Difference between revisions of "जाके लिए घर आई घिघाय -बिहारी लाल"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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तुम आती हो,
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जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी।
नव अंगों का
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आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी॥
शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।
+
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी।
 
+
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी॥  
बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,
 
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
 
तुम आती हो,
 
अंतस्थल में
 
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।
 
 
 
अपलक रह जाते मनोनयन
 
कह पाते मर्म-कथा वचन,
 
तुम आती हो,
 
तंद्रिल मन में
 
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।
 
 
 
अभिमान अश्रु बनता झर-झर,
 
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
 
तुम आती हो,
 
आनंद-शिखर
 
प्राणों में ज्वार उठाती हो।
 
 
 
स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,
 
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
 
तुम आती हो,
 
जीवन-पथ पर
 
सौंदर्य-रहस बरसाती हो।
 
 
 
जगता छाया-वन में मर्मर,
 
कंप उठती रुध्द स्पृहा थर-थर,
 
तुम आती हो,
 
उर तंत्री में
 
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।  
 
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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Latest revision as of 13:51, 25 December 2011

jake lie ghar aee ghighay -bihari lal
kavi bihari lal
janm 1595
janm sthan gvaliyar
mrityu 1663
mukhy rachanaean bihari satasee
inhean bhi dekhean kavi soochi, sahityakar soochi

jake lie ghar aee ghighay, kari manuhari uti tum gadhi.
aju lakhaian uhian jat utai, n rahi suratyau ur yauan rati badhi॥
ta chhin taian tihian bhaanti ajauan, n halai n chalai bidhi ki lasi kadhi.
vahi ganva chhinu vahi gali tinu, vaisaihian chah (bai) vaisehi thadhi॥

sanbandhit lekh