नूह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:51, 27 July 2011 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - ")</ref" to "</ref")
Jump to navigation Jump to search

हज़रत नूह
इस्लाम धर्म में हज़रत नूह का उल्लेख भी हुआ है और हज़रत नूह मानवजाति के इतिहास के आरंभिक काल के ईशसन्देष्टा हैं। क़ुरान की उपरोक्त आयत[1] से यह तथ्य सामने आता है कि अस्ल ‘दीन’ (इस्लाम) में भेद, अन्तर, विभाजन, फ़र्क़ आदि करना सत्य-विरोधी है।[2]

कथा

परमात्मा ने नूह को उसकी जाति के पास भेजा कि यातना पहुँचने से पहले उन्हें डरा। नूह ने कहा— हे मेरी जाति वालों! मैं डराने वाला हूँ। परमेश्वर की पूजा करो, उससे डरो और मेरा कहा मानो। (अपना प्रयत्न निष्फल देख) नूह ने कहा— हे प्रभो! मैं रात–दिन अपनी जाति को बताता रहा, किन्तु भागने के अतिरिक्त उनके पास मेरी पुकार न पहुँची।[3] उन्होंने तो कहा— अपने ठाकुर—: 'बदद्', 'सुबाअ', 'यऊक़' और 'नस्र' को न छोड़ना। नूह बोला— प्रभो! नास्तिकों का एक घर भी भूमण्डल पर न छोड़ना, नहीं तो वह तेरे भक्तों को बहकावेंगे।[4] नूह अपनी जाति में 950 वर्ष रहा।[5]यहूदियों और ईसाईयों के माननीय ग्रन्थ बाइबिल की "उत्पत्ति" पुस्तक[6] में भी यह वर्णन है।"[7]

नूह के विषय में एक और स्थान पर कहा है— "नूह को उसकी जाति के पास भेजा। जाति ने कहा— हम तुझे भूल में देखते हैं। नूह बोला— मैं भूल में नहीं हूँ, किन्तु जगदीश्वर का प्रेरित हूँ। फिर उसकी जाति ने झुठलाया; तब हमने उसको और साथियों को नाव में बचा लिया और जो झुठलाते थे, उन्हें डुबा दिया।"[8]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. REDIRECT साँचा:टिप्पणीसूची
  1. 42:13
  2. इस्लाम का इतिहास (हिन्दी) इस्लाम धर्म। अभिगमन तिथि: 8 अप्रॅल, 2011
  3. 71:1:13
  4. 71:2:6,7
  5. 71:1:1-3,5,6
  6. 7:9,28
  7. 29:2:1
  8. 7:8:1-3,6

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः