें ज़मीन पर सोकर बिताईं। जिस प्रकार शत्रुओं को परास्त कर कृष्ण अपनी माता देवकी के पास गया था, वैसे ही स्कन्दगुप्त भी शत्रुवर्ग को नष्ट कर अपनी माता के पास गया। इस अवसर पर उसकी माता की आँखों में आँसू छलक आए थे। राज्यश्री ने स्वयं ही स्कन्दगुप्त को स्थायी रूप में वरण किया था। सम्भवतः बड़ा लड़का होने के कारण राजगद्दी पर अधिकार तो पुरुगुप्त का था, पर शक्ति और वीरता के कारण राज्यश्री स्वयं ही स्कन्दगुप्त के पास आ गई थी।
हूणों की पराजय
- स्कन्दगुप्त के शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना हूणों की पराजय है। हूण बड़े ही भयंकर योद्धा थे। उन्हीं के आक्रमणों के कारण 'युइशि' लोग अपने प्राचीन निवास स्थान को छोड़कर शकस्थान की ओर बढ़ने को बाध्य हुए थे, और युइशियों से खदेड़े जाकर शक लोग ईरान और भारत की तरफ़ आ गए थे। हूणों के हमलों का ही परिणाम था, कि शक और युइशि लोग भारत में प्रविष्ट हुए थे।
- उधर सुदूर पश्चिम में इन्हीं हूणों के आक्रमण के कारण विशाल रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया था। हूण राजा 'एट्टिला' के अत्याचारों और बर्बरता के कारण पाश्चात्य संसार में त्राहि-त्राहि मच गई थी। अब इन हूणों की एक शाखा ने गुप्त साम्राज्य पर हमला किया, और कम्बोज जनपद को जीतकर गान्धार में प्रविष्ट होना प्रारम्भ किया। हूणों का मुक़ाबला कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा करना स्कन्दगुप्त के राज्यकाल की सबसे बड़ी घटना है।
- एक स्तम्भालेख के अनुसार स्कन्दगुप्त की हूणों से इतनी जबर्दस्त मुठभेड़ हुई कि सारी पृथ्वी काँप उठी। अन्त में स्कन्दगुप्त की विजय हुई, और उसी के कारण उसकी अमल शुभ कीर्ति कुमारी अन्तरीप तक सारे भारत में गायी जाने लगी, और इसीलिए वह सम्पूर्ण गुप्त वंश में 'एकवीर' माना जाने लगा। बौद्ध ग्रंथ 'चंद्रगर्भपरिपृच्छा' के अनुसार हूणों के साथ हुए इस युद्ध में गुप्त सेना की संख्या दो लाख थी। हूणों की सेना तीन लाख थी। तब भी विकट और बर्बर हूण योद्धाओं के मुक़ाबले में गुप्त सेना की विजय हुई।
- स्कन्दगुप्त के समय में हूण लोग गान्धार से आगे नहीं बढ़ सके। गुप्त साम्राज्य का वैभव उसके शासन काल में प्रायः अक्षुण्ण रहा।
- स्कन्दगुप्त के समय के सोने के सिक्के कम पाए गए हैं। उसकी जो सुवर्ण मुद्राएँ मिली हैं, उनमें भी सोने की मात्रा पहले गुप्तकालीन सिक्कों के मुक़ाबले में कम है। इससे अनुमान किया जाता है, कि हूणों के साथ युद्धों के कारण गुप्त साम्राज्य का राज्य कोष बहुत कुछ क्षीण हो गया था, और इसीलिए सिक्कों में सोने की मात्रा कम कर दी गई थी।
सुदर्शन झील
- स्कन्दगुप्त के समय में सौराष्ट्र (काठियावाड़) का प्रान्तीय शासक 'पर्णदत्त' था। उसने गिरिनार की प्राचीन सुदर्शन झील की फिर से मरम्मत कराई थी। इस झील का निर्माण सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय में हुआ था। तब सुराष्ट्र का शासक वैश्य 'पुष्यगुप्त' था। पुष्यगुप्त ही इस झील का निर्माता था। बाद में अशोक के समय में प्रान्तीय शासक यवन 'तुषास्प' ने और फिर महाक्षत्रप 'रुद्रदामा' ने इस झील का पुनरुद्धार किया। गुप्त काल में यह झील फिर ख़राब हो गई थी। अब स्कन्दगुप्त के आदेश से 'पर्णदत्त' ने इस झील का फिर जीर्णोद्वार किया। उसके शासन के पहले ही साल में इस झील का बाँध टूट गया था, जिससे प्रजा को बड़ा कष्ट हो गया था। स्कन्दगुप्त ने उदारता के साथ इस बाँध पर खर्च किया। पर्णदत्त का पुत्र 'चक्रपालित' भी इस प्रदेश में राज्य सेवा में नियुक्त था। उसने झील के तट पर विष्णु भगवान के मन्दिर का निर्माण कराया।
- स्कन्दगुप्त ने किसी नए प्रदेश को जीतकर गुप्त साम्राज्य का विस्तार नहीं किया। सम्भवतः इसकी आवश्यकता भी नहीं थी, क्योंकि गुप्त सम्राट 'आसमुद्र क्षितीश' थे।
|
|
|
|
|