संस्कार -वैशेषिक दर्शन

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महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

संस्कार का स्वरूप

वरदराज के मतानुसार जिस गुण में वह कारण उत्पन्न होता है, जो कि उसी जाति का हो जिस का कार्य है, (यद्यपि वह विजातीय होता है) तो वह संस्कार कहलाता है। अर्थात जब भी कोई गुण या कर्म बाह्य सहायता के बिना आन्तरिक शक्ति से ही उसी प्रकार का कार्य उत्पन्न कर दे तो वह संस्कार होता है। केशव मिश्र के अनुसार संस्कार सम्बन्धी व्यवहार का असाधारण कारण संस्कार कहलाता है। संस्कार तीन प्रकार का होता है- वेग, भावना और स्थितिस्थापक। संस्कार के इन तीन भेदों में वैसे तो भावना ही वस्तुत: संस्कार हैं शेष दो संस्कार नहीं हैं, किन्तु कतिपय विद्वानों का यह कथन भी ध्यान देने योग्य है कि इन तीनों में बाह्य कारणों के बिना स्वयं ही कार्य करने की क्षमता समानरूप से है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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