कालका बिन्दादीन ड्योढ़ी

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कालका बिन्दादीन ड्योढ़ी उत्तर प्रदेश राज्य के लखनऊ शहर में स्थित पंडित बिरजू महाराज की वह पुश्तैनी हवेली है, जिसे अब संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। लखनऊ में गुईन रोड पर स्थित "कथक का तीर्थ" कही जाने वाली कालका बिन्दादीन की ड्योढ़ी नामक यह हवेली वह स्थान है, जहाँ पं. कालका महाराज, पं. बिन्दादीन महाराज, पं. अच्छन महाराज, पं. लच्छू महाराज, पं. शंभू महाराज रहते थे। यही नहीं मशहूर फिल्मी कलाकार नर्गिस, कुमकुम, सितारा देवी, गोपीकृष्ण ने भी इसी ड्योढ़ी पर कथक की शिक्षा ली थी।

लोकार्पण

उत्तर प्रदेश सरकार ने पं. बिरजू महाराज के द्वारा संस्कृति विभाग को हस्तान्तरित की गयी पुश्तैनी हवेली 'कालका बिन्दादीन ड्योढ़ी' को कथक संग्रहालय के रूप में विकसित किया है। इस संग्रहालय का लोकार्पण प्रदेश की संस्कृति राज्यमंत्री (स्तवंत्र प्रभार) अरुण कुमारी कोरी ने किया था। बिरजू महाराज को देश ही नहीं, विदेशों में भी कई सम्मान प्राप्त हुये हैं। बिरजू महाराज के अनेक शिष्य हैं, जो इस कला को आगे बढ़ाने के लिए सतत् अग्रसर हैं।[1]

संग्रह

'कालका बिन्दादीन ड्योढ़ी' को लखनऊ घराने के कथक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है, जिसमें पं. बिरजू महाराज के पूर्वजों, जिन्होंने लखनऊ घराने की शुरुआत कर इसे समृद्ध किया, के वस्त्रों जैसे- अचकन, शाल, टोपी, कमीज, शेरवानी, साड़ी, पायजामा, खड़ाऊ, छड़ी, प्रयोग में लाये गये बर्तन, मन्दिर के पुराने विग्रह, रामायण की प्रति, फोटोग्राफ, पोरट्रेट, पुराने संगीत वाद्य आदि को प्रदर्शित किया किया गया है। इसके साथ ही कथक के लखनऊ घराने के विभिन्न आयामों से सम्बन्धित फ़िल्म, लघुचित्र, वृत्तचित्र, ऑडियो-वीडियो रिकार्डिंग भी दिखाने की व्यवस्था की गयी है।

लखनऊ घराना

अवध की संस्कृति देश-विदेश में अपने वैशिष्टय के लिए सुविख्यात है। अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में यहां की कला, संस्कृति एवं तहजीब नये आयामों के साथ पल्लवित एवं पुष्पित हुई। विशेष रूप से कथक नृत्य के क्षेत्र में लखनऊ घराने की विशिष्ट शैली का विकास हुआ। लखनऊ घराने की शुरुआत 19वीं सदी में नवाब वाजिद अली शाह के गुरु एवं उनके दरबार में नर्तक ठाकुर प्रसाद महाराज से प्रारम्भ हुई। तत्पश्चात् दुर्गा प्रसाद जी, बिन्दादीन महाराज जी एवं कालका प्रसाद जी ने उसे समृद्ध किया।

पण्डित बिरजू महाराज का कहना था कि- "तमाम लोगों की चाहत थी कि इस स्थल को यादगार स्थल बनाया जाये तथा लोगों की इसी भावना का सम्मान करते हुए इसे कथक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है। यह संग्रहालय कला प्रेमियों के लिए एक तीर्थ स्थल है।" 'कालका बिन्दादीन ड्योढ़ी' कला जगत् में श्रृद्धा का प्रतीक है, जहां भारत की लब्ध प्रतिष्ठ विभूतियों, जैसे- बेगम अख्तर, भीमसेन जोशी, उदय शंकर, उस्ताद अहमद जान थिरकवा, गोपी किशन, सितारा देवी तथा सिद्धेश्वरी देवी ने अपनी कला से भावान्जलि दी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कथा संग्रहालय के रूप में पौराणिक विरासत का संरक्षण (हिंदी) webvarta.com। अभिगमन तिथि: 17 दिसम्बर, 2016।

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